2022 में जल, जमीन, जंगल और पर्यावरण को बचाने की जद्दोजेहद में 177 लोगों ने अपनी जान गंवाई है। मतलब की हर दूसरे दिन दुनिया के किसी न किसी हिस्से में कोई न कोई कार्यकर्ता, पर्यावरण को बचाने के लिए अपने जीवन की आहुति दे रहा है। 2012 से देखें तो अब तक 1910 लोगों की हत्या हो चुकी है। वहीं 2022 के दौरान एशिया में जो 16 मामले दर्ज किए गए हैं, उनमें से 11 फिलीपींस, तीन इंडोनेशिया में और दो भारत में सामने आए हैं।
हालांकि विडम्बना देखिए की इनमें से अधिकांश मामलों में अपराधियों को सजा तक नहीं हुई है। सरकारी जांच में विफलता के चलते बहुत कम अपराधी ही दोषी साबित होते हैं। नतीजन कानून का डर न रहने के कारण आगे के हमलों को बढ़ावा मिला है। यह जानकारी पर्यावरण के मुद्दे पर काम कर रहे अंतर्राष्ट्रीय संगठन ग्लोबल विटनेस द्वारा जारी नई रिपोर्ट में सामने आई है।
यह भी पता चला है कि दुनिया भर में मूल निवासियों को सबसे ज्यादा निशाना बनाया जा रहा है। आंकड़ों के मुताबिक जहां मूल निवासी दुनिया की केवल पांच फीसदी आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं। वहीं वैश्विक स्तर पर जल, जंगल, जमीन को बचाने में हुई कुल हत्याओं में उनका हिस्सा 34 फीसदी था।
रिपोर्ट के मुताबिक अमेजन पर्यावरक रक्षकों के लिए दुनिया के सबसे खतरनाक स्थानों में से एक है। जहां पिछले वर्ष 39 पर्यावरण रक्षकों की हत्या कर दी गई थी। देखा जाए तो दुनिया में पर्यावरण को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हर पांचवे पर्यावरण रक्षक की हत्या दुनिया के सबसे बड़े वर्षावन में हो रही है। 2014 से देखें तो अमेजन में कम से कम 296 रक्षक मारे गए हैं।
रिपोर्ट में वर्षावनों में रहने वाले स्वदेशी समुदायों पर भी प्रकाश डाला गया है, जो खनन और वन विनाश जैसी गतिविधियों के चलते विभिन्न खतरों का सामना कर रहे हैं। पता चला है कि यूरोपियन यूनियन, यूके और अमेरिका की कुछ कंपनियां इन समुदायों के खिलाफ मानवाधिकारों के उल्लंघन से भी जुड़ी हैं।
दक्षिण अमेरिका में हुई हर 10 में से नौ हत्याएं
2022 के दौरान करीब 88 फीसदी पर्यारवरण कार्यकर्ताओं की हत्या दक्षिण अमेरिका में हुई है। इतना ही नहीं इनमें से एक तिहाई से अधिक घातक हमले कोलंबिया में हुए थे जो किसी भी अन्य देश से अधिक हैं। बता दें की अकेले कोलंबिया में 60 लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था, क्योंकि उन्होंने पर्यावरण को बचाने के लिए आवाज उठाई थी।
यह तब है जब कोलंबिया ने अक्टूबर 2022 में एक महत्वपूर्ण समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जो कानूनी तौर पर सरकार को रक्षकों पर होते हमलों को रोकने और उसकी जांच करने के लिए बाध्य करता है। इसके बावजूद 2021 की तुलना में 2022 के दौरान पर्यावरण रक्षकों की हत्याएं बढ़कर दोगुणी हो गई हैं।
यदि 2012 से देखें तो कोलंबिया में अब तक 382 पर्यावरण कार्यकर्ता अपनी जान गंवा चुके हैं। अन्य देशों से जुड़े आंकड़ों को देखें तो 2022 के दौरान ब्राजील में 34, मेक्सिको में 31, होंडुरास में 14 और फिलीपींस में कुल 11 रक्षकों की हत्या कर दी गई थी।
