मुंबई में हो रही लगातार बारिश की वजह से जुहू स्थित प्रतीक्षा बॉलीवुड के मेगास्टार अमिताभ बच्चन की बेटी श्वेता बच्चन के लगभग 200 करोड़ रुपए के आलीशान बंगले में घुटनों-घुटनों पानी भर गया। देश की आर्थिक राजधानी मुंबई 16 अगस्त से लगातार हो रही भारी बारिश और जलभराव से जूझ रही है।
हालांकि मुंबई के लिए लगातार बारिश कोई नई बात नहीं है, लेकिन इस साल का अगस्त महीना भारतीय मौसम विभाग यानी आईएमडी के सांताक्रूज केंद्र के अनुसार दशक का दूसरा सबसे अधिक बारिश वाला अगस्त है। इस महीने अब तक 1025 मिमी बारिश दर्ज की जा चुकी है।
मुंबई में बारिश 16 अगस्त से शुरू हुई थी और पहले ही दिन, वेदर ब्लॉगिंग पेज ‘वैगरिज ऑफ वेदर’ के अनुसार, लगभग 245 मिमी वर्षा दर्ज की गई। 20 अगस्त तक यानी पांच दिनों में, मुंबई के सांताक्रूज मौसम केंद्र पर 875.1 मिमी वर्षा दर्ज हो चुकी थी।
विशेषज्ञों के अनुसार, मुंबई में लगातार बारिश के पीछे कई वेदर सिस्टम ज़िम्मेदार हैं।
विदर्भ क्षेत्र में बना कम दबाव क्षेत्र,
उत्तर-पूर्वी अरब सागर में चक्रवाती परिसंचरण,
बंगाल की खाड़ी में बना गहरा दबाव,
6 किमी ऊँचाई तक फैली बेहद तेज़ और गहरी पश्चिमी हवाएँ,
और सक्रिय अपतटीय मानसूनी ट्रफ—
इन सबने मिलकर मौसम को और प्रबल बना दिया है।
इन मौसमीय कारणों के अलावा, जलवायु परिवर्तन भी अहम भूमिका निभा रहा है। भारत सरकार के प्रेस इंफॉर्मेशन ब्यूरो द्वारा जारी एक रिपोर्ट, जिसमें पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के पूर्व सचिव डॉ. राजीवन माधवन नायर को उद्धृत किया गया है, बताती है कि देशभर में वर्षा के पैटर्न में बदलाव आया है।
कुछ क्षेत्रों—जैसे केरल, पूर्वोत्तर भारत और पूर्व-मध्य भारत—में मानसून के दौरान वर्षा घट रही है, जबकि उत्तर कर्नाटक, महाराष्ट्र और राजस्थान जैसे इलाकों में वर्षा बढ़ी है।
डॉ. नायर यह भी बताते हैं कि एक दिन में 150 मिमी से अधिक की अत्यधिक वर्षा की घटनाएँ बढ़ रही हैं—इनमें हर दशक में लगभग दो घटनाओं का इज़ाफा हो रहा है।
निष्कर्ष
परिवहन सेवाएँ जैसे उड़ानें और ट्रेनें गंभीर रूप से प्रभावित हुई हैं। मंगलवार को अधिकारियों को एक भीड़भाड़ वाले मोनोरेल सिस्टम से 600 लोगों को बचाना पड़ा। शहर के कई हिस्सों में पानी कमर तक भर गया और जगह-जगह कचरा तैरता दिखाई दिया।
बेहतर शहरी योजना और जलवायु-सहनशील ढाँचे की ज़रूरत अब पहले से कहीं अधिक है। 2025 की मुंबई की बारिश 2005 की भयावह वर्षा की तुलना में हल्की है, लेकिन यदि जलवायु परिवर्तन से निपटने और टिकाऊ तथा कुशल शहरों की योजना बनाने के लिए कठोर और गंभीर कदम नहीं उठाए गए, तो इस तरह की चरम मौसमीय घटनाएँ अब कोई अपवाद नहीं रह जाएँगी।
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