हर साल 22 टन कार्बन डाइऑक्साइड पैदा कर रहा एक औसत व्यक्ति का डेटा

एक औसत व्यक्ति प्रति सेकंड 1.7 एमबी डेटा पैदा करता है। जो साल के हिसाब से करीब 22 टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित कर रहा है
फोटो: आईस्टॉक
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क्या आप जानते हैं कि आपके द्वारा हर दिन की जा रही गतिविधियां कितना डेटा पैदा कर रही हैं और पर्यावरण पर उसका क्या असर पड़ता है। वैज्ञानिकों की मानें तो एक औसत व्यक्ति प्रति सेकंड 1.7 एमबी डेटा पैदा करता है। जो एक दिन में करीब दस डीवीडी के बराबर है। यह डेटा वो है जो आपके फोटो, वीडियो, टेक्स्ट और ईमेल आदि के कारण पैदा हो रहा है।

अब यदि पर्यावरण पर इसके प्रभाव को देखें तो एक औसत व्यक्ति हर साल औसतन उतना डेटा पैदा करता है जो करीब 22 टन कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) पैदा करता है। आपका यह छिपा हुआ कार्बन फुटप्रिंट कितना बड़ा है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यह लंदन से न्यूयॉर्क तक करीब 26 बार उड़ान भरने के बराबर है। वहीं यदि इस सीओ2 को प्राकृतिक तरीके से ऑफसेट करने की लागत को देखें तो इसपर करीब 283 डॉलर का खर्च आएगा। 

यह डेटा कितना ज्यादा है इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि यदि इसकी तुलना नेटफ्लिक्स से की जाए तो इस डेटा की लगातार स्ट्रीमिंग करने में 680 करोड़ साल लगेंगें। इस रिसर्च के नतीजे जर्नल नॉलेज मैनेजमेंट रिसर्च एंड प्रैक्टिस में प्रकशित हुए हैं।

 रिपोर्ट में कहा गया है कि जो परिणाम हम देख रहे हैं वो इस समस्या का एक छोटा सा हिस्सा है क्योकिं जब हम इन मनोरम दृश्यों और क्षणों को अलग-अलग सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर साझा करते हैं तो इनका वैश्विक स्तर पर प्रभाव काफी बढ़ जाता है।

रिपोर्ट में क्रिस्टियानो रोनाल्डो की एक इंस्टाग्राम पोस्ट का उदाहरण देते हुए बताया है कि उनकी एक पोस्ट की औसत पहुंच इतनी ज्यादा है कि वो बहुत ज्यादा ऊर्जा की खपत करती है। इतनी ऊर्जा अमेरिका में 10 घरों की साल भर की बिजली सम्बन्धी जरूरतों को पूरा कर सकती है। ऐसे में यदि इंस्टाग्राम पर नजर डालें जहां हर मिनट 45 हजार इंस्टाग्राम पोस्ट डाली जाती हैं तो उनकी ऊर्जा खपत और कार्बन फुटप्रिंट कितना बढ़ा होगा। ऐसे ही न जाने कितने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म हैं जहां हर क्षण करोड़ों लोग अपना डेटा साझा करते हैं।

एक तरफ जहां यह डिजिटल डेटा आने वाले वक्त की जरूरत हैं वहीं दूसरी तरफ इसका समझदारी से उपयोग और प्रबंधन भी जरूरी है। वर्ना आने वाले वक्त में यह बड़ी समस्या भी पैदा कर सकता है। देखा जाए तो आज जिस तरह से यह डेटा बढ़ रहा है उसकी रफ्तार कमाल की है। हर कोई कंप्यूटर, मोबाइल और अन्य डिवाइसों की मदद से तेजी से डेटा पैदा कर रहा है।

180 जेटाबाइट्स को पार कर जाएगा 2025 तक डिजिटल डेटा

आलम यह है कि मात्रा हर दो वर्षों में यह डेटा दोगुना हो रहा है। वहीं विडम्बना देखिए की इस डेटा में से 65 फीसदी का कभी उपयोग नहीं किया जाएगा, जबकि 15 फीसदी डेटा वो है जो पुराना हो चुका है। यदि ऐसा ही चलता रहा तो अनुमान है कि 2025 तक वैश्विक स्तर पर डिजिटल डेटा बढ़कर 180 जेटाबाइट्स को पार कर जाएगा।

गौरतलब है कि इन डिजिटल आंकड़ों को डेटा कंपनियों द्वारा एकत्र किया जाता है और फिर दुनिया भर के अलग-अलग डेटा केंद्रों में बाइट्स के रूप में स्टोर किया जाता है। यदि इन डेटा केंद्रों को देखें तो यह इंसानों द्वारा किए जा रहे कुल सीओ2 उत्सर्जन के करीब 3.7 फीसदी हिस्से के लिए जिम्मेवार हैं। यह उत्सर्जन विमानन उद्योग से भी ज्यादा है।

ऐसे में वैश्विक स्तर पर शुद्ध शून्य उत्सर्जन और डीकार्बोनाइजेशन सम्बन्धी नीतियों के लिए इनका भी आंकलन जरूरी है। इतना ही नहीं यह डेटा सेंटर बड़े पैमाने पर बिजली और पानी की भी खपत भी कर रहे हैं।

इसी को ध्यान में रखते हुए लॉगबोरो विश्वविद्यालय से जुड़े वैज्ञानिकों ने अपनी तरह का पहला टूल बनाया है। यह अनोखा कार्बन फुटप्रिंट टूल व्यवसायों को अपने डिजिटल डेटा के कारण पैदा हो रहे कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) को मापने की अनुमति देता है। इस टूल को डेटा कार्बन लैडर का नाम दिया गया है।

रिपोर्ट के मुताबिक इस टूल की मदद से कंपनियां डेटा के मामले में समझदारी से निर्णय ले सकती हैं जो पर्यावरण के साथ-साथ उनके लिए आर्थिक रूप से भी फायदेमंद हो सकता है। इनकी मदद से कंपनियां अपने डिजिटल कार्बन फुटप्रिंट को कम कर सकती हैं।

लॉगबोरो बिजनेस स्कूल के प्रोफेसर इयान हॉजकिंसन ने प्रेस को जारी एक बयान में कहा कि, "नेट जीरो की दिशा में, डिजिटल तकनीकों ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। लेकिन साथ ही हमें अपने संगठनों और समाज में इन डिजिटल प्रौद्योगिकियों के उपयोग से पैदा हो रहे डेटा और उसके पर्यावरण पर पड़ने वाले छिपे प्रभावों के बारे में भी जागरूक होने की आवश्यकता है। उनके मुताबिक इस डेटा के कार्बन फुटप्रिंट की पहचान करना और उसके मापना, भविष्य में डीकार्बोनाइजेशन से जुड़ी रणनीतियों के लिए जरूरी है।

वहीं इस बारे में अध्ययन से जुड़े अन्य शोधकर्ता और लॉगबोरो बिजनेस स्कूल में प्रोफेसर टॉम जैक्सन के हवाले से कहा गया है कि, इस टूल की मदद से संगठन अपनी डेटा से जुड़ी गतिविधियों के कार्बन फुटप्रिंट का निर्धारण कर सकते हैं। साथ ही कार्बन उत्सर्जन में कटौती कर सकते हैं।" उनके मुताबिक इस उपकरण का उपयोग करके, संगठन अपने व्यावसायिक उद्देश्यों को प्राप्त करते हुए अपने पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिए बेहतर निर्णय ले सकते हैं।

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