“समुद्र मंथन” से निकली चिंताएं

संयुक्त राष्ट्र के तीसरे महासागर सम्मेलन में सबसे कम वित्त पोषित सतत विकास लक्ष्य 14 पर चर्चा तो हुई लेकिन प्रगति उल्लेखनीय नहीं
कभी फलते-फूलते मैंग्रोव वनों से सुरक्षित चेन्नई का एन्नोर तट अब अनियंत्रित औद्योगीकरण और तटीय क्षरण का दंश झेल रहा है
कभी फलते-फूलते मैंग्रोव वनों से सुरक्षित चेन्नई का एन्नोर तट अब अनियंत्रित औद्योगीकरण और तटीय क्षरण का दंश झेल रहा है (फोटो: रोहिणी कृष्णमूर्ति / सीएसई)
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एन्नोर चेन्नई का एक सुंदर तटीय इलाका है। यह दो तरफ से कोसस्थलैयार नदी और तीसरी ओर से बंगाल की खाड़ी से घिरा है। एक समय पर यहां मैंग्रोव और जलाशयों की भरमार थी, जो तूफानों और कटाव से सुरक्षा प्रदान करते थे। लेकिन अब यह क्षेत्र गहराते पारिस्थितिक संकट का केंद्र बन चुका है। 2022 में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) को सौंपी गई एक रिपोर्ट के अनुसार, 2016 में 889 हेक्टेयर फैले मैंग्रोव और आर्द्रभूमि 2022 तक घटकर सिर्फ 278 हेक्टेयर रह गए हैं। यह लगभग 70 प्रतिशत की गिरावट है।

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अधीन राष्ट्रीय तटीय अनुसंधान केंद्र ने 2006 में पाया कि चेन्नई बंदरगाह की उत्तरी तटरेखा (एन्नोर भी शामिल) पहले ही 350 हेक्टेयर भूमि समुद्र में खो चुकी है। स्थानीय लोगों का कहना है कि कटाव को रोकने के लिए बनाए गए ग्रोइन (तटीय कटाव रोकने वाली संरचनाएं) से अस्थायी राहत मिली है, लेकिन तमिलनाडु की पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन और वन विभाग की अतिरिक्त मुख्य सचिव सुप्रिया साहू बताती हैं कि राज्य सरकार अब मैंग्रोव पुनर्स्थापन की योजना बना रही है। लेकिन इसे लागू करने के लिए भारी वित्तीय सहायता की जरूरत है।

एन्नोर से लगभग 7,000 किमी दूर फ्रांस के नाइस शहर में 9 से 13 जून तक 175 देशों के प्रतिनिधि तीसरे संयुक्त राष्ट्र महासागर सम्मेलन (यूएनओसी 3) में एकत्र हुए, जहां 2030 तक महासागरों और समुद्री संसाधनों के संरक्षण और सतत उपयोग पर केंद्रित सतत विकास लक्ष्य 14 (एसडीजी 14) के लिए वित्त पोषण पर चर्चा हुई। एसडीजी 14 के तहत कुल 10 लक्ष्य हैं, जिनमें एन्नोर में मैंग्रोव और आर्द्रभूमि की क्षति सीधे शामिल होती है।

अंतिम दिन प्रतिनिधियों ने एक घोषणा-पत्र अपनाया जिसमें यह स्वीकार किया गया कि एसडीजी 14 सबसे कम वित्त पोषित सतत विकास लक्ष्य है और सभी देशों से इसमें निवेश बढ़ाने की अपील की गई। सस्टेनेबल डेवलपमेंट रिपोर्ट 2024 के अनुसार, अब तक कोई भी देश एसडीजी 14 हासिल नहीं कर पाया है और भारत इस दिशा में गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहा है। स्विस गैर-लाभकारी संस्था ओशनकेयर की प्रबंध निदेशक फेबिएन मैक्लेलन कहती हैं, “मुख्य बाधाएं वित्तीय हैं।” इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए हर साल लगभग 175 अरब डॉलर की आवश्यकता है, लेकिन वैश्विक आर्थिक मंच (डब्ल्यूईएफ) के अनुसार, 2015 से 2019 के बीच इसमें सिर्फ 10 अरब डॉलर से भी कम का निवेश हुआ।

