नई सरकार, नई उम्मीद: शहरों को 'रहने' लायक बनाएं

भारत के शहर अलग-अलग गर्म टापुओं में तब्दील होते जा रहे हैं। ऐसे में सरकार को शहरों की रहने की क्षमता में सुधार लाने पर ध्यान देना चाहिए
नई सरकार, नई उम्मीद: शहरों को 'रहने' लायक बनाएं
Published on

केंद्र में गठबंधन की नई सरकार ने कामकाज शुरू कर दिया है। इस सरकार की नीतियां और उनका तय किया गया रास्ता हमारा भविष्य तय करेगा। इस नई सरकार से देश को आखिर किन वास्तविक मुद्दों पर ठोस काम की उम्मीद करनी चाहिए ? लेकिन ये उम्मीदें क्या होनी चाहिए, डाउन टू अर्थ अलग-अलग विशेषज्ञों द्वारा लिखे गए लेखों की कड़ियों को प्रकाशित कर रहा है

शहर तेजी से पर्यावरणीय कार्रवाई के केंद्र बनते जा रहे हैं। जैसे-जैसे शहर बढ़ती शहरी आबादी की जरूरतों को पूरा करने के लिए विस्तारित होते हैं, वाहनों की संख्या में वृद्धि, कंक्रीटीकरण, झुग्गियों का प्रसार और हरियाली एवं जल क्षेत्रों में कमी आ रही है। गर्म होते विश्व में, शहर शहरी ताप द्वीप प्रभाव (अर्बन हीट आइलैंड इफेक्ट), बाढ़, पानी की कमी, अनुचित ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, हवा और पानी का प्रदूषण और रहने की स्थिति के लगातार खराब होने जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं।

इन समस्याओं से निपटने के लिए केंद्र सरकार ने कई उपाय किए हैं। उदाहरण के लिए, केंद्रीय बजट 2024-25 में अमृत (अटल मिशन फॉर रिजुवनेशन एंड अर्बन ट्रांसफॉर्मेशन) और स्मार्ट सिटी मिशन के लिए 10,400 करोड़ रुपये, मेट्रो रेल परियोजनाओं के लिए 21,336 करोड़ रुपये, स्वच्छ भारत मिशन के लिए 5,000 करोड़ रुपये और प्रधान मंत्री आवास योजना (पीएमएवाई) के लिए 80,761 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। 15वां वित्त आयोग और राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम ने भी कुछ समस्याओं से निपटने के लिए शहरी स्थानीय निकायों को अधिक धन देने का प्रस्ताव रखा है।

हालांकि, अब तक की कार्रवाई धीमी रही है और अभी तक यह पूरी तरह से नतीजों पर केंद्रित नहीं है। शहरों के सतत विकास के लिए ऐसे मापन योग्य संकेतकों की आवश्यकता है जो ठोस परिणाम ला सकें:

आवासीय सहायता
प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएमएवाई) के तहत लाखों किफायती आवास इकाइयां विकसित की गई हैं। हालांकि, ये इकाइयां गर्मी से सुरक्षा के मानदंडों की कमी के कारण रहने वालों को गर्मी से राहत नहीं दे पाती हैं। दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) द्वारा 2021 में किए गए एक अध्ययन में इसकी पुष्टि हुई है।

2020 में शुरू की गई पीएमएवाई के अंतर्गत एक उप-कार्यक्रम, अफोर्डेबल रेंटल हाउसिंग कॉम्प्लेक्स (किफायती किराये पर आवास परिसर) योजना किराये के मकानों के भंडार को नेशनल थर्मल कंफर्ट (आरामदायक तापमान) लक्ष्यों के साथ जोड़ने का एक अच्छा अवसर है। इस योजना के प्रावधान, जैसे कि नई, टिकाऊ, हरित और आपदा-प्रतिरोधी तकनीकों और निर्माण सामग्री को अपनाने की सुविधा के लिए प्रौद्योगिकी नवाचार अनुदान को बेहतर थर्मल कंफर्ट से जोड़ा जाना चाहिए।

