बद्री-केदार में गिरी बर्फ, चार धाम यात्रा के प्रभावित होने के आसार

मई के महीने में आमतौर पर कड़कती धूप होती है। लेकिन उत्तराखंड में उच्च हिमालयी चोटियों पर रुक-रुक कर लगातार बर्फबारी जारी है
Photo : Varsha Singh
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जलवायु परिवर्तन की वजह से मौसम में हो रहे बदलाव का बड़ा असर इस बार उत्तराखंड की चार धाम यात्रा पर दिखेगा। मई के महीने में आमतौर पर यह समय मैदान क्या, पहाड़ों के लिए भी, कड़कती धूप का होता है। लेकिन उत्तराखंड में उच्च हिमालयी चोटियों पर रुक-रुक कर लगातार बर्फबारी  जारी है। मई के पहले दिन भी पहाड़ियों पर जमी बर्फ़ कुछ इंच और मोटी हो गई। यात्रा 7 मई से शुरू होगी और अब भी इलाके में बर्फ गिर गई है। जिस कारण स्थानीय प्रशासन को रास्ते साफ करने में कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है। वहीं, यात्रा के दौरान दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ गया है।
7 मई को गंगोत्री और यमुनोत्री के कपाट खोले जाएंगे। केदारनाथ के कपाट 9 मई को खुल रहे हैं। 10 मई को बद्रीनाथ के कपाट खोले जाएंगे। एक जून को हेमकुंड साहिब के कपाट खुल जाएंगे, इसी दिन फूलों की घाटी भी पर्यटकों के लिए खोल दी जाएगी।
चमोली में स्थित बद्रीनाथ के चारों तरफ बर्फ की मोटी चादर बिछी हुई है। अक्टूबर से शुरू हुआ बर्फबारी का सिलसिला मई के पहले हफ्ते में भी जारी है। एक मई को अच्छी बर्फ़बारी के बाद यहां न्यूनतम तापमान 13 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया। देहरादून मौसम विज्ञान केंद्र को मुताबिक अगले पांच दिनों तक यहां न्यूनतम तापमान में और गिरावट आएगी। दो मई की सुबह भी बर्फबारी के साथ हुई। तीन मई को भी मौसम का यही रुख रहने वाला है। इसके बाद बर्फबारी हल्की हो जाएगी। चमोली में बद्रीनाथ के साथ ही हेमकुंड साहिब और फूलों की घाटी के रास्ते में भी बर्फ की मोटी परत बिछी हुई है। राज्य में पर्यटन के लिहाज से ये जगहें अहम हैं।
इसके साथ ही हनुमानचट्टी से बदरीनाथ के बीच कई जगह बर्फ के बड़े-बड़े ग्लेशियर बन गए हैं। हालांकि जिला प्रशासन ने इन्हें काटकर लोगों के चलने के लिए ट्रेल बना दी है। लेकिन इस बार ये ग्लेशियर आवाजाही के लिहाज से खतरा भी साबित हो सकते हैं। चमोली के आपदा प्रबंधन केंद्र ने बताया कि आवाजाही के रास्ते खोल दिये गये हैं। लेकिन यहां आने वाले लोगों को रास्ते में बड़े-बड़े ग्लेशियर्स के बीच से गुजरना होगा। केदारनाथ में रुक-रुक कर बारिश और बर्फबारी जारी है। पैदल मार्ग पर बड़े-बड़े हिमखंड बन गए हैं।मैदानी क्षेत्र देहरादून, हरिद्वार एक मई की रात से ही तेज रफ़्तार हवाओं की चपेट में हैं। मई में भी लोगों को स्वेटर निकालने पड़ रहे हैं। 
 
मौसम परिवर्तन का डाटाबेस नहीं

जीबी पंत इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन इनवॉयरमेंट एंड डेवलपमेंट के गढ़वाल क्षेत्र के प्रभारी डॉ.आरके मैखुरी का कहना है कि इस बार मौसम में काफी बदलाव देखने को मिल रहे हैं। इसे जलवायु परिवर्तन से जोड़कर देखा जा सकता है। लेकिन वे चिंता जताते हैं कि अभी तक हम इस तरह के संसाधन नहीं जुटा सके हैं, जिससे हिमालयी चोटियों पर बर्फबारी या मौसम परिवर्तन के आंकड़े जुटाए जा सकें और उनका विश्लेषण किया जा सके। न ही सरकार की ओर से इस तरह की कोई व्यवस्था की गई है। वे कहते हैं कि वर्ष 2013 की आपदा के बाद राज्य सरकार ने तीन महीने के अंदर डोपलर लगाने की बात की थी। हम 2019 में आ गए हैं, अब तक डोपलर नहीं लगे। डोपलर एक तरह का इन्ट्रुमेंट है जो आपदा से एक-दो घंटे पहले चेतावनी दे देता है। ख़ासतौर पर बादल फटने या बाढ़ जैसी स्थिति पर। मैखुरी कहते हैं कि इस वर्ष सर्दियों और बर्फबारी का समय बढ़ गया है। इससे इस बार बर्फ़ का कैचमेंट एरिया भी बढ़ गया है।
 
मौसम का असर पर्यटन पर भी
 
चारधाम यात्रा के दौरान लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। लेकिन मौसम को देखते हुए इस वर्ष की यात्रा मुश्किल हो सकती है। लगातार बर्फबारी के चलते व्यवसायी अभी तक बदरीनाथ नहीं आए। इसके साथ ही भारी बर्फबारी से यहां सड़क, धर्मशाला समेत अन्य परिसंपत्तियों को भी नुकसान पहुंचा है। बिजली की लाइनें, पाइप लाइन, संचार सेवाएं भी ठप हो गई थीं। हालांकि अब बिजली, पानी की सप्लाई शुरू कर दी गई है। संचार सेवाएं भी दुरुस्त करने का दावा किया गया है। केदारनाथ दर्शन के लिए देशभर से श्रद्धालु आते हैं। ऐसे में हिमखंड यात्रियों के लिए खतरा साबित हो सकते हैं इसलिए यात्रा पर आ रहे पर्यटकों को सावधान करना बेहद जरूरी है। दरअसल धूप पड़ने पर इन हिमखंडों में दरारें आ रही हैं और वे टूटकर नीचे आ सकते हैं। पिछले हफ्ते ऐसा हुआ भी। हिमखंडो से टूटकर गिरे बर्फ़ की चट्टानों से आसपास बने घरों की छतों को नुकसान पहुंचा। जिससे गढ़वाल मंडल विकास निगम को काफी नुकसान भी हुआ।

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