बजट 2022-23: आजादी के 75 साल पूरे होने में केवल 70 सप्ताह बाकी, क्या ‘नया भारत’ बना पाएंगे मोदी

चार ट्रिलियन इकॉनोमी के वादे से लेकर महिलाओं को रोजगार और गरीबी कम करने, 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने जैसे लक्ष्यों को पाने में सरकार पहले से पीछे है
‘नए भारत’ के निर्माण की परिकल्पना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले से कर रखी थी। फोटो: पीआईबी
‘नए भारत’ के निर्माण की परिकल्पना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले से कर रखी थी। फोटो: पीआईबी
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साल 2018 में देश के पास कोई पुरानी राष्ट्रीय योजना नहीं थी। पंचवर्षीय योजना का युग बीत चुका था और 12वीं पंचवर्षीय योजना का कार्यकाल 2017 में पूरा हो चुका था। इसके काफी पहले 13 अगस्त 2014 को योजना आयोग को खत्म कर दिया गया था। इसकी जगह नीति आयोग का गठन किया गया था, जिसका अर्थ है नेशनल इंस्टीट्यूशन फॅार ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया।

नीति आयोग ने योजना-विहीन देश को आखिरकार जो विजन दिया, उसका नाम था-75वें साल में नए भारत की रणनीति। देश के विकास के लिए जरूरी और ऐच्छिक नीतियों को इसमें शामिल किया गया। 

इस विजन में ‘नए भारत’ का निर्माण करना है, जिसकी परिकल्पना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले से कर रखी थी। इस ‘नए भारत’ का निर्माण देश की आजादी के 75वें साल यानी 2022-23 तक करने का वायदा उन्होंने किया था।

अब जब इस ‘नए भारत’ के निर्माण में मुश्किल से 70 सप्ताह का समय बाकी है, इसकी प्रगति को देखना जरूरी हो जाता है। उससे पहले यह देखा जाए कि इस लक्ष्य को पाने का रोडमैप क्या है। नीति आयोग के रणनीतिक पेपर के मुताबिक, ऐसे 41 क्षेत्र हैं, जिनमें लक्ष्य हासिल करने का विजन है।

विजन डॉक्यूमेंट में इन लक्ष्यों को हासिल करने के कुछ संचालकों की सूची बनाई गई है। इसमें रोजगार, आर्थिक वृद्धि, किसानों की आय को दोगुना करना, सभी के लिए आवास का इंतजाम करना और सेवा-क्षेत्र को प्रोत्साहन देना शामिल है। इसमें गरीबी कम करने या उसे हटाने का अलग से कोई जिक्र नहीं किया गया है, बल्कि इसके मुताबिक, अगर इन लक्ष्यों को हासिल कर लिया जाता है तो गरीबी पर अपने आप इसका असर पड़ेगा।  
इंडिया-75 विजन के अंतर्गत कम से कम 17 ऐसे लक्ष्य हैं, जिन्हें 2022 के अंत तक हासिल किया जाना है। सरकार द्वारा दिए गए सभी आंकड़ों का उपयोग कर स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरमेंट (एसओई) 2022 में प्रकाशित एक विश्लेषण में पाया गया कि इन लक्ष्यों की दिशा में प्रगति धीमी है ,जिसके चलते इस साल इन्हें पूरा करने की संभावना कम है।    

विजन का मुख्य लक्ष्य, 2017-18 की प्रति व्यक्ति आय 1,900 अमेरिकी डॉलर को 2022-23 तक यानी 31 मार्च 2023 तक तीन हजार अमेरिकी डॉलर करना है। ‘नए भारत’ के लक्ष्य को हासिल करने के लिए इस आय-वृद्धि को जरूरी शर्त बना दिया गया। विजन की रणनीति के अनुसार ‘ यही आय-वृद्धि हमें आम भारतीय को गंदगी, अशिक्षा, भ्रष्टाचार, गरीबी, कुपोषण और खराब कनेक्टिविटी से मुक्ति दिलाने में सक्षम बना सकती है।’  