अनुदान प्राप्त करने का मानदंड तेज, नवाचारी और टिकाऊ निर्माण है, जो काफी व्यापक है और कम बाध्यकारी है। यहीं पर विभिन्न जलवायु क्षेत्रों के लिए थर्मल कंफर्ट मानक महत्वपूर्ण हो जाते हैं। थर्मल कंफर्ट को आसान शब्दों में कहें तो यह वह तापमान होता है जिसमें व्यक्ति आराम महसूस करता है।

सीएसई की 2021 की रिपोर्ट 'मास हाउसिंग एंड लिवेबिलिटी' के अनुसार, वर्तमान में किसी भी आवास योजना में स्कूल, स्वास्थ्य सुविधाओं या सार्वजनिक परिवहन जैसे महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए कोई पैरामीटर नहीं हैं। यहां तक कि झुग्गी सुधार परियोजनाओं में भी, ज्यादातर समय, लाभार्थियों को ऐसे अनुपयुक्त बाहरी स्थानों पर स्थानांतरित कर दिया जाता है जो रहने की स्थिति को खराब कर देते हैं। सीएसई की 2021 की एक अन्य रिपोर्ट 'टुवर्ड्स अफोर्डेबल एंड सस्टेनेबल रेंटल हाउसिंग' में कहा गया है कि इस मॉडल के परिणामस्वरूप अधिक झुग्गियां और बाहरी क्षेत्रों में खाली आवास बनते हैं। आवास योजनाओं को स्थानीय स्तर पर ही पुनर्वास पर फोकस करना चाहिए।

विकल्प के रूप में, एक संतुलित स्कोरकार्ड दृष्टिकोण अपनाया जा सकता है, जिसमें बुनियादी ढांचे तक पर्याप्त पहुंच वाली साइटों को प्राथमिकता दी जाती है। यह निर्णय लेने वालों को यह सुनिश्चित करने में मदद कर सकता है कि भविष्य की आवास इकाइयों में ये महत्वपूर्ण मानदंड हों कि वह कितना रहने लायक हैं।

इसके अलावा, किफायती आवास परियोजनाओं और सामान्य तौर पर शहरों को प्रकृति-आधारित विकेंद्रीकृत अपशिष्ट जल उपचार, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन और सोलर रूफटॉप जैसे पर्यावरणीय सेवाओं के लाभ अभी तक नहीं मिल पाए हैं। ऐसा सब्सिडी के बावजूद है— उदाहरण के लिए, पीएम सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना के तहत, स्वतंत्र मकान मालिक 30,000 रुपए प्रति किलोवाट की सब्सिडी प्राप्त कर सकते हैं और समूह आवास समितियां 18,000 रुपए प्रति किलोवाट का लाभ उठा सकती हैं। किफायती आवास परियोजनाओं के लिए ऐसे लाभ अनिवार्य होने चाहिए।

शहरों को रहने लायक बनाने के लिए गर्मी प्रबंधन
अर्बन हीट आईलैंड इफेक्ट यानी शहरी ताप द्वीप प्रभाव अब व्यापक हो चुका है, जो अधिकांश शहरों को प्रभावित कर रहा है और गर्मी को बढ़ा रहा है। यह न केवल लोगों के लिए स्वास्थ्य संबंधी खतरों को पैदा करता है, बल्कि एक दुष्चक्र भी बना सकता है जहां एसी थर्मल कंफर्ट के लिए एक त्वरित समाधान बन जाता है और वातावरण में अधिक गर्मी छोड़ता है।

