नई सरकार, नई उम्मीदें : वापस लाना होगा भरोसा

हमें विकास का एक नया नजरिया चाहिए जो धरती के लिए तो फायदेमंद हो ही, साथ ही हर एक व्यक्ति के लिए भी काम करे
Sustainable development
हमें विकास का एक नया नजरिया चाहिए जो धरती के लिए तो फायदेमंद हो ही, साथ ही हर एक व्यक्ति के लिए भी काम करे; फोटो: आईस्टॉक

केंद्र की नई गठबंधन सरकार शपथ ले चुकी है। अब आगे सरकार की नीतियां और उनका तय किया गया रास्ता हमारा भविष्य तय करेगा। इस नई सरकार से देश को आखिर किन वास्तविक मुद्दों पर ठोस काम की उम्मीद करनी चाहिए ? नई सरकार, नई उम्मीदें नाम के इस सीरीज में हम आपको ऐसे ही जरूरी लेखों को सिलसिलेवार पेश करेंगे।  इस कदम में यह पहली किश्त है, जिसका आगाज पर्यावरणविद सुनीता नारायण के लेख से हो रहा है ...

नई सरकार को भरोसा वापस लाना होगा। इसके लिए उसे विचारों, राय और सूचनाओं के प्रति सहिष्णु होना होगा। जमीनी स्तर की संस्थाओं को मजबूत करना जरूरी है, क्योंकि भागीदारी लोकतंत्र ही विकास को सही तरीके से लोगों तक पहुंचा सकता है। जलवायु परिवर्तन के इस दौर में, सरकार को विकास को फिर से इस तरह बनाना होगा कि वह सभी को शामिल करे, किफायती हो और टिकाऊ हो।

नई सरकार के लिए एजेंडा तो वही पुराना ही है, लेकिन एक बुनियादी फर्क के साथ। सबसे बड़ी बात ये है कि प्राथमिकता वाले कामों की लिस्ट वही बनी हुई है। चाहे बिजली हो, पानी हो, सफाई हो, खाना हो, या फिर सेहत और पढ़ाई- हर जगह हमारा काम अधूरा रह गया है। ये तो हम जानते हैं कि सरकार के पास इन सबके लिए योजनाएं हैं और बजट भी तय है। ये भी जानते हैं कि लोगों की भलाई और कल्याण सुनिश्चित करना एक लगातार चलने वाला काम है।

चुनाव के दौरान, जब पत्रकार लोगों की राय लेने निकलते हैं, और शायद यही वो वक्त होता है जब उनकी राय मायने रखती है, तो हमें ये सुनने को मिला कि बेरोजगारी सबसे बड़ी चिंता है। साफ पीने का पानी और शौचालय जैसी बुनियादी चीजों तक की कमी है। बिजली की कमी और महंगे रसोई गैस सिलिंडर जैसी परेशानियां बनी हुई हैं। किसान अभी भी परेशान हैं। लिहाजा बहुत सारे काम अभी बाकी हैं, और वो भी उन क्षेत्रों में जिन्हें पिछली सरकार ने अपनी 'करने वाली चीजों की लिस्ट' से पूरा हुआ बता दिया था।

इसमें कोई ताज्जुब नहीं होना चाहिए। भारत बहुत बड़ा देश है, गवर्नेंस में काफी कमी वाला देश। किसी भी सरकारी योजना का मकसद ये है कि वो लोगों तक पहुंचे ,सिर्फ एक बार नहीं, बल्कि हर बार। मौजूदा दौर में हम जलवायु परिवर्तन का असर भी देख रहे हैं। हमारे आंकड़ों से पता चलता है कि हर रोज देश का कोई न कोई हिस्सा किसी ना किसी प्राकृतिक आपदा से जूझ रहा है। इसका विकास योजनाओं पर बहुत बुरा असर पड़ता है। बेमौसम बारिश और बहुत ज्यादा गर्मी या ठंड की वजह से बाढ़, सूखा और लोगों के रोजगार नष्ट हो जाते हैं, जिससे सरकार के संसाधनों पर और बोझ बढ़ जाता है। इसका मतलब है कि विकास को और तेजी से, बड़े पैमाने पर करना होगा।

लेकिन इन सब चीजों को बदलने के साथ-साथ और भी बहुत कुछ करने के लिए नई सरकार की योजना कुछ तरीकों से अलग होनी चाहिए।

पहली बात, नई सरकार को संस्थाओं को मजबूत करना होगा ताकि लोगों की राय ली जा सके और सरकार जवाबदेह बने। जो लोग अलग राय रखते हैं, वो देश के दुश्मन नहीं होते। अलग-अलग तरह की जानकारी मिलना सरकार की आलोचना या विरोध नहीं है। ऐसी खबरों और विश्लेषणों को विकास का हिस्सा समझना चाहिए। जितना ज्यादा हम यह जान पाएंगे कि कौन सी योजनाएं काम कर रही हैं और कौन सी नहीं, उतनी ही अच्छी तरह से सरकार काम करेगी।

