लुप्त होते ग्लेशियरों के कारण ऊंचे पहाड़ों की जैव विविधता पर मंडराया खतरा

जलवायु परिवर्तन के कारण पर्वत श्रृंखला में प्रमुख अकशेरूकीय आबादी के अब और 2100 के बीच भारी बदलाव होने के आसार हैं
फोटो साभार : विकिमीडिया कॉमन्स, जाचरी ग्रॉसेन
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लीड्स विश्वविद्यालय द्वारा किए गए एक नए शोध में शोधकर्ताओं ने चेतावनी देते हुए कहा है कि, जलवायु में हो रहे बदलाव के कारण ग्लेशियर अभूतपूर्व दर से पिघल रहे हैं। इसके प्रभाव से यूरोपीय आल्प्स की ठंडी पिघली हुई नदियों में रहने वाले अकशेरुकी जीवों को आवास संबंधी भारी नुकसान का सामना करना पड़ेगा।

कई प्रजातियों के ठंडे आवासों तक सीमित होने की संभावना है जो केवल पहाड़ों में अधिक बनी रहेंगी तथा इन क्षेत्रों में स्कीइंग और पर्यटन उद्योगों या पनबिजली संयंत्रों के विकास से भी दबाव बढ़ने के आसार हैं।

यह अध्ययन लीड्स विश्वविद्यालय और एसेक्स विश्वविद्यालय ने आपस में मिलकर किया है। अध्ययन में संरक्षणवादियों से जलीय जैव विविधता की रक्षा के लिए नए उपायों पर विचार करने का आह्वान किया गया है।

अकशेरूकी जीवों की पारिस्थितिक तंत्र में होती है महत्वपूर्ण भूमिका

अकशेरूकीय, जिसमें स्टोनफ्लाइज, मिडज और फ्लैटवर्म्स शामिल हैं, ऊंचे पहाड़ों की पारिस्थितिक तंत्र में मछली, उभयचर, पक्षियों और स्तनधारियों के पोषक चक्र और कार्बनिक पदार्थ को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

आल्प्स के ग्लेशियर, परिदृश्य और जैव विविधता मानचित्रण आंकड़ों का उपयोग करते हुए, यूरोप के वैज्ञानिकों ने सिमुलेशन किया कि कैसे जलवायु परिवर्तन के कारण पर्वत श्रृंखला में प्रमुख अकशेरूकीय आबादी के अब और 2100 के बीच बदलने के आसार हैं।

जैसे ही जलवायु गर्म होती है, मॉडलिंग ने भविष्यवाणी की कि अकशेरूकीय प्रजातियां पर्वत श्रृंखला के अधिक ऊंचाई वाले भागों में ठंडी परिस्थितियों की तलाश करेंगी। भविष्य में, इन ठंडे क्षेत्रों को स्कीइंग या पर्यटन या जलविद्युत संयंत्रों के विकास के लिए भी प्राथमिकता दी जा सकती है।

इस अध्ययन की अगुवाई लीड्स विश्वविद्यालय में जलीय विज्ञान के प्रोफेसर ली ब्राउन ने की है। उन्होंने कहा कि संरक्षणवादियों को यह सोचने की आवश्यकता है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को ध्यान में रखते हुए संरक्षित क्षेत्र कैसे विकसित होने चाहिए।

यह हो सकता है कि कुछ प्रजातियों को आश्रय क्षेत्रों में ले जाना होगा यदि हम उनके अस्तित्व को सुरक्षित रखना चाहते हैं, क्योंकि उनमें से कई उड़ने वाले नहीं हैं इसलिए वे पहाड़ों के माध्यम से आसानी से फैल नहीं सकते हैं।

ऊंचे पहाड़ों की जलवायु तेजी से बदल रही है

शोध, नौ यूरोपीय अनुसंधान संस्थानों के बीच एक सहयोग को शामिल करते हुए, आल्प्स में अकशेरूकीय प्रजातियों के वितरण पर एक साथ आंकड़े एकत्रित किए गए। एक ऐसा क्षेत्र जो 34,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक को कवर करता है और इसे ग्लेशियरों और नदी के प्रवाह में अपेक्षित बदलावों के साथ मापा गया।

