2030 तक नष्ट हो जाएंगे 112,000 वर्ग मील के दायरे में फैले प्राकृतिक आवास

एक अध्ययन से पता चला है कि शहरीकरण का सबसे अधिक असर उष्णकटिबंधीय वनो पर पड़ रहा है। जहां शहरी क्षेत्रों का तेजी से विस्तार हो रहा है
Photo credit: needpix
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वैश्विक स्तर पर जिस रफ्तार से शहरीकरण हो रहा है उसको देखते हुए कयास लगाए जा रहे हैं कि 2030 तक, दुनिया भर की शहरी आबादी में करीब 200 करोड़ का इजाफा हो जाने की उम्मीद है। शोधकर्ताओं के अनुसार, शहरी विकास की इस गति के चलते हर छह हफ्ते में एक न्यूयॉर्क शहर के आकार के बराबर निर्माण की जरुरत पड़ेगी। प्राकृतिक आवास से आशय है कि जिस वातावरण में कोई जीव जन्मता है और बड़ा होता है, वो उसका प्राकृतिक आवास होता है। यह आवास उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है।

हाल ही में इसके विषय में टेक्सास ए एंड एम यूनिवर्सिटी द्वारा अध्ययन किया गया है। जोकि अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर सस्टेनेबिलिटी में प्रकाशित हुआ है। शोध के अनुसार दुनिया भर में शहर बड़ी तेजी से फैल रहे हैं। वैज्ञानिकों को अनुमान है कि यदि शहरी विस्तार इसी रफ्तार से होता रहा तो 2030 तक लगभग 112,000 वर्ग मील के दायरे में फैले प्राकृतिक आवास नष्ट हो जायेंगे। जोकि आकार में यूनाइटेड किंगडम से भी बड़ा क्षेत्र है।

टेक्सास एएंडएम में भूगोल विभाग के सहायक प्रोफेसर बुरक गुनेरल्प जो इस शोध से भी जुड़े हुए हैं ने बताया कि "धरती पर बड़ी तेजी से शहरीकरण हो रहा है। हम अपनी अनेकों जरूरतों के लिए अपने समाज, जैव विविधता और पारिस्थितिक तंत्र से कई तरह से जुड़े हुए हैं। इसलिए, हमें जैव विविधता और पारिस्थितिक तंत्र पर शहरीकरण के पड़ रहे प्रभावों को समझने कि जरुरत है। साथ ही उसे नष्ट होने से बचाने के लिए तेजी से कार्य करने की आवश्यकता है। साथ ही, इसके प्रभावों का सीमित करने के लिए उचित नीतियां बनाने की भी आवश्यकता है।”

अनुमान से कहीं अधिक है शहरीकरण का प्रभाव

जैव विविधता पर पड़ रहे इस प्रभाव को समझने के लिए वैज्ञानिकों द्वारा कई अध्य्यनों का विश्लेषण किया गया है। जिससे पता चला है कि अधिकांश अध्ययन जहां किये गए हैं, वहां जैव विविधता पर पड़ रहा असर तुलनात्मक रूप से कम है। विश्लेषण से पता चला कि पहले के अध्ययन सही स्थानों पर नहीं किये गए हैं, जिस वजह से वो इन प्रभावों को पूरी तरह नहीं माप पाए हैं।

आंकड़े दिखाते हैं कि जैव-विविधता पर पड़ रहे प्रभावों को समझने के लिए किये गए 72 फीसदी अध्ययन उच्च आय वाले देशों में किये गये हैं। जबकि इसके विपरीत अनुमान है कि कम आय वाले देशों में यह प्रभाव कहीं अधिक गंभीर है। अध्ययन से पता चला है कि शहरीकरण का सबसे अधिक असर उष्णकटिबंधीय वनो पर पड़ रहा है। जहां शहरी क्षेत्रों का तेजी से विस्तार हो रहा है। जैसे कि ब्राजील के तटवर्ती इलाकों के साथ पश्चिम अफ्रीका और दक्षिण पूर्व एशिया में यह असर कहीं ज्यादा गहरा है।

प्रोफेसर गुनेरल्प ने बताया कि शहरीकरण का सीधा असर प्राकृतिक आवासों और भूमि उपयोग में किसी भी प्रकार के नुकसान या बदलाव के कारण होता है। जबकि अप्रत्यक्ष प्रभाव भोजन और ऊर्जा की खपत सम्बन्धी जरूरतों के कारण पड़ता है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इस तरह के प्रभावों का असर प्रत्यक्ष प्रभाव की तुलना में  कहीं अधिक होने की संभावना है। जैसा की शहरी आबादी की भोजन संबधी जरूरतों को पूरा करने के लिए कहीं अधिक भूमि की जरुरत पड़ती है।

शोध के अनुसार उसकी इस जरुरत को पूरा करने के लिए आवास की तुलना में 36 फीसदी अधिक कृषि भूमि की जरुरत है। शोधकर्ताओं ने बताया कि यह अध्ययन बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे पता चलता है कि शहरी विकास पृथ्वी पर जैव विविधता को कैसे प्रभावित कर रहा है। साथ ही इससे इस बात का भी पता चलता है कि वैज्ञानिक इस विषय पर क्या जानते हैं - और क्या नहीं जानते हैं।

चूंकि मध्यम और कम आय वाले देशों में जैव विविधता पर शहरीकरण के पड़ रहे प्रभावों के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। इसलिए नीति निर्माता इस मुद्दे पर गंभीरता से ध्यान नहीं दे रहे। यही वजह है कि इस असर को समझने के लिए उन क्षेत्रों में अभी और अधिक शोध करने की आवश्यकता है।

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