अभी, ज्यादातर असहमति की आवाजों को दबा दिया गया है। शायद ये जानबूझकर नहीं किया गया, लेकिन ये संदेश दिया जाता है कि सरकार सिर्फ वही सुनना पसंद करती है जो वो सुनना चाहती है। ये एक ऐसे कमरे जैसा है जहां सिर्फ चियरलीडर्स ही रहते हैं। मेरी राय में, इससे सरकार कमजोर हो जाती है- उन्हें कुछ पता नहीं चलता और वो सीख भी नहीं पाते।

इसलिए, नई सरकार को खुले दिमाग से काम करना होगा। इसका मतलब ये नहीं है कि हर किसी को सरकारी समितियों में शामिल किया जाए, बल्कि जानकारी, विचारों और रायों को स्वीकार करना जरूरी है। असहमति के स्वरों पर सहिष्णुता जरूरी है। भरोसा बनाना बहुत जरूरी है, न सिर्फ योजनाओं की सफलता के लिए बल्कि समाज के विकास के लिए भी।

दूसरी बात, हमें नए भारत के लिए नई संस्थाओं की जरूरत है। पिछले कुछ सालों में, ज्यादातर पुरानी संस्थाओं को जानबूझकर या फिर लापरवाही से कमजोर कर दिया गया है। सरकार आपको शायद ये बताए कि ये संस्थाएं अपना काम ठीक से नहीं कर रहीं थीं, इसलिए इन्हें खत्म कर दिया गया। लेकिन असल बात ये है कि इन संस्थाओं के जरूरी कामों को करने के लिए कोई नया इंतजाम नहीं किया गया है। उदाहरण के लिए, प्रदूषण को रोकने वाली संस्थाओं को ही ले लीजिए। वो अब बेमतलब हो गई हैं, कुछ नहीं कर पा रही हैं। शायद इसलिए क्योंकि जब उनके पास ताकत थी, तो कुछ लोगों ने प्रदूषण रोकने के काम में से ही पैसा कमाया होगा। लेकिन सच ये है कि प्रदूषण रोकने के लिए ऐसी संस्थाओं की जरूरत है जो जिम्मेदारी के साथ सख्ती से काम कर सकें और मुश्किल फैसले लेने में सक्षम हों। आज ये सब बिल्कुल खत्म हो चुका है। इसलिए ये कोई ताज्जुब की बात नहीं है कि हमारे नदी-नालों और हवा में पहले से ज्यादा प्रदूषण हो गया है।

इस स्थिति को बदलने के लिए, हमें दो तरह के सुधार करने होंगे। पहला, हमें जमीनी स्तर की संस्थाओं को मजबूत करना होगा, जिनमें स्थानीय लोग भाग ले सकें। विकास कार्यक्रमों को सफल बनाने के लिए हमें जन-भागीदारी वाले लोकतंत्र की जरूरत है। देश के ग्रामीण क्षेत्रों के लिए पंचायती राज और शहरी क्षेत्रों के लिए नगरपालिका प्रणाली के जरिए जनता के संस्थानों को मजबूत बनाने के लिए संविधान में 73वें और 74वें संशोधन को मंजूरी दिए हुए अब 30 साल से ज्यादा हो चुके हैं। हमने ग्रामसभाओं को मजबूत बनाकर लोकतंत्र को और गहरा करने का प्रयोग कर चुके हैं। लेकिन ये सब अधूरा काम है।

प्राकृतिक संसाधनों पर गांव और शहर की सरकारों को नियंत्रण देने के लिए हमें अभी बहुत कुछ करना बाकी है। हमें उनकी योजनाओं और फंडों का प्रबंधन करने, हरित रोजगार यानी पर्यावरण के अनुकूल जॉब पैदा करने, और प्राकृतिक संसाधनों में निवेश करने की जरूरत है। हमें लोकतंत्र के शोर का स्वागत करना चाहिए।

तीसरी बात, विकास योजनाओं को बनाने में नई सोच की जरूरत है। बहुत समय से सरकारें दो रास्तों पर फंसी रहीं हैं - एक तरफ कल्याणकारी योजनाएं, जिन्हें अक्सर 'मुफ्तखोरी' समझ लिया जाता है, और दूसरी तरफ कम से कम सरकारी दखल वाला पूंजीवादी तरीका। मेरी राय में, जलवायु परिवर्तन के इस दौर में विकास की नई सोच की जरूरत है। सरकार को विकास के तरीकों को फिर से बदलना होगा ताकि सबको फायदा हो, खर्चा कम आए और इस तरह वो टिकाऊ भी रहे।

इसका मतलब है कि हमें लगभग हर क्षेत्र में अपने काम करने के तरीकों को फिर से तय करने, सोचने की जरूरत है। मसलन, हमें ऐसी सफाई व्यवस्था बनानी होगी जिसके लिए ज्यादा पैसा या संसाधन न लगे। साथ ही, बिजली तक पहुंच ऐसी होनी चाहिए कि वो स्वच्छ तो हो ही, लेकिन सबसे ज्यादा जरूरी है कि वो सस्ती भी हो। इसके लिए योजना बनाने और उसे लागू करने के तरीकों में बदलाव लाना होगा।

हमें विकास का एक नया नजरिया चाहिए जो धरती के लिए तो फायदेमंद हो ही, साथ ही हर एक व्यक्ति के लिए भी काम करे। यही वो मुद्दा है जिस पर नई या पुरानी सरकार को ध्यान देना चाहिए। ये हमारा साझा एजेंडा है।

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