बंदरों और लीमर पेड़ों पर रहने वाले जीव हैं जो अपना ज्यादातर समय पेड़ों पर बिताते हैं। इनकी ज्यादातर प्रजातियां पेड़ों पर ही अपना आशियाना बनाती हैं। लेकिन अब उनकी इस जीवनशैली में बदलाव आ रहा है। वैश्विक स्तर पर जिस तरह से तापमान में बढ़ोतरी हो रही है और पेड़ों का विनाश हो रहा है, उसके चलते इन जीवों को जमीन पर शरण लेने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।
इन जीवों को अब पानी और छाया की तलाश में अपना ज्यादा से ज्यादा समय जमीन पर बिताना पड़ रहा है। बन्दर और लीमर की कई प्रजातियां आज अपने जीवन के लिए संघर्ष कर रही हैं और इसके लिए बढ़ती इंसानी महत्वाकांक्षा ही जिम्मेवार है।
देखा जाए तो जमीन पर अपने पसंदीदा भोजन और आश्रय की कमी के कारण कहीं ज्यादा जोखिम में हैं। साथ ही उनसे इंसानों और पालतू जानवरों के साथ टकराव की सम्भावना भी बढ़ सकती है। यह जानकारी हाल ही में की गई एक नई रिसर्च में सामने आई है, जोकि प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज (पनास) में 10 अक्टूबर 2022 को प्रकाशित हुई है।
इस अध्ययन में अमेरिका और मेडागास्कर में पेड़ों पर रहने वाले बन्दर और लीमर की 47 प्रजातियों को शामिल किया गया है। इन प्रजातियों का 1.5 लाख घंटों से भी ज्यादा अवलोकन किया गया है। इनमें बन्दर की 32 और लीमर की 15 प्रजातियां शामिल थी।
अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने इन प्रजातियों पर पड़ने वाले पर्यावरण और जलवायु के प्रभावों के साथ-साथ इंसानी प्रभावों का भी अध्ययन किया है। रिसर्च में सामने आया है कि जो प्रजातियां फलों का सेवन कम करती है और बड़े सामाजिक समूहों में रहती हैं, उनके जमीन पर उतरने की सम्भावना सबसे ज्यादा होती है। देखा जाए तो यह परिवर्तन दर्शाते है कि यह जीव अपने आप को अनुकूल बनाने के लिए अपनी जीवनशैली में बदलाव कर रहे हैं।
इसके साथ ही बन्दर और लीमर की जो प्रजातियां गर्म वातावरण और कम घने जंगलों में रहती हैं उनके जमीन पर उतरने और उसकी और स्थानांतरित होकर इन बदलावों के अनुकूल होने की सबसे ज्यादा सम्भावना है।
पहले ही जलवायु में आते बदलावों के कारण खतरे में हैं कई प्रजातियां
रिसर्च से पता चला है कि इनमें से कई प्रजातियां पहले ही गर्म और अशांत वातावरण में रहने के लिए मजबूर हैं, जिन्हें अक्सर कम आहार उपलब्ध हो पाता है। पता चला है कि जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन का असर गहरा रहा है और पेड़ कम हो रहे हैं, यह जीव फलों को छोड़ दूसरे सामान्य आहार का सेवन कर रहे हैं। साथ ही इनमें से जो प्रजातियां बड़े समूहों में रहती है वो स्थलीय जीवनशैली को कहीं ज्यादा आसानी से अपना सकती है।
अध्ययन में यह भी सामने आया है कि इनमें से जो प्रजातियां इंसानों के पास रहती हैं उनके जमीन पर आने की सम्भावना कम है। ऐसे में इंसान की उपस्थिति जो अक्सर इन जीवों के लिए खतरा होती है, वो वैश्विक बदलावों के प्रति प्रजातियों की प्राकृतिक अनुकूलन क्षमता में हस्तक्षेप कर सकती है। देखा जाए तो पहले पेड़ों को छोड़ जमीन पर आने से बन्दर प्रजातियों का विकास हुआ है लेकिन तेजी से आता बदलाव उनके लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकता है।
ऐसा ही कुछ जर्नल साइंस में प्रकाशित एक अध्ययन में सामने आया था। जिसमें सामने आया था कि जैसे-जैसे मनुष्यों की महत्वाकांक्षा बढ़ती जा रही है, वो तेजी से जंगलों में जानवरों के आवासों पर अतिक्रमण कर रहे हैं, जिसका परिणाम है कि पहले की तुलना में दिन में ज्यादा व्यस्त रहने वाले जीव अब रात्रिचर हो रहे हैं और वो अपनी दैनिक गतिविधियों के लिए अंधेरे की शरण लेने के लिए मजबूर हैं।
इस बारे में अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता टिमोथी एपली का कहना है कि, “यह संभव है कि जमीन पर अधिक समय बिताने से इनमें से कुछ प्रजातियां को जलवायु परिवर्तन और वन क्षरण के प्रभावों से राहत मिल जाए, लेकिन जो प्रजातियां इसके लिए तैयार नहीं होंगी उनके अस्तित्व को बचाने के लिए तेज और प्रभावी संरक्षण नीतियों की जरुरत होगी।“