प्रकृति का रोष नहीं, हमारी भूलों का परिणाम है यह तबाही
फोटो: मनदीप पुनिया

प्रकृति का रोष नहीं, हमारी भूलों का परिणाम है यह तबाही

हम एक ऐसे त्रासद काल में जी रहे हैं जहां हिमालय भी खतरे में है
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हालात अब सामान्य नहीं रहे। स्थिति अत्यंत दुखद हो चुकी है। बारिश के इस मौसम में उत्तरी भारतीय उपमहाद्वीप ने जो तबाही देखी है, उसे मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकती। विशाल इलाके जलमग्न हैं। घर, स्कूल और अस्पताल तबाह हो चुके हैं। सड़कें और अन्य बुनियादी ढांचे नष्ट हो गए हैं और खेतों में पानी भरा है।

पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र में एक के बाद एक बादल फटने की घटना हुई हैं जिसके फलस्वरूप बड़े-बड़े पहाड़ ढह गए हैं। इसकी मानवीय कीमत विशाल है और इस नुकसान का मतलब समझने के लिए बाढ़ और तबाही के असली चेहरे की पहचान आवश्यक है।

इस इलाके में हो रही अतिवृष्टि की तीव्रता असामान्य है। भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के अनुसार अगस्त के महीने में, पंजाब में 31 में से 24 दिन भारी एवं अत्यधिक बारिश हुई। आईएमडी 24 घंटों में 115 मिमी से अधिक बारिश को “भारी” और 204 मिमी से अधिक बारिश को “अत्यधिक भारी” मानता है। यह केवल मूसलाधार बारिश नहीं, बल्कि बाइबिल में उल्लेखित प्रलय के समान है।

हिमालयी राज्यों उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में भी यही स्थिति रही। हिमाचल प्रदेश में बारिश ने पिछले तीन महीनों में 90 प्रतिशत से अधिक दिनों तक राज्य की पहाड़ी ढलानों पर भारी और अत्यधिक भारी बारिश के साथ सभी पुराने रिकॉर्ड तोड़ दिए। इसके अलावा, बादल फटने के कारण आकस्मिक बाढ़ की घटनाएं भी हुई हैं। सरकारी आंकड़ों द्वारा 13 घटनाओं की पुष्टि की गई है, वहीं मीडिया द्वारा 10 अन्य घटनाओं की सूचना दी गई है। जून और अगस्त के महीनों में पंजाब, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में लगभग 50 प्रतिशत अधिक बारिश हुई है।

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हालांकि अगर आप इसे साप्ताहिक औसत के संदर्भ में देखें, तो तबाही का पैमाना और भी स्पष्ट हो जाता है। उदाहरण के लिए पंजाब में अगस्त के आखिरी पखवाड़े में सामान्य से औसतन 400 प्रतिशत अधिक बारिश हुई है। पंजाब से थोड़ा ऊंचाई पर स्थित हिमाचल प्रदेश में लगातार बारिश हुई है और 28 अगस्त से 3 सितंबर के बीच राज्य में साप्ताहिक औसत से 300 प्रतिशत अधिक बारिश दर्ज हुई है। इसी के फलस्वरूप हम इतनी बड़ी तबाही देख रहे हैं, जिसमें आजीविका, संपत्ति और वर्षों का विकासात्मक निवेश नष्ट हो रहा है।

ऐसा क्यों हो रहा है? इसमें कोई शक नहीं कि यह एक जलवायु आपातकाल है लेकिन साथ ही यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि हम विकास के नाम पर क्या कर रहे हैं। बिना परिणामों की चिंता किए हुए विकास की लापरवाही इस विनाश में स्पष्ट दिखाई दे रही है।

सच तो यह है कि हमारी दुनिया जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा देने वाले उत्सर्जन को कम करने की दिशा में संघर्ष कर रही है इसलिए ये प्रभाव आगे चलकर और भी घातक होंगे। लेकिन अगर हम इस बात को अच्छी तरह से समझ लें कि निर्णायक बिंदु यही है तो हम भविष्य में निर्माण इस तरह से कर सकते हैं ताकि अगली बाढ़ या बादल फटने की घटना से कम नुकसान हो।

आइए पहले समझते हैं कि जलवायु कैसे बदल रही है। सच तो यह है कि इस निराशा भरे मौसम का एक बड़ा कारण मौसम प्रणाली में पड़ा व्यवधान है और इसका मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन है। हम जानते हैं कि गर्मी बढ़ने के साथ बारिश अधिक होगी और यह बारिश कम दिनों में होगी। पिछले मौसम में हमने यही देखा है कि पूरे मौसम की बारिश कुछ ही घंटों में हो गई।