दुनिया भर में जहां एक ओर पर्यावरण को बचाने के भरसक प्रयास किये जा रहे हैं। हाल ही में हुए जी 20 सम्मलेन के दौरान भी पर्यावरण को बचाने का संकल्प लिया गया, लेकिन वहीं, दूसरी ओर जमीन, जंगल और पर्यावरण को बचाने के लिए संघर्ष करने वालों को चुप कराया जा रहा है।
हर बीतते दिन के साथ खनन, लकड़ी की तस्करी और एग्री-बिजनेस जैसे उद्योगों और मूल निवासियों के बीच हिंसक झड़पें बढ़ती जा रही हैं। उनकी आवाज को दबाने के लिए उन्हें तरह-तरह से डराया धमकाया जाता है। यहां तक की यदि न मानें तो उनको और उनके परिजनों तक को निशाना बनाया जाता है।
आवाज दबाने के लिए किए जा रहे हर संभव प्रयास
रिपोर्ट के मुताबिक इन पर्यावरण प्रहरियों को न केवल शारीरिक हमलों का सामना करना पड़ रहा है, बल्कि उनकी आवाज को दबाने के लिए उन्हें अपराधी तक करार देने के प्रयास किए जाते हैं। इससे ज्यादा बुरा क्या हो सकता है जब कानून को उनके बचाव में काम करना चाहिए था, वहीं प्रशासन की मिलीभगत से उसी कानून का दुरूपयोग कर उसे उनके खिलाफ ही हथियार बनाया जा रहा है।
ग्लोबल विटनेस द्वारा जारी यह रिपोर्ट नवंबर में संयुक्त अरब अमीरात में होने वाली आगामी कॉप 28 सम्मेलन से पहले जारी की गई है। जो जलवायु न्याय को बढ़ावा देने और उसे हासिल करने के लिए इन पर्यावरण कार्यकर्ताओं के महत्व और प्रयासों को रेखांकित करती है। रिपोर्ट की मानें तो 12 दिसंबर, 2015 में जब से पेरिस समझौता अपनाया गया है तब से से 31 दिसंबर, 2022 तक कम से कम 1,390 पर्यावरण रक्षक मारे गए हैं।
रिपोर्ट ने यह भी माना है कि आंकड़ों के आभाव में यह रिपोर्ट पूरी तस्वीर प्रस्तुत नहीं करती। मतलब की पर्यावरण रक्षकों पर होते हमलों और हत्याओं का आंकड़ा इससे कहीं ज्यादा हो सकता है। इसके लिए रिपोर्ट में प्रेस की स्वतंत्रता, उनपर लगाए प्रतिबंध और कई देशों में स्वतंत्र निगरानी की कमी को जिम्मेवार माना है। विशेष रूप से अफ्रीका, एशिया और मध्य पूर्व के देशों में जहां इसके ऊपर बहुत कम रिपोर्टिंग हो रही है।
इस बारे में ग्लोबल विटनेस से जुड़ी श्रुति सुरेश का कहना है, "लंबे समय से, रक्षकों के खिलाफ घातक हमलों के बावजूद हमलावर सजा से बच रहे हैं। दुनिया भर इन रक्षकों को चुप कराने के लिए उत्पीड़न, धमकियों और हिंसा का सहारा लिया जा रहा है। गैरजिम्मेवार कॉर्पोरेट और सरकारी कार्रवाइयों के खतरे के बावजूद यह रक्षक अडिग हैं और दृढ़ संकल्प के साथ एकजुट होकर अपने घरों और समुदायों की रक्षा के लिए खड़े हैं।"
उन्होंने दुनिया भर की सरकारों से इन संवेदनहीन हत्याओं पर तत्काल ध्यान देने की बात कही है। यह वो लोग हैं जो हमारे ग्रह की रक्षा के लिए खड़े हैं। इनकी न केवल जलवायु आपातकाल से निपटने में महत्वपूर्ण भूमिका है। बल्कि साथ ही यह महत्वपूर्ण पारिस्थितिक तंत्र को बचाने के लिए भी जद्दोजहद कर रहे हैं।
उनके अनुसार हमें इस हिंसा और अन्याय को रोकने के लिए स्थानीय, राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर मिलकर काम करना चाहिए। उनका कहना है कि, "हम पहले ही बहुत सी जिंदगियां खो चुके हैं, हम और अधिक नहीं खो सकते।"