बुंदेलखंड राहत पैकेज घोटाला-2: स्कूटर और बाइक से ढोए गए 5-5 टन के पत्थर

बुंदेलखंड के पन्ना जिले में 9 वाटर शेड के कार्यों के भौतिक सत्यापन और वाउचर के परीक्षण में पता चला कि वन विभाग ने सभी नियम कायदों को ताक पर रख दिया
यह है छतरपुर किशनगढ़ में स्टॉप डैम की हालत। फोटो: संतोष पाठक
यह है छतरपुर किशनगढ़ में स्टॉप डैम की हालत। फोटो: संतोष पाठक
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संतोष पाठक
यदि सरकार सोच रही है कि उसकी योजनाएं जमीन पर पहुंचकर इलाकों का कायाकल्प कर रही हैं तो यह उसकी भारी भूल भी हो सकती है। योजनाएं जमीन पर पहुंचते-पहुंचते कैसे दम तोड़ जाती हैं बुंदेलखंड पैकेज इसका एक जीवंत दस्तावेज बनकर सामने आया है। केंद्र सरकार ने बदहाल बुंदेलखंड की सूरत बदलने को जो 7400 करोड़ रुपए का पैकेज दिया था, उसे राज्यों में तैनात हाकिमों ने मिलकर होम कर दिया। सिर्फ इतना ही नहीं, स्कूटर और मोटरसाइकिल के नंबरों पर 5-5 टन के पत्थर ढोकर घोटालेबाजों ने भ्रष्टाचार का रिकॉर्ड बनाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी। कागजों में कुएं खोद दिए गए तो समतल पथरीली जमीन कागजों में तालाब होने की गवाही देती मिली, लेकिन जांच में हुए खुलासों पर न तो प्रशासनिक अफसर गंभीर दिखे और न ही राज्य सरकार।
बुंदेलखंड के पन्ना जिले में 9 वाटर शेड के कार्यों के भौतिक सत्यापन और वाउचर के परीक्षण में यह बात साबित हो गई कि वन विभाग ने निर्माण कार्यों में सभी नियम कायदों को ताक पर रख दिया। अनियमितता इस कदर बरती गई कि जांच अधिकारियों ने रिपोर्ट में यह तक दावा कर दिया कि बुंदेलखंड पैकेज के कार्य शासकीय विभाग के अनुसार ना करते हुए किसी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की तरह निपटाई गई। फर्जी वाउचर द्वारा भुगतान करने की कोई भी सीमा ही नहीं रखी गई। इसके उदाहरण देते हुए जांच अधिकारी रिपोर्ट में कहते हैं कि कार्यों के दौरान लगभग 48 वाहनों का उपयोग दर्शाया गया। जांच समिति के 5 मार्च 2013 को जारी पत्र में जिला परिवहन अधिकारी पन्ना को वाहनों की पुष्टि करने के लिए लिखा गया, लेकिन पन्ना के आरटीओ ने जांच टीम के प्रशिासनिक अफसरों को कोई जवाब नहीं दिया। यह आश्चर्यजनक बात ही थी कि तत्कालीन आरटीओ पन्ना द्वारा महत्वपूर्ण जानकारियां आखिर क्यों छुपाई गई?
