बढ़ते तापमान के कारण वर्षावनों में रहने वाले वन्यजीव खतरे की कगार पर: अध्ययन

जलवायु परिवर्तन के तीव्र होने के कारण प्रजातियां अब उष्णकटिबंधीय जंगलों में जीवित नहीं रह पाएंगी, जिससे वैश्विक विलुप्ति का संकट और बढ़ जाएगा और वर्षावन कार्बन स्टॉक में गिरावट आएगी।
उष्णकटिबंधीय जंगलों में बढ़ते तापमान के चलते प्रजातियों की संरचना में परिवर्तन और जानवरों, कीटों और पौधों की आबादी में भारी गिरावट पाई गई।
उष्णकटिबंधीय जंगलों में बढ़ते तापमान के चलते प्रजातियों की संरचना में परिवर्तन और जानवरों, कीटों और पौधों की आबादी में भारी गिरावट पाई गई। फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स, फिरोस ए.के.
Published on

जलवायु में बदलाव से जो न हो वो कम है, इसकी जद में अब वर्षावनों में रहने वाले जीव भी आ गए हैं। शोधकर्ताओं का मानना है कि यह धारणा निराधार है कि उष्णकटिबंधीय जंगलों की छाया या कैनपी जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से सुरक्षा प्रदान करती हैं।

एक नए अध्ययन से पता चलता है कि असाधारण जैव विविधता वाली जगहें खतरे में हैं क्योंकि उष्णकटिबंधीय वनों में तापमान बढ़ रहा है, जो दुनिया के सबसे विविध स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र हैं।

यह लंबे समय से माना जाता रहा है कि पेड़ों के नीचे जहां प्रत्यक्ष तौर पर सूर्य का प्रकाश कम होता है, इन हिस्सों पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव नहीं पड़ता है।

इस नए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने दुनिया भर में उष्णकटिबंधीय इलाकों में वर्षावनों के नीचे के हिस्सों में तापमान की जांच करने के लिए एक माइक्रोक्लाइमेट मॉडल का उपयोग किया।

इससे पता चला कि 2005 से 2019 के बीच, दुनिया के अधिकांश अछूते उष्णकटिबंधीय जंगलों में कम से कम आंशिक रूप से ऐतिहासिक परिस्थितियों की सीमा से बाहर पूरी तरह से तापमान के औसत में नए बदलाव पाए गए।

शोध के मुताबिक, हाल ही तक, वर्षावनों के नीचे का तापमान अपेक्षाकृत स्थिर रहा, जिसका अर्थ है कि वहां रहने वाले वन्यजीव तापमान की एक सीमा के भीतर पले बढ़े। वे अब इस सीमा से बाहर के तापमान से निपटने के लिए अपने आपको अनुकूलित नहीं कर पा रहे हैं।

नेचर क्लाइमेट चेंज नामक पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में उष्णकटिबंधीय वनों के एक महत्वपूर्ण हिस्से में जलवायु परिवर्तन में स्पष्ट बदलाव पाया गया, जिसमें विश्व स्तर पर महत्वपूर्ण राष्ट्रीय उद्यान, स्वदेशी रिजर्व और पारिस्थितिकी रूप से जुड़े क्षेत्रों का एक बड़ा हिस्सा शामिल है।

हाल ही में बड़े पैमाने पर अप्रभावित, उष्णकटिबंधीय जंगलों में किए गए अध्ययनों में प्रजातियों की संरचना में परिवर्तन और जानवरों, कीटों और पौधों की आबादी में भारी गिरावट पाई गई। इन बदलावों को तापमान में वृद्धि होने से जोड़ा जा रहा है और ये नए शोध के निष्कर्षों के अनुरूप है।

शोधकर्ता ने शोध के हवाले से कहा कि उष्णकटिबंधीय वन वैश्विक जैव विविधता के असीम भंडार हैं और उनमें मौजूद प्रजातियों के जटिल नेटवर्क विशाल कार्बन स्टॉक का आधार हैं जो जलवायु परिवर्तन को कम करने में मदद करते हैं।

एक बड़ा खतरा यह है कि जलवायु परिवर्तन के तीव्र होने के कारण प्रजातियां अब उष्णकटिबंधीय जंगलों में जीवित नहीं रह पाएंगी, जिससे वैश्विक विलुप्ति का संकट और बढ़ जाएगा और वर्षावन कार्बन स्टॉक में गिरावट आएगी।

शोधकर्ता ने शोध में कहा कि यह अध्ययन इस प्रचलित धारणा को चुनौती देता है, जिसमें कहा गया है कि उष्णकटिबंधीय वनों की छाया या कैनपी जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करती है। साथ ही हमें यह भी समझने में मदद करता है कि जैव विविधता के इन प्रमुख क्षेत्रों के संरक्षण को प्रभावी ढंग से कैसे प्राथमिकता दी जाए। 

उन्होंने आगे कहा, यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि जंगलों के काटे जाने और क्षरण के दूरगामी, धन-संबंधी कारणों को हल किया जाए। जलवायु परिवर्तन के दौर में इन शरण देने वाली जगहों के रूप में कार्य करने वाले उन जंगलों का भविष्य कानूनी संरक्षण के माध्यम से तथा स्वदेशी समुदायों को सशक्त बनाकर सुरक्षित किया जाए।

शोध के मुताबिक, दुनिया भर में कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने की मूलभूत आवश्यकता के बावजूद, वैश्विक उष्णकटिबंधीय वन पारिस्थितिकी तंत्र को होने वाले नुकसान को कम करने में अहम भूमिका निभाते हैं। इन जंगलों का संरक्षण करना तथा भारी खतरे में पड़े वनों का पुनरुद्धार करना बहुत जरूरी है।

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in