30 फीसदी तक सूख जाएंगे पानी वाले आवास, मेंढकों और टोडों के अस्तित्व पर मंडराया खतरा: अध्ययन

सदी के अंत तक नियमित रूप से आने वाली लू या हीटवेव के कारण 15 से 36 फीसदी क्षेत्रों को सूखे का सामना करना पड़ेगा।
साल 2100 तक मेंढक और टोड के मौजूदा आवासों में से सात से 30 फीसदी तक सूख जाएंगे, फिर वे जीवित नहीं रह पाएंगे।
साल 2100 तक मेंढक और टोड के मौजूदा आवासों में से सात से 30 फीसदी तक सूख जाएंगे, फिर वे जीवित नहीं रह पाएंगे।फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स, पीटर मिलोसेवीक
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शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने पाया है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण पानी वाले आवासों के सूखने के कारण आने वाले सालों में मेंढक और टोड जैसे एनुरान को अपने अस्तित्व के लिए भारी खतरों का सामना करना पड़ेगा।

नेचर क्लाइमेट चेंज नामक पत्रिका में प्रकाशित शोध में, टीम ने बताया कि कैसे उन्होंने दुनिया भर के इलाकों का मानचित्रण किया, जहां पानी की कमी के कारण अगले 60 से 80 सालों में एनुरान प्रजातियों पर संकट के बादल छा जाएंगे और इनके मरने का खतरा बढ़ जाएगा।

पिछले कई सालों से, दुनिया भर के वैज्ञानिक ग्लोबल वार्मिंग के कारणों और इसके प्रभावों का अध्ययन कर रहे हैं। कई मॉडल अब इस सदी के अंत तक औसत वैश्विक तापमान में 2.7 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने का पूर्वानुमान लगा रहे हैं। इस तरह की घटनाओं से, जैसा कि कई लोगों ने देखा है, ग्रह के चारों ओर जलवायु और पारिस्थितिकी तंत्र में बड़े बदलाव होंगे।

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साल 2100 तक मेंढक और टोड के मौजूदा आवासों में से सात से 30 फीसदी तक सूख जाएंगे, फिर वे जीवित नहीं रह पाएंगे।

इस नए प्रयास पर काम करने वाली टीम ने बताया कि ऐसा ही एक बदलाव उन आवासों में पानी की कमी होगी, जहां वर्तमान में एनुरान रहते हैं। ऐसे इलाकों में पानी की कमी से कुछ आवासों के आकार घट जायेंगे और अन्य गायब हो जाएंगे।

शोधकर्ता ने शोध के हवाले से बताया कि ऐसे बदलाव एनुरान के लिए जीवन को और भी कठिन बना देंगे, जो पहले से ही जंगलों के काटे जाने, फंगल प्रकोप, प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन की वजह से बढ़ते तापमान के कारण चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।

इस नए अध्ययन में शोध टीम ने यह अनुमान लगाने का प्रयास किया है कि वर्तमान में मेंढक और टोड जिन क्षेत्रों में रह रहे हैं, उनमें से कितने क्षेत्रों में सूखे का खतरा बढ़ जाएगा।

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साल 2100 तक मेंढक और टोड के मौजूदा आवासों में से सात से 30 फीसदी तक सूख जाएंगे, फिर वे जीवित नहीं रह पाएंगे।

शोध के मुताबिक, मेंढक और टोड जलवायु परिवर्तन के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील होते हैं, जिसमें पानी की कमी शामिल है, क्योंकि उनकी त्वचा पतली होती है, जो उनके जीवित रहने के लिए नम बनी रहनी चाहिए। पानी के बिना, उनका दम घुटने लगता है।

सूखे के कारण भविष्य के खतरों का अनुमान लगाने के लिए, शोधकर्ताओं ने दुनिया भर के उन क्षेत्रों का मानचित्रण करने के लिए विभिन्न उपकरणों का उपयोग किया, जहां तापमान बढ़ने के साथ और अधिक सूखे का अनुभव होने के आसार हैं। उन्होंने सूखे के प्रति पारिस्थितिकी संवेदनशीलता का भी अनुमान लगाया और कई जलवायु परिवर्तन परिदृश्यों के तहत संभावित व्यवहारिक प्रभाव को दर्शाने वाले मॉडल बनाए।

शोध टीम ने पाया कि 2100 तक मेंढक और टोड के मौजूदा आवासों में से सात से 30 फीसदी तक सूख जाएंगे, फिर वे जीवित नहीं रह पाएंगे। शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि सदी के अंत तक नियमित रूप से आने वाली लू या हीटवेव के कारण ऐसे 15 से 36 फीसदी क्षेत्रों में सूखे का सामना करना पड़ेगा।

मानवजनित कारणों से पारिस्थितिकी तंत्र नष्ट होने और प्रदूषण के बने रहने तथा फंगल संक्रमण जैसे प्राकृतिक खतरों के फैलने के कारण एनुरान को भी बढ़ते खतरों का सामना करना पड़ेगा।

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