क्यों छोटा हो रहा है मछलियों का आकार, वैज्ञानिक तलाश रहे हैं वजह

मछलियों के गलफड़ों का सतह क्षेत्र सीमित होता है जो उनके द्वारा आपूर्ति की जा सकने वाली ऑक्सीजन की मात्रा में रुकावट डालता है, इस प्रकार, गर्म पानी की स्थिति में मछलियां इतनी बड़ी नहीं हो सकती हैं।
गर्म तापमान के चलते मछलियों का आकार हो रहा है छोटा, फोटो साभार : आईसटॉक
गर्म तापमान के चलते मछलियों का आकार हो रहा है छोटा, फोटो साभार : आईसटॉक
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दुनिया भर में जलवायु में बदलाव आ रहा है और हमारे महासागर और नदियां गर्म हो रही हैं। सिर्फ मछलियों का ही नहीं, बल्कि कई जानवरों का गर्म तापमान के चलते शरीर का आकार छोटा हो रहा है। यूमैस एमहर्स्ट में जीव विज्ञान के शोधकर्ता और मुख्य अध्ययनकर्ता जोशुआ लेंथियर कहते हैं, हमारे पास इसके पीछे का एक इशारा भी है, जो तापमान और आकार के नियम हैं। लेकिन दशकों के शोध के बावजूद, हम अभी भी यह नहीं समझ पाए हैं कि तापमान बढ़ने के साथ आकार क्यों घटता है।

आखिर क्यों हो रहा शरीर का आकार छोटा?

शोधकर्ता ने बताया कि एक प्रमुख सिद्धांत, गिल ऑक्सीजन लिमिटेशन (जीओएल), मानता है कि मछली की वृद्धि इस बात पर निर्भर करती है कि गिल्स पानी से कितनी ऑक्सीजन खींच रहे हैं। जैसे ही पानी गर्म होता है, मछली की जैव रासायनिक प्रक्रियाएं तेज हो जाती हैं और उसे अधिक ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है।

जीओएल के सिद्धांत का तर्क है कि गलफड़ों का सतह क्षेत्र सीमित होता है जो उनके द्वारा आपूर्ति की जा सकने वाली ऑक्सीजन की मात्रा में रुकावट डालता है और इस प्रकार, गर्म पानी की स्थिति में मछलियां इतनी बड़ी नहीं हो सकती हैं। इसलिए, मछलियां उस सीमित ऑक्सीजन को पूरा करने के लिए "सिकुड़" रही हैं जितना कि उनके गलफड़े आपूर्ति कर सकते हैं।

जीओएल सिद्धांत भविष्य में दुनिया भर में मत्स्य पालन में भारी कमी के अनुमान को उजागर करता है, जिसमें प्रकृति के संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ (आईयूसीएन) द्वारा उपयोग किए जाने वाले कुछ और चीजें भी शामिल हैं, लेकिन इनका कभी भी सीधे परीक्षण नहीं किया गया है।

यूमैस एमहर्स्ट में पर्यावरण संरक्षण में सहायक प्रोफेसर और अध्ययनकर्ता लिसा कोमोरोस्के कहते हैं, हमने देखा कि जीओएल पर पूर्व अध्ययन अन्य, असंबंधित शोध परियोजनाओं से पुनर्निर्मित आंकड़ों पर निर्भर करते हैं, जिन्हें विशेष रूप से सिद्धांत का परीक्षण करने के लिए डिजाइन नहीं किया गया था। हमने लंबे समय तक प्रयोग किए जो सामूहिक रूप से जीओएल का अनुभव आधारित परीक्षण करने का पहला प्रयास है।

अध्ययनकर्ता इस बात का पता लगाना चाहते थे कि जीओएल के तीन प्रमुख तत्व - विकास, ऊर्जावान मांग और मछली के गलफड़े का सतह क्षेत्र पानी का तापमान बढ़ने के साथ कैसे बदलते हैं। ऐसा करने के लिए उन्होंने ब्रुक ट्राउट की ओर रुख किया, जो एक आदर्श परीक्षण विषय हैं, वैज्ञानिक पहले से ही प्रजातियों के बारे में बहुत कुछ जानते हैं, वे पूर्वोत्तर अमेरिका में तेजी से बढ़ रहे हैं, आर्थिक और पारिस्थितिक रूप से महत्वपूर्ण हैं और उनके साथ काम करना तुलनात्मक रूप से आसान है।

