उमाशंकर मिश्र
शहरीकरण एवं फसल चक्र में बदलाव सेभूमि उपयोग और भूमि आवरण बदल रहा है, जिसके कारण स्थानीय तापमान में निरंतर वृद्धि हो रही है।भूमि आवरण, भूमि उपयोग और तापमान संबंधी 30 वर्ष के आंकड़ों के विश्लेषण के बाद भारतीय शोधकर्ता इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), भुवनेश्वर, साउथएम्पटन यूनिवर्सिटी, ब्रिटेन और आईआईटी, खड़गपुर के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए इस अध्ययन में ओडिशा में वर्ष 1981 से 2010 तक भूमि उपयोग, भूमि आवरण और मौसम के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है। तापमान संबंधी आंकड़े मौसम विभाग और भूमि उपयोग के आंकड़े इसरो के उपग्रहों से प्राप्त किए गए हैं।
तीन दशकों में ओडिशा के औसत तापमान में करीब 0.3 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि देखी हुई है। तापमान में सबसे अधिक 0.9 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोत्तरी वर्ष 2001 से 2010 के दशक में दर्ज की गई है।तापमान में 50 प्रतिशत तक बढ़ोत्तरी के लिए भूमि उपयोग तथा भूमि आवरण में बदलाव को जिम्मेदार पाया गया है।
बड़े शहरों के तापमान में छोटे शहरों की अपेक्षा अधिक वृद्धि की देखी गई है। कटक और भुवनेश्वर जैसे सर्वाधिक आबादी वाले शहरों के तापमान में क्रमशः 40 तथा 50 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई है। ओडिशा केइन दोनों शहरों में शहरीकरण की दर सबसे अधिक है। इसके बाद जिन शहरों में अधिक तापमान वृद्धि हुई है, उनमें अंगुल, ढेंकानाल और जाजापुर शामिल हैं।
आईआईटी, भुवनेश्वर के शोधकर्ताडॉ वी. विनोज ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “भूमि उपयोग एवं भूमि आवरण में बदलाव से जिन क्षेत्रों के तापमान में बढ़ोत्तरी हुई है उनमें अधिकतर ऐसे क्षेत्र हैं जहां फसल चक्र में भी परिवर्तन हुआ है।यहां फसल चक्र में बदलाव का अर्थ खरीफ फसलों की अपेक्षा रबी फसलों की खेती अधिक करने से है।”
ओडिशा में वर्ष 2006-2010 में खरीफ की तुलना में रबी फसलों की खेती में करीब 97 प्रतिशत वृद्धि हुई है। फसल चक्र में यह बदलाव इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी दौरान स्थानीय तापमान में भी सर्वाधिक वृद्धि देखी गई है।फसल चक्र में बदलाव के कारण तापमान में करीब 30 प्रतिशत बढ़ोत्तरी हुई है।शोधकर्ताओं का कहना है किमिट्टी की नमी में परिवर्तन भूमि की सतह के तापमान को प्रभावित करता है।
डॉ विनोज ने बताया कि “इस अध्ययन से पता चला है कि भूमि उपयोग एवं भूमि आवरण में बदलाव से क्षेत्रीय तापमान में परिवर्तन हो सकता है। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि ग्रामीण इलाकों की तुलना में शहरों के तापमान में दोगुनी तक वृद्धि हो रही है।”
शोधकर्ताओं का कहना है कि किसी स्थान के तापमान के निर्धारण में वैश्विक एवं क्षेत्रीय जलवायु परिवर्तनों के अलावा वनों की कटाई और शहरीकरण जैसी स्थानीय गतिविधियों की भूमिका अहम होती है। इसीलिए,जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को कम करने के लिए उद्योगों एवं वाहनों के उत्सर्जन को कम करने के साथ-साथ दीर्घकालिक शहरों के निर्माण और कृषि तथा वानिकी प्रबंधन जैसे तथ्यों की ओर ध्यान देना जरूरी है।
यह अध्ययन शोध पत्रिका साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित किया गया है। शोधकर्ताओं में आईआईटी, भुवनेश्वर के डॉ वी. विनोज, पार्था प्रतिमा गोगोई एवं डी. स्वैन के अलावा साउथएम्पटन यूनिवर्सिटी, ब्रिटेन के जी. रॉबर्ट्स तथा जे. डैश और आईआईटी, खड़गपुर के एस. त्रिपाठी शामिल थे। (इंडिया साइंस वायर)