आल्प्स के ठंडे पानी वाले क्षेत्रों में रहने वाली 19 अकशेरूकीय प्रजातियों, मुख्य रूप से पानी में रहने वाले कीड़ों के साथ क्या हो सकता है, इसे मॉडल करने के लिए पर्याप्त आंकड़े उपलब्ध थे।

लीड्स में स्कूल ऑफ ज्योग्राफी के डॉ जोनाथन कैरिविक ने कहा, हमने पता लगाया कि जैसे ही ग्लेशियर पिघलते हैं और पीछे हटते हैं, आल्प्स की मदद से बहने वाली नदियों में बड़ा बदलाव होगा।

छोटी अवधि में, कुछ में अधिक पानी होगा और कुछ नई सहायक नदियां बनेंगी, लेकिन अब से कई दशकों में अधिकांश नदियां सूख जाएंगी। कुछ धीमी गति से बहेंगी और अधिक स्थिर हो जाएंगी और एक वर्ष में भी ऐसी अवधि हो सकती है जब पानी का प्रवाह बिलकुल नहीं होगा। इसके अतिरिक्त, ऊंचे पहाड़ों  की नदियों का अधिकांश पानी भी भविष्य में गर्म हो जाएगा।

सदी के अंत तक, मॉडलिंग भविष्यवाणी करता है कि अधिकांश प्रजातियों ने आवास के लगातार नुकसान का अनुभव किया होगा।

सबसे ज्यादा नुकसान नॉन-बाइटिंग मिडेज, डायमेसा लैटिटारसिस जीआरपी, डी. स्टीनबोएकी, और डी. बर्ट्रामी के होने आसार हैं।

हालांकि, आवास में बदलाव से कई प्रजातियों के लाभान्वित होने की भी उम्मीद है, जिनमें फ्लैटवर्म, क्रेनोबिया अल्पाइना और फ्लैट हेडेड मे फ्लाई, राइथ्रोजेना लोयोलिया शामिल हैं।

अन्य प्रजातियों को नए स्थानों में शरण मिलेगी। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि स्टोनफ्लाई डिक्टीजेनस एल्पिनस और कैडिसफ्लाई ड्रूसस डिस्कोलर दक्षिण पूर्व फ्रांस में रोन घाटी में जीवित रहने में सक्षम होंगे, जबकि अन्य प्रजातियां डेन्यूब बेसिन में बहने वाली नदियों से गायब हो जाएंगी।

संरक्षण के उपाय अहम

शोधकर्ताओं ने पूरे काम का वर्णन किया है जो नदियों में जैव विविधता की रक्षा के लिए जरूरी है, जो कि पीछे हटने वाले ग्लेशियरों की मदद से बह रही हैं। जिन स्थानों पर 21वीं सदी के उत्तरार्ध में अभी भी ग्लेशियर मौजूद हैं, उन्हें जलविद्युत बांध निर्माण और स्की रिसॉर्ट के विकास के लिए प्राथमिकता दिए जाने की संभावना है।

एसेक्स विश्वविद्यालय के डॉ मार्टिन विल्केस ने कहा कि, इस सदी के अंत तक ऊंचे पहाड़ों की जैव विविधता के लिए हम जो नुकसान का पूर्वानुमान लगाते हैं, वह कई संभावित जलवायु परिवर्तन परिदृश्यों में से एक से संबंधित है।

ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए दुनिया के नेताओं द्वारा निर्णायक कार्रवाई नुकसान को सीमित कर सकती है। दूसरी ओर, निष्क्रियता का मतलब यह हो सकता है कि नुकसान का हम जितनी जल्दी पूर्वानुमान लगाते हैं, उतनी ही जल्दी उसे रोका जा सकता है। यह शोध नेचर इकोलॉजी एंड एवोलुशन नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। 

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