एक नए अध्ययन में पाया गया है कि गर्म वसंत के कारण मधुमक्खियां जल्दी जाग जाती हैं, जिससे सेब और नाशपाती जैसी फसलों के परागण को खतरा होता है।
यह ब्रिटेन में अपनी तरह का सबसे बड़ा शोध है, शोध में पाया गया कि जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान में हर एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के लिए, भौंरा जैसी जंगली मधुमक्खियां, औसतन 6.5 दिन पहले अपने छत्तों से बाहर निकलती हैं।
क्योंकि वसंत पहले शुरू होता है और मधुमक्खियां वर्ष की शुरुआत के करीब आती हैं, वे उन पौधों के साथ तालमेल खो सकती हैं जिन पर वे निर्भर हैं, जिसका अर्थ है कि उनके सेवन के लिए भोजन कम हो सकता है। इसका मतलब यह है कि मधुमक्खियों के पास फसलों को प्रभावी ढंग से परागित करने की ऊर्जा नहीं हो सकती है, या वे फसल के खिलने से पूरी तरह चूक सकती हैं।
यह अध्ययन यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग स्कूल ऑफ एग्रीकल्चर, पॉलिसी एंड डेवलपमेंट के शोधकर्ता क्रिस वायवर के नेतृत्व में किया गया है, जो इकोलॉजी एंड इवोल्यूशन नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।
अध्ययन के मुताबिक, बढ़ता तापमान मधुमक्खियों के जीवन को कठिन बना रहा है। गर्म परिस्थितियों का मतलब है कि मधुमक्खियां जल्दी शीतनिद्रा से बाहर आती हैं, लेकिन जब वे भिनभिनाना शुरू करती हैं तो उनके लिए ऊर्जा प्रदान करने के लिए पर्याप्त भोजन नहीं होता है।
पौधों के फूलने के साथ जागने की तारीखों का मिलान नई मधुमक्खियों के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि उन्हें जीवित रहने और संतान पैदा करने की संभावना बढ़ाने के लिए पराग और फूलों की खोजने की आवश्यकता होती है। बेमेल का मतलब है कि मधुमक्खियां प्रभावी ढंग से परागण नहीं कर सकती हैं।
कम प्राकृतिक परागण के कारण किसानों को प्रबंधित मधुमक्खियों का उपयोग करने की आवश्यकता हो सकती है, जिसका अर्थ है अधिक लागत, जिसका भार उपभोक्ताओं पर डाला जा सकता है। जिसके कारण बाजार में सेब, नाशपाती, सब्जियां और अधिक महंगे हो सकते हैं।
चार दशकों के आंकड़े
अध्ययन में 40 वर्षों की अवधि में जंगली मधुमक्खियों की 88 विभिन्न प्रजातियों की जांच की गई, जिसमें 3,50,000 से अधिक व्यक्तिगत रिकॉर्डिंग का उपयोग किया गया, जिसमें समय के साथ और तापमान के संबंध में निकलने की तारीखों में बदलाव दिखाया गया।
आंकड़ों से पता चला है कि कुछ मधुमक्खियां दूसरों की तुलना में पहले निकलती हैं क्योंकि मधुमक्खियों की विभिन्न प्रजातियां बदलते तापमान पर अलग-अलग प्रतिक्रिया करती हैं। औसतन, 88 प्रजातियां प्रति दशक चार दिन पहले निकलती रही हैं।
अध्ययन के अनुसार, 2070 तक सर्दियां एक से 4.5 डिग्री सेल्सियस के बीच गर्म और 30 फीसदी तक अधिक नमी होने का अनुमान है, वसंत के पहले शुरू होने की संभावना है और मधुमक्खियां वर्ष की शुरुआत में सक्रिय होती रहेंगी।
मधुमक्खियों के निकलने में बदलाव का उन पौधों पर भी अधिक प्रभाव पड़ेगा जो परागण पर बहुत अधिक निर्भर हैं, जैसे कि सेब के पेड़, जो हाइबरनेशन समाप्त होने तक फूल के लिए तैयार नहीं हो सकते हैं।
मधुमक्खी के निकलने की तारीखों की तरह, यह समझना भी महत्वपूर्ण है कि जब फसलों पर फूल खिलते हैं तो जलवायु परिवर्तन उन्हें कैसे प्रभावित करता है, वे कितनी अच्छी तरह परागित होते हैं।
फलों के पेड़ों पर फूल कब खिलते हैं, इसके बारे में अधिक जानने के लिए रीडिंग यूनिवर्सिटी और ओरेकल फॉर रिसर्च के क्रिस और उनके सहयोगियों ने फ्रूटवॉच की स्थापना की है।
यह परियोजना जो लोगों को यह रिपोर्ट करने के लिए प्रोत्साहित करती है कि उनके बगीचों, पार्कों या भूखंडों पर फलों के पेड़ कब फूलने लगते हैं। जिनमें से 6,500 से अधिक दो वर्षों में हासिल हुई हैं, शोध टीम को फलों के पेड़ों के फूलने और मधुमक्खियों से परागण पर जलवायु परिवर्तन की भूमिका की बेहतर समझ विकसित करने में मदद मिलेगी।