सरकार ने कई पहल की हैं, जैसे कि भारत कूलिंग एक्शन प्लान, 2019; ऊर्जा संरक्षण भवन संहिता; सतत आवास के लिए राष्ट्रीय मिशन 2.0; शहरी और क्षेत्रीय विकास योजना निर्माण और कार्यान्वयन (यूआरडीपीएफआई) दिशानिर्देश, 2014 में परिशिष्ट; और मॉडल बिल्डिंग बाइलॉज, 2016। हालांकि, शहरों में गर्मी प्रबंधन पर अब तक व्यापक कार्रवाई नहीं देखी गई है। दिल्ली स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च द्वारा 37 हीट एक्शन प्लान के विश्लेषण में यह खुलासा हुआ है कि इनका फोकस मुख्य रूप से आपदा से निपटने की तैयारी और आपात स्थिति में त्वरित कार्रवाई पर है। योजनाएं कमजोर समूहों की पहचान नहीं करती हैं और स्थानीय आवश्यकताओं को पूरा करने में भी असफल रहती हैं।

सीएसई ने विभिन्न आकारों और विभिन्न जलवायु क्षेत्रों के चार शहरों (जयपुर, दिल्ली, पुणे और कोलकाता) का भी विश्लेषण किया। इस अध्ययन में यह समझने की कोशिश की गई कि ऊंची और घनी इमारतों व सड़कों, छतों के निर्माण सामग्री, पेड़-पौधों और पानी के स्रोतों का जमीन के तापमान (एलएसटी) पर क्या असर पड़ता है। अध्ययन में पाया गया कि शहर हरे भरे स्थानों को बढ़ाकर, ऊंचे पेड़ लगाकर, सड़कों पर सीधे धूप को कम करके, इमारतों को सही दिशा में बनाकर और गर्मी सोखने वाले निर्माण सामग्री का इस्तेमाल करके जमीन का तापमान 10 डिग्री सेल्सियस तक कम कर सकते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन कम से कम 9 वर्ग मीटर हर व्यक्ति के हिसाब से हरे भरे स्थान की सिफारिश करता है। शहरी विकास नीति संस्थान (यूआरडीपीएफआई) की गाइडलाइन 12 से 18 वर्ग मीटर हर व्यक्ति के हिसाब से हरे भरे स्थान की सिफारिश करती है। शहरों को कॉम्पैक्ट तरीके से विकसित किया जाना चाहिए, जिसमें ऊंचाई में ज्यादा ऊंचे न हों। सड़कों पर गर्मी कम करने के उपाय किए जाएं, जैसे फव्वारे, नालियां और बगीचे बनाना। साथ ही, इमारतों को छायां देने वाले पेड़ लगाए जाएं, गर्मी को परावर्तित करने वाले निर्माण सामग्री का इस्तेमाल किया जाए और छतों को हरा-भरा रखा जाए। इन सभी उपायों को शहरों के निर्माण नियमों में शामिल किया जाना चाहिए।

गर्मी से राहत के उपाय सिर्फ लू के समय बचाव करने तक सीमित नहीं रहने चाहिए। शहरों को कमजोर समूहों की पहचान करनी चाहिए ताकि उनके लिए खास कदम उठाए जा सकें। इमारतों में बदलाव जैसे उपायों के लिए वैश्विक अनुकूलन कोष और शहरी स्थानीय निकायों को मिलने वाली आर्थिक मदद का इस्तेमाल किया जा सकता है। गर्मी प्रबंधन को संस्थागत रूप देना जरूरी है। इसके लिए शहरों में जलवायु परिवर्तन प्रकोष्ठों को, जो वर्तमान में स्थापित किए जा रहे हैं, एक नोडल एजेंसी के रूप में स्थापित किया जाना चाहिए।

शहरों में सौर ऊर्जा की अपार संभानवाएं
शहरों में इमारतों पर सौर ऊर्जा का इस्तेमाल करने की काफी संभावनाएं हैं। सरकार ‘पीएम सूर्योदय योजना’ के तहत छतों पर सौर पैनल लगाने को बढ़ावा देने के अलावा राज्य सरकारों की सब्सिडी का इस्तेमाल कर इलेक्ट्रिक गाड़ियों के चार्जिंग स्टेशन, खुले पार्किंग स्थल और अन्य सार्वजनिक जगहों पर भी सौर ऊर्जा के इस्तेमाल को बढ़ावा दे सकती है।

