ट्रंप ने चल दी गलत चाल

पेरिस समझौते से अलग होकर ट्रंप ने अमेरिका के भविष्य के साथ दुनिया को अंधेरे की ओर से धकेल दिया है
अमेरिका का पेरिस समझौते से खुद को अलग करना सच से मुंह चुराने जैसा है। Credit: Garry Knight / Flickr
अमेरिका का पेरिस समझौते से खुद को अलग करना सच से मुंह चुराने जैसा है। Credit: Garry Knight / Flickr
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अंटार्कटिका में एक विशाल हिमखंड पिघलने लगा है। इसका आकार अमेरिका के डेलवेयर राज्य के बराबर है। हिमखंड में ग्लोबल वॉर्मिंग से पड़ी 13 किलोमीटर लंबी दरार साफ दिखाई दे रही है। वैज्ञानिकों का कहना है कि अंटार्कटिका के महासागर से जल्द बर्फ का यह विशाल हिमखंड अलग हो जाएगा। इस हिमखंड के अलग होने से लार्सेन समुद्र 10 प्रतिशत छोटा हो जाएगा। जिस रफ्तार से अंटार्कटिका में जमी बर्फ पिछल रही है, उससे साफ है कि आने वाले दिन मुश्किलों भरे होने वाले हैं।

हाल में आई नैनीताल की नैनी झील की तस्वीरें भी विचलित करती हैं। नैनी झील 37 साल में 7 मीटर सिकुड़ गई है। 1979 में झील की गई 25 मीटर थी जो अब 17 मीटर ही बची है। नैनी झील का सिकुड़ना ग्लोबल वॉर्मिंग से जोड़कर देखा जा रहा है। गंगोत्री के ग्लेशियरों का भी यही हाल है। जानकार बता रहे हैं कि गंगोत्री ग्लेशियर पिछले 200 साल के अंदर 2 किलोमीटर तक सिकुड़े हैं। दुनिया भर में प्रकृति के विनाश के ऐसे उदाहरण भरे पड़े हैं। 

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) का हालिया विश्लेषण बताता है कि भारत में साल 2016 सबसे गर्म रहा है। पिछले 15 में से 13 साल गर्मी के मामले में रिकॉर्ड तोड़ चुके हैं। सीएसई के मुताबिक, भारत में बीसवीं शताब्दी की शुरुआत से अब तक तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हो चुकी है। खासकर 1995 से तापमान तेजी से बढ़ रहा है। रिपार्ट के मुताबिक, अगर गर्मी इसी तरह बढ़ती रही तो आने वाले दो दशकों में तापमान में 1.5 डिग्री का इजाफा और हो जाएगा। यह चिंता का बड़ा विषय है।    

ग्लोबल वार्मिंग एक तथ्य है। इस तथ्य की पुष्टि दुनियाभर में हो रही तमाम घटनाएं कर रही हैं। मौसम की अनिश्चितता दुनियाभर में चिंता का विषय है। ऐसे समय में जब दुनिया ग्लोबल वॉर्मिंग के भयावह सच से जूझ रही है, ठीक इसी दौरान अमेरिका का पेरिस समझौते से खुद को अलग करना सच से मुंह चुराने जैसा है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने अपने चुनावी अभियान के दौरान पेरिस समझौते की आलोचना की थी और इसे अमेरिकी हित से खिलाफ बताया था। समझौते के अलग होकर ट्रंप ने भले ही अपना चुनावी वादा पूरा कर दिया हो लेकिन इससे अमेरिका का हित सधता है, यह कहना ठीक नहीं होगा। ट्रंप ने अमेरिका के भविष्य के साथ दुनिया को अंधेरे की ओर से धकेल दिया है। उन तमाम प्रयासों पर बड़ी चोट की है जो ग्लोबल वॉर्मिंग के खतरे से निपटने के लिए चल रहे हैं। किसी देश की जीडीपी या तथाकथित विकास से ज्यादा धरती और इंसानी जीवन की कीमत है। ट्रंप ने इस विचार की हत्या की कोशिश की है। यही वजह है कि ट्रंप के इस फैसले का विरोध दुनियाभर के अलावा खुद अमेरिका में हो रहा है। कई कंपनियों और बुद्धिजीवियों ने ट्रंप के फैसले की आलोचना की है, पेरिस समझौते से जुड़ने की वकालत की है। ग्लोबल वार्मिंग मानव निर्मित समस्या है। अब यह त्रासदी मानव को ही निगलने पर उतारू है। इससे पहले की पानी सिर के ऊपर से गुजर जाए, सभी को गंभीर प्रयास करने होंगे। इससे निपटना है तो सबसे पहले छोटे मोटे निजी स्वार्थों से ऊपर उठना होगा। 

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