सतत विकास लक्ष्य: साढ़े तीन दशक पीछे चल रहा है एशिया-प्रशांत, जलवायु परिवर्तन के मामले में  6 अंक पिछड़ा भारत

सतत विकास लक्ष्य: साढ़े तीन दशक पीछे चल रहा है एशिया-प्रशांत, जलवायु परिवर्तन के मामले में 6 अंक पिछड़ा भारत

जलवायु परिवर्तन के खिलाफ की जा रही कार्रवाई के मामले में भारत की स्थिति पहले से बदतर हो गई है
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जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक आपदाओं और कोविड-19 महामारी ने न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया पर व्यापक असर डाला है, जिसका प्रभाव सतत विकास के लक्ष्यों (एसडीजी) पर भी साफ देखा जा सकता है।

इस बारे में संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी हालिया रिपोर्ट “एशिया एंड द पैसिफिक एसडीजी प्रोग्रेस रिपोर्ट 2022” से पता चला है कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र अपने एसडीजी लक्ष्यों को हासिल करने के लिए तय समय सीमा यानी 2030 से करीब साढ़े तीन दशक पीछे चल रहा है।

गौरतलब है कि इस रिपोर्ट को एशिया-प्रशांत क्षेत्र के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा गठित आर्थिक और सामाजिक आयोग (यूएन ईएससीएपी) द्वारा जारी किया गया है। 

इसका मतलब है कि यदि इन लक्ष्यों की प्रगति इसी गति से बढ़ती है तो इस क्षेत्र को इन्हें हासिल करने के लिए अभी 2065 तक इंतजार करना होगा। यदि सिर्फ भारत की बात करने तो देश जलवायु परिवर्तन, भुखमरी, लैंगिक समानता और शिक्षा जैसे लक्ष्यों को हासिल करने से काफी दूर है।

रिपोर्ट से यह भी पता चला है कि इन लक्ष्यों के मामले औसत प्रगति दर्ज की गई है। हालांकि इसके बावजूद महिलाओं, विकलांगों, ग्रामीण आबादी और गरीब तबके की समस्याएं पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा बढ़ गई हैं। महामारी के दौरान कमजोर तबके से सम्बन्ध रखने वाले लोगों की शिक्षा, खाद्य सुरक्षा और आजीविका की स्थिति में गिरावट दर्ज की गई है। 

यदि भारत की बात करें तो अनुसूचित जनजाति की जहां 50.6 फीसदी आबादी गरीबी की मार झेल रही हैं वहीं अनुसूचित जाति की 33.3 फीसदी और अन्य पिछड़े वर्ग की करीब 27.2 फीसदी आबादी देश में गरीबी से त्रस्त है। 

हर गुजरते साल के साथ पहुंच से दूर होते जा रहे हैं लक्ष्य 

कुल मिलकर रिपोर्ट का कहना है कि हाल के वर्षों में इन लक्ष्यों को हासिल करने की चुनौतियां बढ़ती ही जा रही हैं। जिसके लिए जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक आपदाएं और कोरोना महामारी जिम्मेवार है। देखा जाए तो सतत विकास के इन 17 लक्ष्यों की प्रगति बहुत धीमी हो गई है। हर गुजरते साल के साथ यह लक्ष्य समय सीमा की पहुंच से बाहर होते जा रहे हैं। 

समय के साथ जलवायु संकट और गहराता जा रहा है। इसके बावजूद एशिया पैसिफिक क्षेत्र में लक्ष्य 12 (ज़िम्मेदारी के साथ उपभोग और उत्पादन) और लक्ष्य 13  (जलवायु कार्रवाई) वापस ढर्रे पर लौट आए हैं। इसके बावजूद उद्योग, नवाचार और बुनियादी ढांचे का विकास (लक्ष्य 9) और सस्ती और साफ-सुथरी ऊर्जा (लक्ष्य 7) जैसे लक्ष्यों में कुछ प्रगति दर्ज की गई है, हालांकि इसके बावजूद इस गति से 2030 तक उन्हें हासिल करना मुश्किल है।

देखा जाए तो वर्ष 2000 की तुलना में यह क्षेत्र कम से कम 35 फीसदी ज्यादा ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जित कर रहा है। जिसके 80 फीसदी के लिए केवल पांच देश (चीन, भारत, जापान, दक्षिण कोरिया और रूस) जिम्मेवार हैं। तेजी से बढ़ता यह उत्सर्जन जलवायु परिवर्तन के खतरे को और बढ़ा रहा है नतीजन 2015 के बाद से इस क्षेत्र में प्राकृतिक आपदा प्रभावित लोगों की संख्या दोगुनी से ज्यादा हो गई है। हालांकि सभी देश उत्सर्जन में कमी करना चाहते हैं इसके बावजूद जीवाश्म ईंधन को दी जा रही सब्सिडी में वृद्धि दर्ज की गई है। 

