मौसम के लिहाज से ये पूरा साल उत्तराखंड के लिए चौंकाने वाला रहा और हमें ये प्रमाण मिलते रहे कि जलवायु परिवर्तन हो रहा है। सर्दियों में गर्मी, गर्मियों में तेज़ बारिश और मानसून बीतने के बाद आई आपदा ने राज्य के लाखों लोगों को प्रभावित किया। सैंकड़ों गांव विस्थापन की मांग कर रहे हैं। बेमौसमी बारिश और आपदा से राज्य को करोड़ों का नुकसान हुआ। बागवान से लेकर किसान तक मौसम सबको निराश कर गया। वर्ष 2021 अब ठोस क्लाइमेट एक्शन के संदेश के साथ गुज़र रहा है।
जनवरी में जल रहे थे जंगल
जनवरी के महीने में उत्तराखंड के जंगलों में जगह-जगह आग लगने की घटनाएं हो रही थी। चरम सर्दियों के मौसम में जलते जंगलों को देखकर राज्य के वन मंत्री डॉ हरक सिंह रावत को ये तक कहना पड़ा कि अब राज्य में सालभर फायर सीजन रहेगा। डाउन टु अर्थ ने इस पर रिपोर्ट की थी कि 1 अक्टूबर 2020 से 4 जनवरी 2021 तक राज्य के जंगलों में आग की 236 घटनाएं हुईं। इसकी वजह अक्टूबर से दिसंबर 2020 तक सामान्य बारिश में 71% कमी बतायी गई।
फरवरी में हिम-स्खलन
चमोली में फरवरी के महीने में हिमस्खलन से कई मौतें हुईं, गंगा पर बने दो हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट में बर्बादी आई, हरिद्वार तक बाढ़ का खतरा आ गया। वैज्ञानिक मानते हैं कि आमतौर पर सर्दियों में हिमस्खलन नहीं होता। लेकिन मई-जून जैसी गर्मी जनवरी-फरवरी की दोपहर में पड़े तो भविष्य इस तरह के अंदेशे बने रहेंगे। इसकी वजह लगातार गर्म होता हिमालय है।
मार्च-अप्रैल में बारिश-बर्फ़बारी
पिछले कुछ वर्षों से मार्च-अप्रैल के महीने में किसान-बागवान की फ़सल अत्यधिक बारिश और बर्फ़बारी से प्रभावित हो रही है। इस वर्ष अप्रैल के दूसरे हफ्ते से लगातार एक हफ्ते तक बर्फ़बारी ने सेब बागवानों को निराश किया। ये समय फूलों की सेटिंग और फलों के बनने का था। लेकिन बर्फ़बारी से फूल झड़ गए। वहीं, पहाड़ों में सब्जियों-अनाजों की नर्सरी लगा चुके किसानों पर भी बारिश कहर बनकर टूटी।
बेमौसम बदलाव से खेती-बागवानी को हर साल करोड़ों का नुकसान पहुंचता है। जलवायु परिवर्तन के चलते होने वाले नुकसान का अलग से आकलन नहीं किया जाता।
मई में फटते बादल
मई महीने की शुरुआत ही राज्य में एक के बाद एक बादल फटने की घटनाओं से हुई। तकरीबन 24 से अधिक बादल फटने की घटनाएं विभिन्न सूचना माध्यम के ज़रिये रिपोर्ट की गईं। आमतौर पर झुलसाती गर्मी वाला महीना ठंड के अहसास के साथ गुज़रा। उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग, चमोली, पिथौरागढ़, टिहरी, अल्मोड़ा समेत देहरादून के पर्वतीय हिस्सों तक बादल फ़टने की घटनाएं दर्ज की गईं। जिन गांवों पर ये प्राकृतिक आपदा गुज़री वहां घरों में दरार, खेतों में मलबा और फिर विस्थापन का इंतज़ार ठहर गया। इन गांवों की सूची में इस साल चिपको आंदोलन का चेहरा गौरा देवी का गांव रैणी भी शामिल हो गया।
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के मुताबिक राज्य के 6 ज़िलों 1 मार्च से 31 मई 2021 तक 60 % से अधिक बारिश दर्ज की गई। ऊधम सिंह नगर में 234% अधिक, नैनीताल में 102%, चंपावत में 116% और बागेश्वर में 147% अधिक बारिश रही। जबकि बाकी 5 ज़िलों में भी 20-59% तक अधिक बारिश रही।
वहीं मई से सितंबर के बीच राज्य में बादल फटने की कम से कम 50 सूचनाएं दर्ज की गई हैं। इसके बावजूद बादल फटने, अत्यधिक तेज़ बारिश को रिकॉर्ड करने के लिए राज्य के मौसम विभाग के पास पर्याप्त साधन और मशीनरी उपलब्ध नहीं है।
अक्टूबर की आपदा
पर्वतीय राज्य होने के नाते उत्तराखंड जुलाई से सितंबर तक बारिश-भूस्खलन जैसी आपदाओं से निपटने के लिए खुद को तैयार रखता है। रिपोर्ट्स कहती हैं अब इन आपदाओं की तीव्रता बढ़ रही है।
उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन विभाग के मुताबिक वर्ष 2015 में राज्य में भूस्खलन की 33 घटनाएं और 12 मौतें हुई थीं। वर्ष 2020 में 25 मौतों के साथ 972 घटनाएं दर्ज की गईं। 15 जून से सितंबर के बीच यहां बारिश-भूस्खलन से 36 मौतें दर्ज की गई थीं।
लेकिन मानसून बीतने के बाद आई 17-19 अक्टूबर की आपदा ने राज्यभर में बर्बादी के मंजर बिखेर दिए। तीन दिनों की भारी बारिश, बादल फटने और भूस्खलन से राज्य में 79 मौतें, 24 घायल और 3 लापता लोगों की आधिकारिक सूचना दी गई। झीलों की नगरी नैनीताल में इस आपदा में काफी नुकसान हुआ।
वर्ष 2013 की केदारनाथ आपदा के बाद इस वर्ष भूस्खलन समेत प्राकृतिक आपदाओं में जान गंवाने वालों की संख्या 298 सबसे अधिक है।
अक्टूबर की आपदा ये भी रहा कि बीते साल 2020 की तुलना में इस साल अक्टूबर से अब तक सामान्य से कहीं अधिक बारिश दर्ज की गई।
सर्दियों में पिघलते ग्लेशियर!
वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी हिमालयी क्षेत्र में आपदाओं के तौर पर सामने आ रही है। इन आशंकाओं के साथ कि हिमालयी ग्लेशियर सर्दियों में भी पिघल सकते हैं जबकि माना जाता है ये समय बर्फ़ जमाने का है।
साल 2021 गुज़रते-गुज़रते जलवायु समाधानों को ज़मीन पर लाने का जरूरी संदेश देकर जा रहा है।