2021-22 में केंद्र सरकार के ताजा आंकड़ों के हिसाब से देश की प्रति व्यक्ति आय लगभग 1,258 अमेरिकी डॉलर यानी 93,973 रुपये है, जो कि 2017-18 की प्रति व्यक्ति आय से भी कम है। पिछले दो साल से महामारी ने देश की आर्थिक मंदी को गति दी है, जो 2016 में शुरू हुई थी।
अगले 70 सप्ताह में 2022-23 तक तीन हजार अमेरिकी डॉलर प्रति व्यक्ति आय के लक्ष्य को पाने के लिए हमें प्रति व्यक्ति आय को दोगुने से भी ज्यादा बढ़ाना होगा। आर्थिक वृद्धि की मौजूदा गति को अनदेखा कर ही इसे हासिल किया जा सकता है, जिसकी कल्पना केवल चमत्कार के रूप में की जा सकती है।

विजन-75 के लिए एक और महत्वपूर्ण संकेतक जो प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि के लिए महत्वपूर्ण है, वह है- 31 मार्च, 2023 तक देश के सकल घरेलू उत्पाद को 4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ाना। यह लक्ष्य भी 2021 के वित्तीय वर्ष के अंत तक 1.5 ट्रिलियन डॉलर के साथ हासिल होने के रास्ते पर नहीं है।

निःसंदेह भारत में पिछले कुछ सालों में गरीबी का स्तर बढ़ा है, फिर भी 2011 के बाद से हमारे पास इसके आधिकारिक आंकड़े नहीं हैं। पिछले साल दिसंबर में नीति आयोग ने एक संकेतक जारी किया था, जिसमें गरीबी के स्तर और उसकी प्रभावशीलता को जांचने के लिए स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन-स्तर को संकेतक माना गया था। इसके मुताबिक, देश की 25.01 फीसदी आबादी बहुआयामी गरीबी का सामना कर रही है।

विश्व बैंक के आंकड़ों का उपयोग करते हुए प्यू रिसर्च सेंटर ने अनुमान लगाया है कि भारत में गरीबों की संख्या (जो प्रति दिन 2 डॉलर या उससे कम कमाते हैं ) महामारी के कारण केवल एक साल में दोगुनी से ज्यादा, यानी छह करोड़ से बढ़कर 13.4 करोड़ हो गई है। इसका मतलब है कि भारत 45 सालों के बाद ‘सामूहिक गरीबी का देश’ कहलाने की स्थिति में वापस आ गया है।

इससे 1970 से गरीबी कम करने की दिशा में चल रहा भारत का प्रयास भी थम गया है। इससे पहले भारत ने आजादी के बाद पहली बार गरीबी में वृद्धि दर्ज की थी। तब 1951 से 1974 तक, गरीबों की आबादी कुल आबादी के 47 से बढ़कर 56 प्रतिशत हो गई थी।

प्रति व्यक्ति आय और उससे पूरी अर्थव्यवस्था का आकार बढ़ाने के लिए विजन-75 में रोजगार बढ़ाने खासकर महिलाओं के श्रम योगदान को 2022-23 तक 30 फीसदी करने का लक्ष्य है। हालांकि सरकारी आंकड़ों की ही मानें तो इस मोर्चे पर भी प्रगति धीमी है। जनवरी-मार्च 2021 तक यह महज 16.9 फीसदी थी।  सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के दिसंबर 2021 के बेरोजगारी के आंकड़ों के मुताबिक, नौकरी की तलाश में लगे देश के साढ़े तीन करोड़ बेरोजगार लोगों में 23 फीसदी महिलाएं थीं।

