समुद्र और तटों को दूषित करने वाल 80 फीसदी प्रदूषण जमीन पर उत्पन्न होता है। कृषि, मत्स्योद्योग, शिपिंग, खनन, पोर्ट, पर्यटन, तटों पर बढ़ता निर्माण जैसी गतिविधियां महासागरों और तटों के लिए समस्या पैदा कर रहे हैं। हालांकि इसके बावजूद शायद ही कहीं ऐसी कोई प्रभावी व्यवस्था है, जो भूमि और समुद्र के परस्पर प्रभाव का प्रबंधन करती हो। इस पर संयुक्त राष्ट्र के इंटरनेशनल रिसोर्स पैनल द्वारा जारी नई रिपोर्ट में भी चिंता जताई है और कहा है कि यदि इसमें जल्द परिवर्तन न किए गए तो उसके गंभीर परिणाम सामने आएंगें।
यह रिपोर्ट तटीय संसाधनों पर भूमि आधारित गतिविधियों के बढ़ते प्रभाव को कम करने में मदद करने के लिए नीति निर्माताओं को विकल्प प्रदान करती है। साथ ही महासागर-आधारित अर्थव्यवस्था में शाश्वत बदलाव का समर्थन करती है।
हमारी पृथ्वी का लगभग दो तिहाई हिस्सा समुद्र से ढंका है, जो न केवल पृथ्वी पर जीवन और मानव कल्याण का समर्थन करता है, साथ ही जलवायु को भी नियंत्रित करता है। महासागर हमें भोजन, पानी, ऊर्जा, कच्चा माल और सबसे महत्वपूर्ण जीवनदायिनी ऑक्सीजन प्रदान करते हैं। साथ ही यह न जाने कितने लोगों की जीविका का भी आधार हैं। इसके अनगिनत फायदों के बावजूद आज यह महासागर ऐसी स्थिति पर पहुंच चुके हैं जहां इनके भविष्य पर ही खतरा मंडराने लगा है।
यदि बढ़ती आबादी को देखें तो 2030 तक वैश्विक आबादी 860 करोड़ होगी, जिसमें से 60 फीसदी शहरों में रह रही होगी। इतनी बढ़ी आबादी की जरूरतों को पूरा करने के लिए महासागरों पर निर्भरता और बढ़ जाएगी। देखा जाए तो आज विश्व की करीब 13 फीसदी आबादी तटों के पास रहती है। बढ़ती मांग के चलते समुद्रों के जरिए सामान का आवागमन पहले के मुकाबले काफी बढ़ जाएगा। इसी तरह निर्माण उद्योग में भी 2030 तक करीब 85 फीसदी की वृद्धि हो जाएगी। जिसका असर समुद्रों पर भी पड़ेगा।
ऊर्जा और स्मार्टफोन जैसी बढ़ती जरूरतों के लिए समुद्र की गहराई में बढ़ जाएगा खनन
दुनिया में ऊर्जा की मांग भी 2040 तक करीब 30 फीसदी बढ़ जाएगी, जिसके कारण रिन्यूएबल एनर्जी की मांग में भी 60 फीसदी का इजाफा होगा, इसमें समुद्रों में उत्पन्न की जा रही ऊर्जा भी शामिल है। ऊर्जा और स्मार्ट फ़ोन जैसी जरूरतों को पूरा करने के लिए गहरे समुद्रों में खनन पहले के मुकाबले काफी बढ़ जाएगा। इसके साथ ही तटों के किनारे बढ़ते पर्यटन से भी प्रदूषण में इजाफा होगा। इसके कारण इनके द्वारा प्रदान की जाने वाली सभी महत्वपूर्ण सेवाएं बाधित हो जाएंगी जिसके भयावह परिणाम होंगे।
जिस तरह से हम इनका दोहन कर रहे हैं। वो अपने आप में एक बड़ी समस्या है। यही नहीं बढ़ता प्रदूषण और जलवायु में आता परिवर्तन भी इनके लिए बड़ा खतरा है। जो इनकी जैव विविधता को गंभीर नुकसान पहुंचा रहा है। जिस तरह से समुद्र के तापमान और अम्लीकरण में वृद्धि हो रही है उसके कारण समुद्री जीवन प्रवास करने को मजबूर हो जाएगा। साथ ही इससे तटों पर आने वाली बाढ़ और तूफान की घटनाओं में इजाफा हो जाएगा।
यह चिंता शाश्वत विकास के लक्ष्यों में भी स्पष्ट दिखती है यही वजह है की इसे एसडीजी-14 में स्पष्ट किया गया है जिसमें समुद्री पर्यावरण और संसाधनों के सतत उपयोग को प्राप्त करने का लक्ष्य रखा गया है। एसडीजी 14 के अंतर्गत 2025 तक सभी प्रकार के समुद्री प्रदूषण को 'रोकना और उसमें कमी करना शामिल है, विशेष तौर पर भूमि आधारित गतिविधियों से होने वाले प्रदूषण, जिसमें समुद्री मलबा और पोषक तत्वों से जुड़ा प्रदूषण शामिल है।
इस रिपोर्ट से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता स्टीव फ्लेचर के अनुसार, इसमें कोई संदेह नहीं है कि हमारे महासागरों का भविष्य खतरे में है। यह एक वैश्विक मुद्दा है ऐसे में यदि हम अलग-अलग कार्रवाही करते हैं तो वो उतना प्रभावी नहीं होगा। इसके लिए हमें व्यवस्थित बदलाव करने होंगे, जिसमें अलग-अलग देशों की सरकारों, समुदायों और व्यापार को साथ मिलकर सामूहिक कार्रवाई करनी होगी।