जून 2025 में प्रकाशित “द ओशन प्रोटेक्शन गैप: असेसिंग प्रोग्रेस टुवार्ड्स द 30x30 टारगेट” रिपोर्ट में बताया गया है कि कुनमिंग-मॉन्ट्रियल ग्लोबल बायोडायवर्सिटी फ्रेमवर्क के 30x30 लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रतिवर्ष लगभग 92 प्रतिशत यानी 14.6 बिलियन डॉलर की फंडिंग की कमी है। इस लक्ष्य के तहत 2030 तक कम से कम 30 प्रतिशत भूमि, आंतरिक जल, समुद्री और तटीय क्षेत्रों का संरक्षण करना है। यह रिपोर्ट यूएनओसी 3 सम्मेलन से पहले गैर-लाभकारी संगठनों और फंडर्स के एक समूह द्वारा जारी की गई थी।

यह फंडिंग गैप उस स्थिति में है जब महासागर स्वयं एक बहुत बड़ा आर्थिक संसाधन है, जिसकी अनुमानित वार्षिक आय 1.5 ट्रिलियन डॉलर है जो इसे दुनिया की सातवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाती है। यह जलवायु परिवर्तन से लड़ने में भी अहम भूमिका निभाता है, क्योंकि यह मानवीय गतिविधियों से उत्पन्न अतिरिक्त ऊर्जा का 90 प्रतिशत अवशोषित कर लेता है। वर्ष 2021 में डब्ल्यूडब्ल्यूएफ और मेटाबॉलिक द्वारा जारी रिपोर्ट “नेविगेटिंग ओशन रिस्क” में कहा गया है कि यदि कार्रवाई नहीं की गई तो दुनिया को 8.4 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान हो सकता है।

उपलब्धियां खास नहीं

यूएनओसी 3 सम्मेलन ऐसे समय में हुआ जब अंतरराष्ट्रीय सहायता में गिरावट देखी जा रही थी। आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (ओईसीडी) के अनुसार, 2024 में आधिकारिक विकास सहायता (ओडीए) जो विकासशील देशों के आर्थिक विकास और कल्याण के लिए दी जाती है, 2023 की तुलना में 7.1 प्रतिशत गिर गई। यह पांच साल की निरंतर वृद्धि के बाद पहली गिरावट थी। 2025 में अमेरिका ने अपनी सहायता योजना को समाप्त करना शुरू कर दिया और यूनाइटेड किंगडम (यूके) ने रक्षा खर्च बढ़ाने के लिए ओडीए को अपने सकल राष्ट्रीय आय के 0.3 प्रतिशत तक सीमित करने की घोषणा की, जबकि इसका निर्धारित मानक 0.7 प्रतिशत है। कैंपेन फॉर नेचर के निदेशक ब्रायन ओ डॉनेल कहते हैं, “ओडीए में गिरावट महासागर के स्वास्थ्य को खतरे में डालता है।”

यूएनओसी 3 में देशों ने कई स्वैच्छिक वित्तीय प्रतिबद्धताओं की घोषणा की। यूरोपीय यूनियन ने महासागर स्वास्थ्य को बहाल करने और तटीय समुदायों का समर्थन करने के लिए लगभग 1.14 बिलियन डॉलर देने की घोषणा की। सम्मेलन से दो दिन पहले परोपकारी संगठनों, निवेशकों और सार्वजनिक बैंकों ने पांच वर्षों में 10 बिलियन डॉलर देने का वादा किया। लेकिन मैक्लेलन का कहना है कि ये राशि अधिकतर पहले से मौजूद या पहले ही खर्च की जा चुकी फंडिंग का पुनः उल्लेख है। ओ डॉनेल भी संरक्षित समुद्री क्षेत्रों (एमपीए) के लिए फंडिंग को लेकर निराश हैं। वह कहते, “कुछ बड़ी संख्याएं सामने आईं, लेकिन इनमें से अधिकतर एमपीए के लिए नहीं थीं।”

यूके के गैंथम रिसर्च इंस्टीट्यूट की नीति विशेषज्ञ लीया रीटमियर मानती हैं कि फंडिंग गैप अब भी बड़ा है, लेकिन वह एक सकारात्मक संकेत देखती हैं। उनके अनुसार, “सम्मेलन में महासागर से जुड़े जोखिमों और अवसरों के प्रति विभिन्न हितधारकों की समझ में वृद्धि देखने को मिली।” 25 देशों की 80 कंपनियों ने “बिजनेस इन ओशन” आह्वान पर हस्ताक्षर किए और महासागर जोखिमों को अपनी रणनीति में शामिल करने का संकल्प लिया।