लेकिन मौसम के इस स्वरूप के पीछे कई कारण हैं। हम जानते हैं कि पश्चिमी विक्षोभ एक प्राकृतिक मौसमी घटना है जहां भूमध्य सागर से आने वाली हवाएं हमारे क्षेत्र में चक्रवाती गतिविधियां और बारिश लाती हैं। इस मॉनसून के मौसम में पश्चिमी विक्षोभों को मानो बुखार चढ़ गया हो।

दक्षिण-पश्चिम मॉनसून के दौरान कभी-कभार आने वाले एक या दो तूफानों के बजाय इस साल सितंबर के पहले सप्ताह तक 19 विक्षोभ आ चुके हैं। ये हवाएं वस्तुतः मॉनसून की हवाओं से टकरा रही हैं और इसके कारण उत्तरी भारत और पाकिस्तान में विनाशकारी वर्षा हो रही है।

यह स्पष्ट नहीं है कि ऐसा क्यों हो रहा है, सिवाय इसके कि पश्चिमी विक्षोभ जेट स्ट्रीम (आर्कटिक से आने वाली हवाओं) से जुड़ा है। जैसे-जैसे यह आर्कटिक पवन प्रणाली जलवायु परिवर्तन के कारण कमजोर होती जा रही है, वैसे-वैसे यह पश्चिमी विक्षोभों सहित अन्य परस्पर जुड़ी वैश्विक पवन प्रणालियों को बाधित कर रही है।

इस साल, अरब सागर से उत्पन्न होने वाली पवन प्रणालियों के साथ कुछ और भी घटित रहा है और ये हवाएं बंगाल की खाड़ी से आने वाली मॉनसूनी हवाओं की विपरीत दिशा में दबाव डाल रही हैं।

यह एक साथ कई कारकों के संयोजन का परिणाम है जैसे कि महासागरों के गर्म होने से लेकर आर्कटिक क्षेत्र के गर्म होने और भूमध्य रेखा तथा उत्तरी ध्रुव के बीच घटते तापमान के अंतर तक। यह अस्थिरता अब आसमान से गिरने वाली बाढ़ के रूप में हम पर बरस रही है। ऐसा लगता है कि प्रकृति बदला लेने पर उतारू है।

और यह हालात यहीं खत्म नहीं होने वाले बल्कि और भी बदतर होने वाले हैं। यही कारण है कि हम लापरवाह नहीं हो सकते। पहले की तरह हम जलवायु परिवर्तन को दोष देते हुए भाग्यवादी रुख अख्तियार कर यह नहीं कह सकते कि मनुष्य आखिर क्या कर सकता है? यह विनाश दैवीय नहीं है। यह समस्या पूरी तरह से हमारी अपनी ही बनाई हुई है और आज हमारे दरवाजे पर खड़ी

सच तो यह है कि जलवायु परिवर्तन हमारे आर्थिक विकास और मानवीय लालच के कारण वायुमंडल में छोड़े गए उत्सर्जन का नतीजा है। हम जानबूझकर और मनमाने ढंग से विकास के अपने तरीके से इस समस्या को और बढ़ा रहे हैं।

हम नदियों के बाढ़ के मैदानों में निर्माण कर रहे हैं और जहां जरूरी है कि वहां जल निकासी की योजना नहीं बना रहे हैं। हम संवेदनशील पर्वतीय क्षेत्रों पर अतिक्रमण कर रहे हैं और हम वहां घर, सड़कें और जलविद्युत इकाइयां बना रहे हैं, बिना यह सोचे कि ये क्षेत्र भूकंप की दृष्टि से सक्रिय हैं और ये दुनिया की सबसे नई पर्वत श्रृंखलाएं हैं जिनकी ढलानें भूस्खलन के लिए मुफीद हैं।

मैं आगे और भी बातें कर सकती हूं लेकिन मुझे उम्मीद है कि जब मैं यह कहती हूं कि बस बहुत हो गया तो आप मेरी पीड़ा समझेंगे। अनुकूलन और लचीलेपन की जरूरत पर सिर्फ बातें करने का समय अब खत्म हो गया है। हम जलवायु परिवर्तन के युग में जी रहे हैं।

हम ऐसे विनाशकारी दौर से गुजर रहे हैं जो बड़े-बड़े पहाड़ों को भी अपने घुटनों पर ला देगा। मानवीय अहंकार, इनकार और नासमझी का समय अब खत्म हो गया है। आइए इस बात को ठीक से समझ लें।

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