इमारत बनाने में मिट्टी, फूस, बांस, मिट्टी की दीवारें, गीली मिट्टी और पुआल से बने ईंट, लेटराइट ब्लॉक, और बेंत से बनी दीवारें परंपरागत तरीके और सामग्री मानी जाती हैं। ये गर्म या ठंड से बचाने में मदद करती हैं और रहने में आसानी पैदा करती हैं। साथ ही ये स्थानीय रूप से मिलने वाली और सस्ती सामग्री हैं। ग्रामीण समुदायों, खासकर महिलाओं को इनके इस्तेमाल का अच्छा ज्ञान होता है।

इन पारंपरिक तरीकों का दस्तावेजीकरण कर उन्हें सहेजना चाहिए। साथ ही आधुनिक इमारतों में रहने में आसानी के लिए इनका इस्तेमाल करना चाहिए। कुछ आर्किटेक्ट पहले से ही ऐसा कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, वो इमारतों की मजबूती के लिए कंक्रीट के खंभों और स्लैब का इस्तेमाल करते हैं और गर्मी से बचाने के लिए मिट्टी से भरी दीवारें इस्तेमाल करते हैं। ऐसे तरीकों को, खासकर किफायती आवास योजनाओं में, अपनाया जाना चाहिए और आम बनाने का प्रयास करना चाहिए।

निर्माण और तोड़-फोड़ का कचरा प्रबंधन
निर्माण और तोड़-फोड़ (सीएंडडी) का कचरा भारत में तेजी से बढ़ता हुआ कचरे का एक नया स्रोत है। सीएसई के जारी शोध के अनुसार, सीएंडडी अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 की अधिसूचना के बाद से भारत में लगभग 31 रिसाइक्लिंग संयंत्र स्थापित किए गए हैं और 27 और निर्माणाधीन हैं। हालांकि, शहर अभी भी सीएंडडी कचरे के सुचारू प्रबंधन और पुन: उपयोग के लिए अपने पूरे सिस्टम को विकसित कर रहे हैं।

बड़े शहरों ने तो संयंत्र स्थापित करने और चलाने के लिए निजी क्षेत्र को शामिल कर लिया है, लेकिन छोटे शहरों को इसके लिए सरकारी मदद की जरूरत है। ऐसा इसलिए है क्योंकि छोटे शहरी निकाय संयंत्र को लगातार कचरा उपलब्ध कराने में असमर्थ हैं, जिससे निजी कंपनियां निवेश करने और परियोजनाओं को लागू करने में संकोच करती हैं। इसका मतलब है कि पहले कचरा संग्रह प्रणाली स्थापित करनी होगी, फिर रिसाइक्लिंग संयंत्र।

ध्यान सिर्फ रिसाइक्लिंग संयंत्रों पर ही नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम पर होना चाहिए। इसमें शामिल है: सीएंडडी कचरा कितना बनने जा रहा है, इसका सही आकलन करना; सुविधाजनक संग्रह प्रणाली और उपयोगकर्ता शुल्क निर्धारित करना; व्यापक नियम बनाना जो सभी हितधारकों के कर्तव्यों को तय करें; पुन: उपयोग और रिसाइकल किए गए उत्पादों को अपनाने को सुनिश्चित करना और जनता के बीच जागरूकता पैदा करना।

--------
एक्शन प्वॉइंट

किफायती किराये पर आवास योजना के नियमों को गर्मी कम करने वाले बेहतर निर्माण से जोड़ा जाना चाहिए
शहरों के निर्माण नियमों में इमारतों के डिजाइन, छाया और हरियाली बढ़ाने जैसे पहलुओं को शामिल किया जाना चाहिए ताकि गर्मी कम हो सके
निर्माण और तोड़-फोड़ के कचरे के प्रबंधन के लिए शहरों को एक मजबूत प्रणाली विकसित करनी चाहिए

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in