टैंक, कुओं और तालाबों जैसे पारंपरिक जल प्रबंधन प्रणालियों में एक किस्म की अंतर्निर्मित स्थिरता थी और हर बार ये समय की कसौटी पर खरे उतरते थे। इन्हें कई तरह के कार्यों के लिए डिजाइन किया गया था लेकिन ये बढ़ती मानव आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर सके। उनकी अंतर्निर्मित स्थिरता को विभिन्न डिजाइनों और हस्तक्षेपों के माध्यम से वापस लाने की आवश्यकता है। यह एक चुनौती है।
मनुष्यों की बढ़ती पानी की जरूरतों के कारण सतह और भूमिगत जल का तेजी से दोहन हुआ। इससे पारंपरिक प्रणालियों पर दबाव पड़ा और वे गायब होने लगीं। जहां कभी कुएं, टैंक और तालाब खड़े थे, वहां अब अपार्टमेंट हैं। भूमि का बंटवारा, भूमि की कीमतों में वृद्धि और शहरी विस्तार ने सार्वजनिक और निजी स्थानों को निगल लिया। ऐसा नहीं है कि सब कुछ खो गया है। लेकिन जो कुछ भी बचा हुआ है वह बदल दिया गया है और अब उसका पारंपरिक स्वरूप मौजूद नहीं है या उस उद्देश्य को पूरा नहीं करता है जिसके लिए इसे बनाया गया था।
आज इन प्रणालियों को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है, जिससे कई परियोजनाओं को बढ़ावा भी मिला है। जो कुछ भी बचा था, उसकी रक्षा के लिए सरकारों ने बहुत सारा पैसा आवंटित किया। इन प्रणालियों की रक्षा, पुनर्जीवित करने और यहां तक कि विस्तार करने के लिए कई सहायता समूह और लॉबी काम कर रहे हैं। हालांकि, परिणाम मिश्रित हैं और यह कहना मुश्किल है कि जल संकट को हल करने में इन कार्यक्रमों ने कितना योगदान दिया है। इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न समस्याओं को हल करना पारंपरिक जल प्रबंधन प्रणालियों के दायरे से परे है। जहां अभी ये मौजूद हैं, वहां सिस्टम स्थानीय स्तर पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से निपटने में स्थानीय समुदायों की मदद कर सकते हैं।
पिछले दो-तीन दशकों में नागरिक समाज संगठनों के प्रयासों को धन्यवाद कहना चाहिए, जिन्होंने देश भर में पारंपरिक जलाशयों की रक्षा, पुनर्स्थापन और पुनरोद्धार के लिए जागरूकता फैलाने का काम किया है। ग्रामीण भारत में जहां पानी की जरूरतों को पूरा करने में पारंपरिक प्रणालियों की भूमिका में गिरावट आई है, उन्हें बहाल करने के लिए कई परियोजनाएं चलाई जा रही हैं। शहरी क्षेत्रों में भी तेजी से उपचार संयंत्रों सहित जल भंडारण प्रणालियों को लेकर काम हो रहे हैं। पड़ोस में बची जल संरचनाओं को बचाने में लोग अब रूचि दिखाने लगे हैं। अब परिवार सरकारी सहायता या के बिना सरकारी सहायता के भी वर्षा जल संग्रहित करने वाली संरचनाओं का निर्माण करना चाहते हैं। पानी बचाने, पानी का ट्रीटमेंट करने और पानी का पुन:उपयोग करने के लिए बाजारों में अब कई उत्पाद हैं।
ये पहल पानी की मांग को कम करने में योगदान करेगी और सरकारें हाई एंड निर्माण परियोजनाओं के लिए मानक दिशानिर्देशों में उन्हें शामिल कर रही हैं। इससे जलवायु परिवर्तन की समस्याएं किस हद तक खत्म होंगी, कहना मुश्किल है, लेकिन ये पहल निश्चित रूप से वैश्विक समस्या के समाधान में स्थानीय जल भंडारण आवश्यकता को लेकर लोगों की जागरुकता को दर्शाते हैं। पारंपरिक प्रणालियों में पानी के पुनःउपयोग और भंडारण की अंतर्निहित अवधारणा जलवायु परिवर्तन चुनौती और हमारे जल संसाधनों पर इसके प्रभाव से निपटने में बहुत मदद कर सकती है।