ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन दुनिया के महासागरों को लगातार गर्म कर रहा है। एक अध्ययन के मुताबिक समुद्री जैव विविधता अगले कुछ शताब्दियों के भीतर काफी हद तक विलुप्त हो सकती है। यह अध्ययन प्रिंसटन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है।
अध्ययनकर्ताओं ने विभिन्न अनुमानित जलवायु परिदृश्यों के तहत भविष्य की समुद्री जैव विविधता का मॉडल तैयार किया है। उन्होंने पाया कि यदि उत्सर्जन पर अंकुश नहीं लगाया जाता है, तो केवल बढ़ते तापमान और ऑक्सीजन की कमी से प्रजातियों का भारी नुकसान हो सकता है।
सन 2100 तक उष्णकटिबंधीय जल जैव विविधता के नुकसान होने तथा इसमें भी ध्रुवीय प्रजातियों के विलुप्त होने का सबसे अधिक खतरा है।
प्रिंसटन में भू-विज्ञान के प्रोफेसर और हाई मीडोज एनवायरनमेंटल इंस्टीट्यूट के अध्ययनकर्ता कर्टिस डिक्शन ने कहा कि, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में तेजी से कमी करके समुद्र की प्रजातियों के बड़े पैमाने पर विलुप्त होने से बचाया जा सकता है।
हालांकि अध्ययन में पाया गया कि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को रोकने से विलुप्त होने के खतरे को 70 फीसदी से अधिक कम किया जा सकता है। विलुप्त होने के जो कारण पाए गए हैं, वह इस बात पर निर्भर करते हैं कि हम आगे कितनी कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) उत्सर्जित करते हैं।
शोधकर्ताओं ने कहा सीओ2 उत्सर्जन के प्रक्षेपवक्र को बदलने और बढ़ती गर्मी की भयावहता को रोकने के लिए अभी भी पर्याप्त समय है।
ड्यूश और पेन ने समुद्री प्रजातियों पर मौजूदा शारीरिक आंकड़ों को जलवायु परिवर्तन के मॉडल के साथ जोड़ा। ताकि इससे यह अनुमान लगाया जा सके कि आवास की स्थिति में बदलाव अगले कुछ वर्षों में दुनिया भर में समुद्री जानवरों के अस्तित्व को कैसे प्रभावित करेगा।
शोधकर्ताओं ने अपने मॉडल की तुलना जीवाश्म रिकॉर्ड में कैप्चर किए गए पिछले बड़े पैमाने पर विलुप्त होने के परिमाण से की, जो उनके पहले के काम पर आधारित था। 25 करोड़ साल पहले एंड-पर्मियन विलुप्त होने के भौगोलिक पैटर्न से जुड़ा था, पृथ्वी की सबसे घातक विलुप्ति होने की घटना जलवायु का गर्म होना और महासागरों से ऑक्सीजन के नुकसान से जुड़ा है।
शोधकर्ताओं ने पाया कि उनका मॉडल भविष्य की समुद्री जैव विविधता, एंड-पर्मियन विलुप्त होने का जीवाश्म रिकॉर्ड और वास्तव में प्रजातियों का वितरण जो अब हम देखते हैं, एक समान पैटर्न का पालन करते हैं - जैसे समुद्र का तापमान बढ़ता है और ऑक्सीजन की उपलब्धता में कमी आती है, जिससे समुद्री जीवन की प्रचुरता में कमी आती है।
पानी का तापमान और ऑक्सीजन की उपलब्धता मानव गतिविधि के कारण जलवायु के गर्म होने पर बदल जाएंगे। गर्म पानी अपने आप में उन प्रजातियों के लिए खतरनाक है जो ठंडी जलवायु में रहते हैं।
गर्म पानी में भी ठंडे पानी की तुलना में कम ऑक्सीजन होती है, जिससे समुद्र का संचलन अधिक सुस्त हो जाता है जिससे गहराई पर ऑक्सीजन की आपूर्ति कम हो जाती है।
प्रजातियों की चयापचय दर पानी के तापमान के साथ बढ़ जाती है, इसलिए ऑक्सीजन की मांग बढ़ जाती है क्योंकि आपूर्ति कम हो जाती है। पेन ने कहा एक बार जब ऑक्सीजन की आपूर्ति प्रजातियों की जरूरत से कम हो जाती है, तो प्रजातियों के काफी नुकसान होने के आसार होते हैं।
समुद्री जानवरों में शारीरिक तंत्र होते हैं जो उन्हें पर्यावरणीय परिवर्तनों का सामना करने लायक बनाते हैं, लेकिन यह केवल एक हद तक संभव है। शोधकर्ताओं ने पाया कि यदि जलवायु गर्म होती है तो ध्रुवीय प्रजातियों के विश्व स्तर पर विलुप्त होने के आसार बढ़ जाएंगे क्योंकि उनके पास अन्य कोई उपयुक्त आवास नहीं होगा।
मॉडल समुद्री जैव विविधता के भौगोलिक पैटर्न में बनी पहेली को सुलझाने में भी मदद करता है। समुद्री जैव विविधता ध्रुवों से उष्ण कटिबंध की ओर तेजी से बढ़ती है, लेकिन भूमध्य रेखा में गिरती है। यह भूमध्यरेखीय तल लंबे समय से एक रहस्य रहा है, शोधकर्ता इस बारे में अनिश्चित रहे हैं कि इसका क्या कारण है और कुछ ने यह भी सोचा है कि क्या यह वास्तविक है।
ड्यूश और पेन का मॉडल भूमध्यरेखीय समुद्री जैव विविधता में गिरावट के लिए एक बहुत अच्छा स्पष्टीकरण प्रदान करता है, कुछ प्रजातियों को सहन करने के लिए इस गर्म पानी में ऑक्सीजन की आपूर्ति बहुत कम है।
पेन ने कहा कि चिंता इस बात की है कि जलवायु परिवर्तन समुद्र के बड़े हिस्से को भी न रहने योग्य या निर्जन बना देगा। विलुप्त होने के कारणों में जलवायु के सापेक्ष महत्व को मापने के लिए, उन्होंने और ड्यूश ने विभिन्न समुद्री जानवरों के लिए मौजूदा खतरों पर अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) के आंकड़ों के लिए बढ़ते तापमान से भविष्य के विलुप्त होने के खतरों की तुलना की।
उन्होंने पाया कि जलवायु परिवर्तन वर्तमान में विलुप्त होने के खतरों में 45 फीसदी समुद्री प्रजातियों को प्रभावित करता है, लेकिन अत्यधिक मछली पकड़ने, यातात, शहरी विकास और प्रदूषण के बाद केवल पांचवां सबसे महत्वपूर्ण खतरा है।
पेन ने कहा जलवायु परिवर्तन के चलते अत्यधिक बढ़ते तापमान से समुद्री जीवों के विलुप्त होने का खतरा बढ़ जाएगा। यह अध्ययन साइंस नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।