भारत के 25 करोड़ बच्चे जो अब स्कूलों में लौट रहे हैं, उनमें से अधिकांश का कोविड-19 महामारी के दौरान शिक्षकों के साथ कोई नियमित संपर्क नहीं था, जिसके फलस्वरूप हमारे देश में एक शिक्षा आपातकाल जैसी स्थिति पैदा हो चुकी है। फिर भी, राज्य सरकारें स्कूलों को फिर से इस तरह खोल रही हैं जैसे कि कुछ भी गंभीर हुआ ही नहीं है। यही नहीं, छात्रों को दो कक्षा ऊपर कर दिया गया है और ऊपर से सामान्य पाठ्यक्रम का पालन किया जा रहा है।
भारत के नेशनल कोएलिशन ऑन एजुकेशन इमरजेंसी (एनसीईई) ने एक शोघपत्र “ए फ्यूचर एट स्टेक-गाइडलाइंस एंड प्रिंसिपल्स टू रिज्यूम एंड रिन्यू एजुकेशन” में इस पर आपत्ति जताई है। शोधपत्र में स्कूलों को फिर से खोलने के बाद कुछ आवश्यक बदलाव करने का सुझाव दिया गया है।
शोधपत्र में कहा गया है कि पता चला है कि ग्रामीण और शहरी गरीबों, दलितों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों और प्रवासी मजदूरों के बच्चों के बीच बुनियादी भाषा और गणित विषय में उनके कौशल का विशेष रूप से नुकसान हुआ है, जिससे लाखों बच्चे ड्रॉप-आउट करने पर मजबूर हो गए हैं।
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की पूर्व प्रमुख शांता सिन्हा ने कहा कि हमने अपने बच्चों के साथ अन्याय किया है। 18 महीनों से पूरी शिक्षा प्रणाली निष्क्रिय है। ऑनलाइन शिक्षा व्यर्थ रही है। बच्चों की पढ़ने-लिखने की आदत छूट गई है। हमारे बच्चों की स्कूल वापसी को एक साधारण घटना के रूप में लेना बच्चों और उनके जीवन के लिए एक अपूरणीय क्षति होगी और भारत के भविष्य को दांव पर लगा देगी।
विश्व बैंक में शिक्षा की पूर्व वैश्विक सलाहकार और एनसीईई कोर समूह की सदस्य सजिता बशीर ने कहा, “दुनिया भर के देश बच्चों को शिक्षा के साथ फिर से जुड़ने में सक्षम बनाने के लिए पाठ्यक्रम और शिक्षण विधियों को संशोधित कर रहे हैं, मुख्य दक्षताओं पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं और अतिरिक्त संसाधन और बजट प्रदान कर रहे हैं।”
भारत और विश्व स्तर पर सबक लेते हुए शोध में तर्क दिया गया है कि इसके अनुशंसित दृष्टिकोण को अपनाना आवश्यक और व्यवहार्य दोनों है। यह नियमित कोचिंग और शिक्षकों के प्रशिक्षण के अलावा कार्यों के एक व्यापक सेट की सिफारिश करता है। इन सिफारिशों में प्रमुख हैं- पुनर्गठित पाठ्यक्रम के लिए अतिरिक्त शिक्षण सामग्री का प्रावधान, बच्चों के लिए स्कूल वापसी अभियान, बच्चों के लिए स्वास्थ्य और पोषण, माता-पिता, स्कूल प्रबंधन समिति के सदस्यों, शिक्षकों, स्थानीय अधिकारियों के सदस्यों और अन्य प्राथमिक हितधारकों के साथ नियमित और सरल दो-तरफा बातचीत, जिला शिक्षा आपातकालीन इकाइयों, और अतिरिक्त निधियों के माध्यम से सक्रिय प्रबंधन आदि।
रांची विश्वविद्यालय में विजिटिंग प्रोफेसर ज्यां द्रेज ने कहा कि पाठ्यक्रम या शिक्षाशास्त्र में किसी बड़े समायोजन के बिना बच्चों को उनके प्रारंभिक स्तर से दो या तीन ग्रेड आगे बढ़ाने का कोई मतलब नहीं है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में पाठ्यक्रम को सरल बनाने की प्रतिबद्धता शामिल है और इसे लागू करने का यह एक अच्छा समय है। एनसीईई शिक्षकों को विभिन्न ग्रेड में भाषा और गणित की दक्षताओं को पढ़ाने में मदद करने के साथ-साथ छात्रों के सामाजिक भावनात्मक विकास का समर्थन करने के लिए शिक्षण संसाधनों का संकलन और क्यूरेटिंग भी कर रहा है।
जन-जागरूकता और जुड़ाव को प्रोत्साहित करने के लिए एनसीईई ने शिक्षा सुधार के प्रमुख पहलुओं पर जमीनी स्तर पर प्रगति रिकॉर्ड करने के लिए एक शिक्षा आपातकालीन नीति ट्रैकर विकसित किया है। पहला ट्रैकर शिक्षा के स्तर के आधार पर राज्यों में स्कूल फिर से खोलने पर केंद्रित है। अधिकांश राज्यों ने उच्च माध्यमिक और उच्च विद्यालयों को खोलने को प्राथमिकता दी है, जबकि प्राथमिक विद्यालय अक्टूबर के अंत तक पूर्ण या आंशिक रूप से बंद हैं। ट्रैकर अन्य प्रमुख संकेतकों को भी ट्रैक करेगा जैसे पाठ्यपुस्तकों की उपलब्धता, सीखने के संसाधन, पुनर्गठित पाठ्यक्रम, शिक्षक मदद और अतिरिक्त धन।
एनसीईई द्वारा अक्टूबर, 2021 में बंगलूरु सहित कर्नाटक के स्कूलों में किये गये एक सर्वे में हाई स्कूल के शिक्षकों के के पहले सर्वेक्षण से पता चला है कि ग्रेड 8 शिक्षकों में से केवल 15 प्रतिशत, ग्रेड 9 शिक्षकों के 20 प्रतिशत और ग्रेड 10 के लगभग 25 प्रतिशत शिक्षकों ने महसूस किया कि उनके छात्र भाषा और गणित में ग्रेड स्तर पर थे। ये निष्कर्ष छात्रों के सीखने के स्तर और पाठ्यक्रम के बीच बड़े अंतर को दूर करने की तात्कालिकता को उजागर करते हैं।
एनसीईई के कोर ग्रुप के सदस्य और आईटी फॉर चेंज के निदेशक गुरुमूर्ति के ने कहा कि विभिन्न राज्यों में शिक्षा आपातकाल से कैसे निपटा जा रहा है, इस बारे में जानकारी एकत्र करने के लिए घरों, शिक्षकों और छात्रों के नियमित सर्वेक्षण की योजना बना रहे हैं। कई स्रोतों से बार-बार डेटा एकत्र करने और रिपोर्ट करने से हमारे देश पर आई इस आपदा से निपटने को लेकर सार्वजनिक विचार-विमर्श को बढ़ावा मिलेगा। बशीर ने कहा कि लाखों भारतीय बच्चे इस विशालकाय खाई के दूसरी तरफ फंसे हुए हैं। इस रसातल को पार करने के लिए पुल कमजोर है और बहुत तेजी से खींचा जा रहा है। हमारे कई बच्चे इस पुल से गिरने वाले हैं और अगर हालात ऐसे ही रहे तो उनमें से अधिकांश इस पुल पर चढ़ भी नहीं पाएंगे।