ए. टी. आर्यरत्ने, वो नाम है, जो श्रीलंका में आंदोलन चला कर गांवों की मूलभूत जरूरतों को पूरा करने का काम कर रहे हैं। उन्होने बुद्ध व गांधी के सर्वोदय दर्शन के आधार पर एक आंदोलन चलाया, जो ‘सर्वोदय श्रमदान आन्दोलन’ नाम से प्रसिद्ध है। आर्यरत्ने के अनुसार, सभी के उदय के लिए किया गया श्रमदान ही इस आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य है।
उन्होंने इसे एक शैक्षणिक प्रयोग कहा है, क्योंकि इसकी शुरुआत श्रीलंका की राजधानी कोलोंबो के नालंदा कॉलेज से 40 छात्र एवं 12 शिक्षकों के साथ मिलकर किया। इस छात्र-शिक्षकों के समूह को ‘नालंदा कॉलेज सोशल सर्विस लीग’ कहा गया। इन सभी व्यक्तिओं ने सर्वप्रथम एक निम्न-स्तरीय पिछड़ा हुआ गांव कनाटोलुवा को चुना और वहां दो सप्ताह के लिए गए। वहां जाकर गांव की मूलभूत समस्याओं को पहचान कर, उसे दूर करने के लिए श्रमदान कैंप की स्थापना की।
इस कैंप के तहत अपनी श्रमदान के साथ गांव के लोगों को भी श्रमदान करने के लिए प्रेरित किया। वे सभी स्थानीय निवासियों के साथ गांव के लिए काम करने लगे, जिसमें कुआं बनाना, सड़क, विद्यालय, अस्पताल को तैयार करना तथा पेड़-पौधे लगाने के साथ ग्रीन मैदान तैयार का करना शामिल हैं। यह आन्दोलन अब तक 15 हजार से ज्यादा गांवों में पहुँचने में सफल रहा हैं।
यह आन्दोलन मुख्य रूप से दस प्रकार के प्राथमिक जरूरतों को पूर्ति के उद्देश्य से चलता है, जिसमें स्वच्छ वातावरण, स्वच्छ व पर्याप्त पानी की पूर्ति, जरुरत के हिसाब से कपड़े, संतुलित आहार, साधारण रहने योग्य घर, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, साधारण संचार की सुविधाएं, जरुरत के अनुसार ऊर्जा, सभी के लिए सभी तरह की शिक्षा तथा सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक जरूरतें शामिल हैं।
सर्वोदय श्रमदान आन्दोलन ने अपने दशक में बौद्ध शिक्षणों एवं मूल्यों पर आधारित एक नई सामाजिक व्यवस्था स्थापित करने के लिए श्रमदान कैंप की शुरुआत किया। श्रीलंका में सौ से अधिक श्रमदान कैंप लगाए गए, ताकि ग्रामीण समुदाय के लोगों को सहायता मिल सकें या गांवों से गरीबी दूर किया जा सकें।
आर्यरत्ने के अनुसार, व्यक्तिगत जागरूकता ही व्यक्तित्व का विकास है। सभी मनुष्यों के पास क्षमता हैं कि वे निर्वाण प्राप्त कर सकें, ताकि अपना व्यक्तित्व एवं सामाजिक स्थिति को बेहतर बना सकें। उनका यह आन्दोलन बुद्ध के चार आर्य सत्यों का सामाजिक पड़ताल करता है। और इसके आधार पर कहता है कि जैसे प्रथम आर्य सत्य दुःख है। उसी अनुसार, हमें पहले गांव के दुखों की पहचान करना चाहिए; जैसे- गरीबी, बीमारी, उत्पीड़न आदि।
दूसरा आर्य सत्य है- दुःख का कारण। इसके सामाजिक अवलोकन में गांवों की पत्तानोंमुखी स्थिति का एक या उससे अधिक कारण हो सकता है| जिसमें अहंकार, प्रतिस्पर्धा, अज्ञानता और एकता का अभाव हो सकता है।
तीसरा आर्य सत्य निरोध है, जिसे निर्वाण की सांकेतिक माना जाता है| अगर समस्या है तो समाधान भी अवश्य होगा अर्थात् गांवों की दुखों को समाप्त किया जा सकता है| इसे समाप्त करने के लिए जो मार्ग बतलाई गयी हैं, उसे ही चौथा आर्य सत्य कहा गया है| जिसमें आठ उचित मार्ग पर चलने को कहा गया है, जिसे अष्टांगिक मार्ग कहा जाता है| जॉन मैकी अष्टांगिक मार्ग के सम्यक सति की व्याख्या करते हुए कहते हैं कि गांवों की जरुरत के प्रति हमेशा ध्यान रखना चाहिए; जैसे- पानी, सड़क, स्कूल, अस्पताल, शौचालय आदि| अगर लोग अपने आसपास के सांसारिक सत्यों के प्रति जागरूक हैं तो ही वह बदलाव महसूस कर सकते हैं|