सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च (सीपीआर) की एक नई रिपोर्ट "हाउ इज इंडिया एडाप्टिंग टू हीटवेव्स?" से पता चलता है कि देश गर्मी का सामना करने के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं है।
गर्मी से निपटने की योजना या हीट एक्शन प्लान (एचएपी) क्या हैं?
हीट एक्शन प्लान (एचएपी) भारत में खतरनाक गर्मी, लू या हीटवेव तथा इसके कारण होने वाले आर्थिक नुकसान से निपटने के लिए शुरुआती नीति प्रतिक्रिया है। इसके अंतर्गत लू या हीटवेव के प्रभाव को कम करने के लिए राज्य, जिला और शहर के सरकारी विभागों में विभिन्न प्रकार की शुरुआती गतिविधियों, आपदा प्रतिक्रियाओं और लू के बाद उपाय किए जाते हैं।
भारत के 18 राज्यों में सभी 37 गर्मी से निपटने की योजना या हीट एक्शन प्लान (एचएपी) का विश्लेषण किया गया। जिसमें इस बात का मूल्यांकन किया गया कि, भारत में गर्मी के मौसम के लिए नीतिगत कार्रवाई कैसे चल रही है। इसमें पाया गया कि अधिकांश गर्मी से निपटने के लिए बनी योजनाएं स्थानीय आधार पर नहीं बनाई गई हैं। रिपोर्ट से यह भी पता चला कि लगभग सभी हीट एक्शन प्लान (एचएपी) सबसे अधिक प्रभावित होने वाले लोगों की पहचान करने में विफल रहे हैं।
अत्यधिक गर्मी स्वास्थ्य और उत्पादकता दोनों के लिए भारी चुनौती खड़ी करती है, चेतावनी दी गई है कि जलवायु परिवर्तन के कारण हाल के दशकों में लू या हीटवेव की आवृत्ति में वृद्धि हुई है।
लू या हीटवेव ने 1998, 2002, 2010, 2015 और 2022 में श्रमिकों की काम करने की क्षमता, उत्पादकता को कम किया। साथ ही इसने पानी की उपलब्धता, कृषि और ऊर्जा प्रणालियों को प्रभावित करके बड़े पैमाने पर मृत्यु दर और भारी मात्रा में आर्थिक नुकसान पहुंचाया।
हालांकि भारत में हीट एक्शन प्लान (एचएपी) की सटीक संख्या की जानकारी नहीं है, कुछ अनुमानों का दावा है कि देश भर में 100 से अधिक हीट एक्शन प्लान (एचएपी) मौजूद हैं। सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च (सीपीआर), जिसने 18 राज्यों के नौ शहरों, 13 जिलों और 15 राज्य के स्तरों पर गर्मी कार्य योजनाओं की पहली अहम समीक्षा की है। जिसमें यह कहा गया कि यह स्पष्ट नहीं था कि कार्रवाई किस हद तक एचएपी में निर्धारित की जा रही थी।
2050 तक, कम से कम 35 डिग्री सेल्सियस के औसत गर्मियों के सबसे ज्यादा तापमान को पार करने के लिए 24 शहरी केंद्रों का अनुमान लगाया गया है, जो आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को प्रभावित करता है।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन का अनुमान है कि गर्मी के तनाव के कारण 2030 तक काम के घंटों में 5.8 प्रतिशत का नुकसान या 3.4 करोड़ नौकरियों के बराबर हो जाएंगे।
गर्मी से सबसे अधिक प्रभावित होने वाले लोगों के आकलन की आवश्यकता
रिपोर्ट में कहा गया है कि यह केवल दो हीट एक्शन प्लान (एचएपी) की कमजोरी का आकलन करते हैं और उसे सामने लाते हैं। इसमें इस बात का पता लगाना बहुत जरूरी है कि गर्मी से किसी शहर, जिले या राज्य में सबसे अधिक प्रभावित होने वाले लोग कहां-कहां हैं।
जबकि अधिकांश एचएपी कमजोर समूहों - बुजुर्गों, बाहरी श्रमिकों, गर्भवती महिलाओं की व्यापक श्रेणियों और समाधानों की सूची में हैं, लेकिन जरूरी नहीं कि वे इन समूहों पर गौर करें। इसके अतिरिक्त 37 एचएपी में से केवल तीन के लिए धन राशि के स्रोतों की पहचान की गई हैं और आठ एचएपी कार्यान्वयन विभागों को संसाधनों का स्व-आवंटन करने के लिए कहा गया हैं, जो एक गंभीर धन राशि में रोक का संकेत है।
समीक्षा किए गए किसी भी एचएपी में उनके अधिकार के कानूनी स्रोतों के बारे में नहीं बताया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह एचएपी के निर्देशों को प्राथमिकता देने और उनका पालन करने के लिए नौकरशाही के प्रोत्साहन को कम करता है।
रिपोर्ट में यह भी कहा कि एचएपी के लिए कोई राष्ट्रीय कोष नहीं है और बहुत कम एचएपी ऑनलाइन सूचीबद्ध किए गए हैं। यह भी स्पष्ट नहीं है कि इन एचएपी को समय-समय पर अपडेट किया जा रहा है या नहीं और क्या यह मूल्यांकन के आंकड़े पर आधारित है इस बात का भी पता नहीं है।
आर्थिक नुकसान तथा स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे
सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च (सीपीआर) के आदित्य वलियाथन पिल्लई ने कहा कि, भारत ने पिछले एक दशक में कई दर्जन हीट एक्शन प्लान बनाकर इसमें काफी प्रगति की है। लेकिन हमारे आकलन से कई कमियों का पता चलता है जिन्हें भविष्य की योजनाओं में पूरा करना होगा।
यदि हम ऐसा नहीं करते हैं, तो भारत को घटती श्रम उत्पादकता, कृषि में अचानक और बार-बार आने वाले व्यवधानों और असहनीय रूप से गर्म शहरों के कारण आर्थिक नुकसान उठाना पड़ेगा, क्योंकि लू या हीटवेव लगातार और तीव्र होती जा रहीं हैं।
रिपोर्ट में यह भी सलाह दी गई है कि, हीट एक्शन प्लान (एचएपी) के लिए वित्तपोषण के स्रोतों की पहचान की जाए, या तो धन के नए स्रोतों से या मौजूदा राष्ट्रीय और राज्य नीतियों के साथ कार्यों को मिलाकर इसमें निरंतर सुधार किया जाए।
पिल्लई ने कहा, सही हीट एक्शन प्लान (एचएपी) लागू किए बिना, भारत के सबसे गरीब गर्मी से सबसे अधिक पीड़ित रहेंगे, जिससे उनके स्वास्थ्य और आय दोनों पर भारी असर पड़ेगा।