सम्मेलन में वन ओशन फाइनैंस फैसिलिटी की सह-डिजाइन प्रक्रिया भी शुरू हुई। यह एक मिश्रित वित्त तंत्र है जो महासागर-आधारित उद्योगों जैसे शिपिंग, पर्यटन, बंदरगाह, और समुद्री केबल्स से फंड जुटाकर महासागर संरक्षण में लगाएगा। यह सुविधा 2028 में लॉन्च होने की उम्मीद है। हालांकि तब तक एसडीजी 14 की समयसीमा को केवल दो बचेंगे जो इसकी समयबद्धता पर सवाल उठाते हैं।

वित्त पोषण के अन्य उपाय

सम्मेलन में अन्य वित्तीय नवाचारों की चर्चा भी हुई जिसमें निजी क्षेत्र की भागीदारी प्रमुख रही। इसमें “ब्लू बॉन्ड्स” शामिल हैं। यह एक प्रकार का ऋणपत्र है जिसके जरिए सरकारें महासागर-अनुकूल परियोजनाओं के लिए धन जुटा सकती हैं। लेकिन रीटमियर आगाह करती हैं कि यह एक ऋण संकट के समय में हो रहा है। यूके की डेट जस्टिस संस्था के अनुसार, 54 देशों के लोग पहले से ही ऋण संकट में जी रहे हैं। बिना पुराने ऋण सुलझाए नए बॉन्ड्स जारी करना संकट को और बढ़ा सकता है।

“डेट फॉर नेचर स्वैप” भी चर्चा में रहा, जिसमें विदेशी ऋण को खरीदकर स्थानीय मुद्रा में बदलकर संरक्षण परियोजनाओं के लिए उपयोग किया जाता है। लेकिन मैक्लेलन चेतावनी देती हैं कि इससे विदेशी संस्थाएं शर्तें थोप सकती हैं, जो निवेशक के लाभ को प्राथमिकता दे सकती हैं।

“पैरामीट्रिक बीमा” भी एक साधन है, जिसमें पूर्व निर्धारित पर्यावरणीय घटनाएं जैसे ही होती हैं (जैसे हीटवेव या बाढ़), स्वतः भुगतान हो जाता है। लेकिन इसकी सफलता के लिए विश्वसनीय और दीर्घकालिक आंकड़े जरूरी हैं, जो आजकल कई संस्थानों में बजट कटौती के कारण जोखिम में है। ग्लोबल फंड फॉर कोरल रीफ (जीएफसीआर) एक सार्वजनिक-निजी साझेदारी है जिसे 2020 में यूएन द्वारा शुरू किया गया था। सम्मेलन में इसका भी जिक्र हुआ। इसका लक्ष्य 500 मिलियन डॉलर जुटाना है। अब तक इसने 87.47 मिलियन डॉलर जुटाए हैं।

सम्मेलन से पहले 11 अप्रैल 2024 को अंतरराष्ट्रीय समुद्री संगठन ने नेट जीरो फ्रेमवर्क पेश किया, जिसके तहत 2028 से वैश्विक शिपिंग उत्सर्जन पर शुल्क लगेगा। यह लगभग 10 बिलियन डॉलर सालाना जुटा सकता है, लेकिन ओशन फाइनैंस रिपोर्ट के अनुसार, एक प्रत्यक्ष कार्बन लेवी 60 बिलियन डॉलर तक जुटा सकता है। निजी क्षेत्र से फंडिंग गेप भरने की उम्मीद पर कई विशेषज्ञ संदेह जताते हैं। ओ डॉनेल कहते हैं कि सरकारें मानती हैं कि कंपनियां स्वेच्छा से यह गैप भरेंगी, लेकिन ऐसा ऐतिहासिक रूप से नहीं हुआ है। मैक्लेलन कहती हैं कि निवेश पर लाभ की सोच अक्सर गलत समाधान देती है। उनके अनुसार, “हमें अनुदान की जरूरत है नहीं तो हम वित्तीय उपनिवेशवाद को और बढ़ाएंगे।”

2024 में तमिलनाडु ने विश्व बैंक से ऋण लेकर एन्नोर और अन्य तटीय क्षेत्रों में जैव विविधता और प्रदूषण नियंत्रण के लिए योजना बनाई है। एन्नोर के निवासी अब अपने क्षेत्र के पहले जैसा बनने की प्रतीक्षा कर रहे हैं।”

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