वहीं लक्ष्य 4 (गुणवत्तापरक शिक्षा), लक्ष्य 5 (लैंगिक समानता), लक्ष्य 6 (जल एवं स्‍वच्‍छता), लक्ष्य 8 (उत्‍कृष्‍ट कार्य और आर्थिक विकास), लक्ष्य 11 (संवहनीय शहरी और सामुदायिक विकास), और लक्ष्य 14 (जलीय जीवों की सुरक्षा (जलीय जीवन) जैसे लक्ष्यों के विकास की धुरी थम से गई है।          

हालांकि इस रिपोर्ट में जो रुझान सामने आए हैं वो परेशान करने वाले हैं, इसके बावजूद रिपोर्ट में एक जो सकारात्मक पक्ष सामने आया है वो यह है कि आंकड़ों की उपलब्धता पहले के मुकाबले बेहतर हुई है। पता चला है कि एसडीजी संकेतकों की संख्या के साथ 2017 से इन आंकड़ों की उपलब्धता करीब दोगुनी हो गई है।

देखा जाए तो राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों के बीच बढ़ते सहयोग ने डेटा की उपलब्धता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। रिपोर्ट की मानें तो यह सहयोग जरुरी भी है क्योंकि 169 एसडीजी लक्ष्यों में से 57 को अभी भी आंकड़ों की कमी के चलते मापा नहीं जा सका है।

जलवायु परिवर्तन, शिक्षा, भुखमरी और असमानता जैसे लक्ष्यों से अभी भी काफी दूर है देश

यदि नीति आयोग द्वारा एसडीजी सम्बन्धी आंकड़ों को देखें तो जलवायु परिवर्तन के खिलाफ की गई कार्रवाई के मामले में भारत की स्थिति पहले से बदतर हो गई है। जहां 2019 में इस मामले में भारत को 60 अंक दिए गए थे वो 2020 में घटकर 54 रह गए हैं। ऐसे में इस बात की सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि महामारी ने इसपर भी व्यापक असर डाला है।

देखा जाए तो महामारी ने पूरी दुनिया में स्वास्थ्य सुविधाओं पर असर डाला है। इसी का नतीजा है कि 2020 में एशिया प्रशांत क्षेत्र के करीब 80 लाख बच्चों का नियमित टीकाकरण नहीं हो पाया था। यदि सिर्फ भारत से जुड़े आंकड़ों को देखें तो जहां 2019 में 21 लाख बच्चे नियमित टीकाकरण से वंचित रह गए थे वहीं 2020 में महामारी के दौरान यह आंकड़ा बढ़कर 35 लाख पर पहुंच गया था। 

इसी तरह एसडीजी के लक्ष्य 6 जोकि साफ पानी और स्वच्छता से जुड़ा है उसमें भी भारत की स्थिति पहले से खराब हुई है। जहां 2019 में इस मामले में भारत को 88 अंक दिए गए थे वो 5 अंक घटकर 2020 में 83 रह गए हैं। वहीं सस्ती और साफ सुथरी ऊर्जा ही एकलौता ऐसा क्षेत्र है जहां भारत की स्थिति काफी मजबूत है। गौरतलब है कि जहां इस मामले में भारत का स्कोर 70 था वो 2020 में 22 अंक बढ़कर 92 पर पहुंच गया था। 

वहीं गरीबी उन्मूलन के मामले में भी इस दौरान 10 अंकों का सुधार आया है जहां 2020 में स्कोर 60 पर पहुंच गया है। हालांकि इसके बावजूद वो लक्ष्यों से काफी दूर है। इसी तरह 2019 से 2020 के बीच भुखमरी के हालात में 12 अंकों का सुधर आया है इसके बावजूद वो 2020 में केवल 47 तक पहुंचा है। यदि शिक्षा के क्षेत्र को देखें तो इसमें एक अंकों की गिरावट आई है और वो 2020 में 57 पर पहुंच गया है।

इसी तरह इस अवधि के दौरान उद्योग, नवाचार और बुनियादी ढांचे सम्बन्धी विकास में 10 अंकों की गिरावट दर्ज की गई है जो 65 से घटकर 55 पर पहुंच गया है। वहीं लैंगिक समानता यानी लक्ष्य 5 को देखें तो इस मामले में देश की स्थिति थोड़ी सुधरी है और वो 42 से बढ़कर 48 पर पहुंच गई है इसके बावजूद वो 2030 के लक्ष्यों से काफी पीछे है। 

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