झांसी किले के पास बन रहे पाथवे पर विवाद, धरोहर के स्वरुप से हो रही छेड़छाड़

स्मार्ट सिटी मिशन के तहत किले के पास लैंडस्केपिंग का काम कराया जा रहा है। वहां पार्क का निर्माण कार्य कराया जाना है
ऐतिहासिक झांसी किले के पास बन रहे पाथवे के निर्माण पर सवाल उठने लगे हैं। लक्ष्मी नारायण शर्मा
ऐतिहासिक झांसी किले के पास बन रहे पाथवे के निर्माण पर सवाल उठने लगे हैं। लक्ष्मी नारायण शर्मा
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लक्ष्मी नारायण शर्मा

ऐतिहासिक झांसी किले के पास बन रहे पाथवे के निर्माण पर सवाल उठने लगे हैं। झांसी नगर निगम स्मार्ट सिटी परियोजना के तहत किले के आसपास सुंदरीकरण की बात कहकर यह पाथवे बना रहा है।

इस पाथवे निर्माण का झांसी के कुछ जन संगठनों ने विरोध शुरू कर दिया है। उनका कहना है कि किला भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण यानी एएसआई से संरक्षित है और इस कारण इसके आसपास किसी तरह का कोई नया निर्माण नहीं किया जा सकता।

जन संगठनों की ओर से दावा यह भी किया जा रहा है कि पाथवे निर्माण के लिए किले से सटी पहाड़ी को खोदा जा रहा है। इस खुदाई से ऐतिहासिक धरोहर का मूल स्वरूप और अस्तित्व दोनों ही खतरे में पड़ जाएगा।

झांसी किला आजादी की पहली लड़ाई का गवाह है और इसे संरक्षित घोषित किया गया है। बंगरा नाम की पहाड़ी पर इस किले का निर्माण 1613 में ओरछा के राजा वीर सिंह जूदेव ने करवाया था। मराठा शासक नारू शंकर ने 1729-30 ने इसमें कई तरह के नए निर्माण कराये।

आजादी की पहली लड़ाई के समय यहां झांसी की रानी लक्ष्मीबाई और अंग्रेजों की सेना के बीच घमासान हुआ था। इसी किले के एक हिस्से से रानी लक्ष्मीबाई ने कालपी की ओर कूच करने के लिए घोड़े पर अपने दत्तक पुत्र को पीठ पर बांधकर छलांग लगा दी थी। 

बुंदेलखंड निर्माण मोर्चा के अध्यक्ष भानू सहाय बताते हैं कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग झांसी सर्किल ने सूचना के अधिकार में बताया है कि किला और किले के आसपास की जमीन केन्द्रिय संरक्षित स्मारक रानी झांसी के किले का हिस्सा है। यह किला भारत सरकार द्वारा केन्द्रीय संरक्षित स्मारक की सूची में अधिसूचित है।

लेकिन अब किले की पहाड़ी का स्वरूप तो बदला ही जा रहा है। देश-विदेश से आने वाले सैलानियों को महारानी लक्ष्मीबाई के किले का वह हिस्सा बदले स्वरूप में दिखाई देगा, जहां से रानी लक्ष्मीबाई ने छलांग लगाई थी।

हमने यह मांग की गई है कि जो निर्माण कार्य पहाड़ी पर किया जा रहा है, उसको तत्काल रुकवाया जाए। जिस पहाड़ी पर किला बना है, उस पहाड़ी को किसी भी तरह का नुकसान होगा तो कालांतर में किला भी धसक सकता है।

इस पूरे मामले में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अफसरों की भूमिका भी सवाल खड़े हो रहे हैं। एएसआई झांसी के सीए अभिषेक कुमार ने बताया कि किले के बाहर लैंडस्केपिंग की अनुमति ली गयी थी। उन्हें कुछ पेड़-पौधे इत्यादि लगाने थे।

जब एएसआई अफसर से किले के चारों ओर पाथवे बनाने, खुदाई किये जाने और मशीनों के उपयोग आदि के बारे में पूछा गया तो उन्होंने इस पूरे मामले से खुद को अनजान बताया। एएसआई अफसर ने कहा कि उन्हें ऐसी कोई भी जानकारी नहीं है। 

नगर निगम झांसी के नगर आयुक्त अवनीश कुमार राय ने इस पूरे मामले में बताया कि किले के पास लैंडस्केपिंग का काम कराया जा रहा है। वहां पार्क का निर्माण कार्य कराया जाना है और सुंदरीकरण का काम हो रहा है।

इस स्थान पर जो भी काम कराया जा रहा है, उसकी एएसआई से अनुमति ले ली गई है। जिन लोगों ने इस बात को लेकर आपत्ति जताई थी, उन्हें अवगत करा दिया गया है। जब नगर आयुक्त से पाथवे बनाने और खुदाई इत्यादि के बारे में जानकारी मांगी गई तो उन्होंने कहा कि लैंडस्केपिंग के तहत जो भी काम किया जा रहा है, वह अनुमति से कराया जा रहा है।

दूसरी ओर सामाजिक कार्यकर्ता और बुंदेलखंड निर्माण मोर्चा के अध्यक्ष भानू सहाय दावा करते हैं कि झांसी किले के सौ मीटर के दायरे में किसी भी तरह का निर्माण कार्य किसी भी दशा में नहीं कराया जा सकता है। जब सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत एएसआई से जानकारी मांगी गई तो अफसरों ने जवाब में यह बताया कि किले के आसपास किसी भी तरह का निर्माण नहीं किया जा सकता।

भानु कहते हैं कि हम इस पूरे मामले में अफसरों की ओर से मिली जानकारी से संतुष्ट नहीं है। हमने किले के आसपास चल रहे कामों के वीडियो व फोटो इकट्ठे किये हैं। हम इन साक्ष्यों और दस्तावेजों के साथ नगर निगम, स्मार्ट सिटी और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अफसरों के खिलाफ केस दर्ज कराएंगे।

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