अंटार्कटिका के समुद्री बर्फ में क्यों आई भारी कमी, भारतीय वैज्ञानिकों ने सुलझाया रहस्य

अध्ययन के निष्कर्षों से पता चलता है कि महासागर के ऊपरी हिस्से की अत्यधिक गर्मी ने साल 2023 में बर्फ के विस्तार पर लगाम लगा दी थी।
2016 से 2022 तक हर साल गर्मी के मौसम में अत्यधिक धीमी गति से समुद्री बर्फ बढ़ने या वापसी के साथ 2023 में अचानक इसमें भारी कमी आई। फोटो साभार : पीआईबी
2016 से 2022 तक हर साल गर्मी के मौसम में अत्यधिक धीमी गति से समुद्री बर्फ बढ़ने या वापसी के साथ 2023 में अचानक इसमें भारी कमी आई। फोटो साभार : पीआईबी
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भारतीय वैज्ञानिकों के द्वारा किए गए एक अध्ययन में इस बात का पता लगाया गया है कि साल 2023 में अंटार्कटिका की समुद्री बर्फ में भारी कमी के पीछे के क्या कारण थे। यह अध्ययन भारत के नेशनल सेंटर फॉर पोलर एंड ओशन रिसर्च (एनसीपीओआर) और यूके में ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वेक्षण के सहयोग से किया गया था। अध्ययन में उन स्थितियों की जानकारी दी गई है, जिनके कारण 2023 में अंटार्कटिक में बर्फ में भारी कमी, बर्फ के पीछे हटने के कारण उत्पन्न हुई।

दुनिया भर में तापमान में वृद्धि या ग्लोबल वार्मिंग के चलते पिछले दशक में आर्कटिक की समुद्री बर्फ का भारी नुकसान हुआ। जबकि अंटार्कटिक में 2015 तक मध्यम वृद्धि दिखाई दी थी और उसके बाद 2016 से इसमें कमी आने लगी I विशेष रूप से 2016 से 2022 तक हर साल गर्मी के मौसम में अत्यधिक धीमी गति से समुद्री बर्फ बढ़ने या वापसी के साथ 2023 में अचानक इसमें भारी कमी आई।

अंटार्कटिका में धीमी गति से बर्फ का विस्तार सात सितंबर 2023 को एक करोड़ 69 लाख 80 हजार वर्ग किमी की बर्फ की सीमा के साथ वार्षिक अधिकतम से पहले हुआ, जो एक करोड़ 46 लाख वर्ग किमी की लंबी अवधि के औसत से कम था। समुद्री बर्फ में इस बदलाव के पीछे के कारण वैज्ञानिक समुदाय और नीति निर्माताओं दोनों के लिए ही एक बड़ा प्रश्न बना हुआ है।

अध्ययन के निष्कर्षों से पता चलता है कि महासागर के ऊपरी हिस्से की अत्यधिक गर्मी, जिसे एक्सेसिव अपर ओशन हीट कहा जाता है, जो 2023 में बर्फ के विस्तार को कम करने के लिए जिम्मेवार थी। लेकिन साथ ही वायुमंडलीय प्रसार में बदलाव भी अत्यधिक हुए और उन्होंने इसमें एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हवा के पैटर्न में बदलाव जैसे कि अत्यधिक गहरे ईस्टवार्ड शिफ्ट के कारण वेडेल सागर में उत्तर की ओर तेज हवाएं चली।

उत्तरी हवा ने वायुमंडलीय तापमान में रिकॉर्ड वृद्धि की और बर्फ के किनारों को अपनी सामान्य स्थिति से दक्षिण की ओर रहने के लिए विवश किया। इसके एक कम दबाव वाली प्रणाली होने के कारण, पश्चिम अंटार्कटिका और आसपास की समुद्री स्थितियों के जलवायु उतार-चढ़ाव पर अत्यधिक प्रभाव डालने के लिए जाना जाता है।

रॉस सागर में, बर्फ के विस्तार में तेजी से बदलाव मुख्य रूप से वायुमंडलीय ब्लॉक की रिकॉर्ड मजबूती के कारण हुआ, जिसने रॉस आइस शेल्फ से तेज उत्तरी हवाएं प्रवाहित कर दीं। गर्म हवा के थपेड़ों के साथ असाधारण समुद्री-वायुमंडलीय तापमान में वृद्धि ने हवाओं में बदलाव किया।

तेज हवाओं और ध्रुवीय चक्रवातों से जुड़ी उच्च समुद्री लहरों के साथ मिलकर, अंटार्कटिक में रिकॉर्ड स्तर पर बर्फ को कम करने में अहम भूमिका निभाई। विशेष रूप से, चक्रवातों के कारण असाधारण रूप से धीमी गति से बर्फ के विस्तार या यहां तक कि इसके पीछे हटने की घटनाएं हुईं।

उदाहरण के लिए, वेडेल सागर में बर्फ का किनारा कुछ ही दिनों में 256 किमी तक दक्षिण की ओर तेजी से खिसक गया, जिससे ब्रिटेन के आकार के बराबर अर्थात 2.3 × 105 वर्ग किमी के क्षेत्र के बराबर बर्फ की हानि हुई। बर्फ के अल्बेडो फीडबैक प्रक्रिया के माध्यम से कम बर्फ की स्थिति का वैश्विक तापमान में वृद्धि  की दक्षिणी महासागर में जीवन, क्षेत्रीय पारिस्थितिकी तंत्र, महासागर प्रसार, बर्फ के परतों की स्थिरता और समुद्र के स्तर में वृद्धि पर भारी प्रभाव पड़ने की आशंका जताई गई है।

लगभग 45 साल के उपग्रह अवलोकनों के रिकॉर्ड को ध्यान में रखते हुए, यह आकलन करना कठिन है कि क्या पिछले सात वर्षों के दौरान देखी गई बर्फ की मात्रा में कमी और वृद्धि में वर्तमान कमी उस लंबी अवधि की गिरावट का हिस्सा है, जैसा कि जलवायु मॉडल द्वारा अनुमान लगाया गया है।

जहां एक ओर प्राकृतिक जलवायु परिवर्तनशीलता हाल ही में बर्फ की मात्रा में कमी में अहम भूमिका निभाती है, वहीं मानवजनित कारणों का प्रभाव भी ऐसी विषम घटना को शुरू करने के लिए जरूरी है।

अध्ययन के हवाले से अध्ययनकर्ता ने कहा, इस क्षेत्र में मानवजनित दबाव और जलवायु परिवर्तनशीलता के बीच परस्पर क्रिया अस्पष्ट है और जिसकी आगे जांच की जानी चाहिए।

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