देश की संसद से कुछ किलोमीटर की दूरी पर मरुस्थलीकरण की समस्या से निपटने का मसौदा तैयार हो रहा है। दुनिया के सभी देश इस बहस-मुबाहिसा कर रहे हैं। वहीं, आपको जानकर यह हैरानी होगी कि सत्ता का केंद्र दिल्ली भी मरुस्थलीकरण की चपेट में है। देश के शीर्ष दस राज्यों में दिल्ली का स्थान तीसरा है।
राज्यों की बंजरता का यह अनुमान बंजर भूमि के फीसदी पर आधारित है। इस आंकड़े को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अहमदाबाद स्थित अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र (एसएसी) ने मरुस्थलीकरण एवं भू-क्षरण पर केंद्रित एटलस में जारी किया था। इस एटलस के मुताबिक, देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का करीब 30 फीसदी हिस्सा (लगभग 96.40 मिलियन हेक्टेयर जमीन ) की उर्वरता खत्म हो रही है।
मरुस्थलीकरण प्रभावित राज्यों में झारखंड के बाद राजस्थान और फिर दिल्ली का ही नाम शामिल है। झारखंड की जहां 68.98 फीसदी भूमि मरुस्थलीकरण की शिकार है वहीं, राजस्थान की 62.9 फीसदी जबकि दिल्ली में 60.6 फीसदी जमीन मरुस्थलीकरण की चपेट में है। इसी तरह गुजरात में 52.29 फीसद, गोवा में 52.13 प्रतिशत, नागालैंड में 47.45, महाराष्ट्र में 44.93 फीसदी, हिमाचल प्रदेश में 43.01, त्रिपुरा में 41.69 फीसदी और कर्नाटक में 36.24 फीसदी जमीन मरुस्थलीकरण की चपेट में है। (मैप में फीसदी और प्रभावित कुल हेक्टेयर क्षेत्र का आंकड़ा देखें।)
मरुस्थलीकरण से प्रभावित इन शीर्ष दस राज्यों में दिल्ली को छोड़कर उन स्थानों पर ज्यादा प्रभाव दिख रहा है जहां खेती-किसानी होती थी। मरुस्थलीकरण जमीन की शुष्क या अर्धशुष्क अवस्था होती है। जिसमें जमीन की उत्पादकता खत्म हो जाती है।
सीएसई की महानिदेशक और पर्यावरणविद सुनीता नारायण के मुताबिक यदि हम जमीन और पानी का प्रबंधन बेहतर ढ़ंग से कर पाएं तो इस समस्या का काफी हद तक सामना किया जा सकता है। वहीं, आजकर की अजीबोगरीब मौसम वाली स्थितियों में यह प्रबंधन आसान नहीं है। ऐसे में एक बेहतर और मजबूत रणनीति ही इस प्रबंधन को बेहतर बना सकती है।