इसके बाद जांच अधिकारियों ने एमपी आरटीओ की वेबसाइट से इन वाहनों की पड़ताल की तो वह हैरान रह गए। रिकॉर्ड के अनुसार 6 वाटर शेड में ही 25 वाहनों का रजिस्ट्रेशन होना नहीं पाया गया। 23 वाहन में से अधिकांश वाहन ऐसे हैं, जो कि वाउचर में दर्शाए गए प्रकार से एकदम भिन्न हैं। जैसे कि वाउचर के अनुसार ट्रैक्टर एवं जेसीबी दर्शाए गए हैं, लेकिन आरटीओ रजिस्ट्रेशन के अनुसार यह वाहन मोटरसाइकिल, स्कूटर, स्कूटी, पेप ऑटो रिक्शा और इंडिगो टैक्सी के नाम पर दर्शाए गए हैं। यानि कि यह साफ हो रहा था कि 5-5 टन के पत्थर जिन वाहनों पर ढोए गए हैं वह कोई हैवी वाहन नहीं बल्कि स्कूटर और बाइक जैसे दो पहिया वाहन ही हैं।
पवन घुवारा कहते हैं कि उन्होंने किसी भी घोटाले में अधिकारियों की इतनी बेफिक्री कभी नहीं देखी। पन्ना और छतरपुर में खुलासा हुआ था कि विभाग ने अपने कामों के लिए जिन वाहनों का इस्तेमाल ट्रक, डंपर के रूप में बताया है, वे दरअसल मोटरसाइकिल और स्कूटर थे। कमलनाथ सरकार ने बुंदेलखंड पैकेज के सभी दस्तावेज तलब कर इसकी जांच आर्थिक अपराध ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) को सौंप दी है। ईओडव्ल्यू द्वारा पैकेज में हुए घोटाले की फाइल दोबारा खोलकर एक बार फिर गड़बड़ी के आरोपों से घिरे अफसरों की नींद उड़ा दी है।
2200 करोड़ के कार्य घोटाले के शिकार
मप्र के बुंदेलखंड को केंद्र से विशेष पैकेज के रूप में 3860 करोड़ रुपए मिले थे। इसमें से चार साल में दतिया समेत सागर संभाग को 3226 करोड़ रुपए मिले। राज्य सरकार ने विधानसभा में जो जानकारी दी उसके मुताबिक राशि में से 2800 करोड़ रुपए विभिन्न विभागों द्वारा बतौर एजेंसी व्यय किए गए। मध्य प्रदेश कांग्रेस मीडिया विभाग की अध्यक्ष शोभा ओझा कहती हैं, आरटीआई से सामने आईं जानकारियों के बाद स्थलीय निरीक्षण में कार्यों व खरीदी गई सामग्री की गुणवत्ता, मजदूरी के भुगतान में हुई गड़बड़ियों का आंकलन किया गया और पाया कि करीब 80 प्रतिशत यानी करीब 2200 करोड़ की धनराशि भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई। ईओडब्ल्यू की जांच से बुंदेलखंड पैकेज घोटाले की दबी पर्तें जरूर खुलने की उम्मीद है।
सबसे ज्यादा जल संसाधन विभाग को मिला था फंड
पैकेज से सबसे ज्यादा राशि 1340 करोड़ रुपए जल संसाधन विभाग को मिले थे। इस राशि से उन्हें 6 जिलों में नहर निर्माण और सिंचाई परियोजनाओं के लिए खर्च करने थे। जांच की गई तो सामने आया कि विभाग द्वारा बनवाए गए ज्यादातर बांध और तालाबों में घटिया सामग्री का इस्तेमाल किया गया। इसके अलावा वन विभाग को चेकडेम के लिए 180 करोड़ रुपए दिए थे।
वन विभाग ने खोदे तालाब, मौके पर नहीं मिले
वन विभाग द्वारा कोर एरिया में बनाए गए तालाब खोदे ही नहीं गए। हाईकोई के निर्देश पर जब टीम जांच करने निकली तो वह वन विभाग द्वारा खोदे गए कई तालाबों को जमीन पर नहीं ढ़ूंढ़ पाई। इसी तरह पीएचई में 300 में से 100 करोड़ रुपए में गड़बड़ी मिली। कृषि विभाग के तहत 614 करोड़ से डीजल पंप वितरण,मंडी का निर्माण, वेयर हाउस आदि के कामों में भी शिकायतें मिली। ग्रामीण विकास विभाग के 209 करोड़ रुपए के काम ग्राउंड पर दिखाई ही नहीं दिए। अब इतना तो साफ है कि ईओडव्ल्यू की जांच में बुन्देलखण्ड पैकेज की दबी फाइलें भी निकलेंगीं और उन अधिकारियों पर भी शिकंजा कसा जाएगा जिन्होंने पैकेज के कार्यों में गंभीर अनियमितताएं बरतीं। मध्य प्रदेश में तो घोटाले की जांच एक बार फिर शुरू हो गई है, लेकिन उत्तर प्रदेश के 7 जिलों में बुंदेलखंड  पैकेज घोटाले की फाइल को भी जांच की दरकार है।

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