उनके पास परीक्षण के लिए छोटी मछलियां थीं, जिनका शुरू में वजन एक से दो ग्राम के बीच था, उन्हें टैंकों में रखा गया था, जिनमें से कुछ में पानी का तापमान सामान्य, 15 डिग्री सेल्सियस था और जिनमें से कुछ में 20 डिग्री सेल्सियस तक गर्म पानी था। प्रयोग की शुरुआत में और फिर उसके बाद हर महीने मछलियों का वजन मापा गया। उनकी ऑक्सीजन खपत को दो सप्ताह, तीन महीने और छह महीने में भी मापा गया, जो चयापचय दर का पता लगाने का एक तरीका है। अंत में, शोधकर्ताओं ने उनके गिल सतह क्षेत्र में परिवर्तन को मापने के लिए उसी मछली से गिल के नमूने एकत्र किए।

एक बार जब उन्होंने अपने आंकड़ों का विश्लेषण करना शुरू किया, तो कुछ चीजें स्पष्ट हो गई, गर्म टैंकों में ब्रुक ट्राउट अपेक्षा के अनुरूप छोटे थे और तापमान आकार नियम के अनुरूप थे। हालांकि, गिल सतह क्षेत्र मछलियों की ऊर्जावान मांगों को पूरा करने के लिए पर्याप्त से अधिक था, जिसका अर्थ है कि उनकी वृद्धि गिल के सतह क्षेत्र तक सीमित नहीं थी, जैसा कि जीओएल ने भविष्यवाणी की थी।

इसके अलावा टीम ने पाया कि जबकि गर्म टैंक वाली मछलियों की चयापचय दर तीन महीने में बढ़ गई, छह महीने में उनकी ऑक्सीजन दर सामान्य हो गई, जिससे पता चला कि मछलियां पानी के बढ़े हुए तापमान के हिसाब से समय के साथ अपने शरीर विज्ञान को समायोजित कर सकती हैं।

लेंथियर कहते हैं, मछली के आकार में ऑक्सीजन का उपयोग अभी भी एक अहम सीमित कारण हो सकता है, कुल मिलाकर, शोध के निष्कर्ष बताते हैं कि जीओएल भविष्यवाणी नहीं कर सकता कि हम क्या देख रहे हैं और इसका भविष्य के मत्स्य पालन और पारिस्थितिकी तंत्र पर जलवायु प्रभावों की भविष्यवाणी करने के लिए ठीक नहीं हैं।

कोमोरोस्के कहते हैं, हमारा काम इसके महत्व पर प्रकाश डालता है। मत्स्य पालन और मैक्रोइकोलॉजी वैज्ञानिक आबादी और प्रजातियों के स्तर पर काम करते हैं, जबकि शरीर विज्ञानी व्यक्तिगत और सेलुलर स्तरों पर काम करते हैं। लेकिन ये अकादमिक अंतर हैं, प्राकृतिक नहीं और अगर हम मछली को गर्म पानी में जीवित रहने में मदद करने जा रहे हैं, हमें जैविक पैमानों पर काम करने और इन सभी क्षेत्रों की और जानकारी हासिल करने की जरूरत है।

लेंथियर कहते हैं, तो मछली के आकार और तापमान को नियंत्रित करने वाला तंत्र क्या है? हम अभी तक नहीं जानते। यह एक मात्र तंत्र नहीं हो सकता है - इसमें ऑक्सीजन के उपयोग सहित कई कारक हो सकते हैं। हमें इससे जुड़े अधिक से अधिक विषयों के लंबे समय तक अध्ययन करने की आवश्यकता है, ताकि हम समझा जा सके कि हमारी गर्म होती दुनिया के साथ सबसे अच्छा तालमेल कैसे बिठाया जाए।

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