सरकार के ‘नए भारत’ निर्माण में अगला वादा 2022 तक किसानों की आय 2015-16 की तुलना में दोगुनी करना है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा हाल ही में जारी राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण, में परिवारों की भूमि, पशुधन और कृषि परिवारों की स्थिति के आकलन के 77वें दौर में ऐसे कुछ संकेतक हैं कि क्या इस वादे को पूरा किया जा सकता है।
किसान परिवारों की मासिक आय 2012-13 की तुलना में 59 फीसदी बढ़ चुकी है। सालाना यह वृद्धि 7.8 फीसदी है। इस वृद्धि का सही आकलन करने के लिए इसे सालाना महंगाई की दर के साथ देखना होगा। महंगाई के साथ समायोजित करने पर यह आय केवल ढाई फीसदी बढ़ी है।  

सर्वेक्षण यह भी दर्शाता है कि सर्वेक्षण के दो दौर में 2012 से 2018 के दौरान खेती से आय वास्तव में कम हुई है। इस दौरान एक कृषि परिवार में खेती से होने वाली आय केवल 38 फीसदी रह गई है, जो 2013 में 48 फीसदी थी। उनकी आय बढ़ने में योगदान मजदूरी और पशुधन से मिलने वाले पैसे का है। मजदूरी उनके परिवार की आय बढ़ाने में सबसे बड़ी भूमिका निभाती है।
इस साल ‘नए भारत’ लक्ष्यों के अलावा, देश को 2030 तक सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को भी पूरा करना है, जिनमें से अधिकांश को भारत-75 विजन के तहत लिया गया है। बर्टेल्समैन स्टिफ्टंग एंड सस्टेनेबल डेवलपमेंट सॉल्यूशंस नेटवर्क द्वारा एसडीजी इंडेक्स और डैशबोर्ड रिपोर्ट 2021 की मानें तो सतत् विकास लक्ष्यों की दिशा में भारत की रैंक 192 देशों में 120वीं है, पिछले एक साल में इसमें तीन पायदान की गिरावट आई है। 
प्राथमिक तौर पर ऐसा 11 चुनौतीपूर्ण सतत विकास लक्ष्यों में भारत की स्थिति के चलते हुआ है, इसमें बाकियों के अलावा एसडीजी -2 (भूख को शून्य पर लाना), एसडीजी -3 (अच्छा स्वास्थ्य और सुखी रहना), एसडीजी -5 (लैंगिक समानता), और एसडीजी -11 (दीर्घकालिक शहर और समुदाय) शामिल हैं। इस सूची में भारत, पाकिस्तान को छोड़कर बाकी सारे दक्षिण एशियाई देशों से पीछे हैं।

नीति आयोग की एसडीजी इंडेक्स 2020-21 दिखाती है कि नौ राज्यों ने एसडीजी-1 (गरीबी मुक्त) में राष्ट्रीय औसत 60 से कम अंक हासिल किए है। भारत ने एसडीजी -2 (भूख को शून्य पर लाना) और एसडीजी - 5 (लैंगिक समानता) में 50 से कम अंक पाए। देश के 11 राज्यों ने इन दो एसडीजी में राष्ट्रीय औसत से भी कम अंक हासिल किए।

सतत् विकास लक्ष्यों को साकार करने में जब एक दशक से भी कम समय बचा है, देश के दो सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्यों उत्तर प्रदेश और बिहार में एसडीजी-11 और एसडीजी-14 राष्ट्रीय औसत से भी नीचे है। इन एसडीजी में अन्य लक्ष्यों के अलावा गरीबी, भूख से निपटना, शिक्षा और आर्थिक वृद्धि शामिल है।

जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इंडिया-75 और ‘नए भारत’ के लक्ष्य का विजन रखा था तो उनकी आस्था में कोई खामी नहीं थी। उन्होंने कहा था कि जिस तरह महात्मा गांधी के 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के केवल पांच साल बाद ही हमें आजादी मिल गई थी, वैसे ही पांच सालों में नए भारत का लक्ष्य हासिल किया जा सकता है। उन्होंने नए भारत के लिए ‘जन आंदोलन’ की अपील भी की थी।

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