माउंट एवरेस्ट के इलाके की जलवायु में आ रहा है भारी बदलाव: खुलासा

माउंट एवरेस्ट के इलाके में मौसम संबंधी बदलावों के आधार पर 1960 से हर दशक के बाद तापमान में लगभग 0.33 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो रही है
फोटो : विकिमीडिया कॉमन्स
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माउंट एवरेस्ट पृथ्वी पर सबसे ऊंचा पर्वत है जिसके एक ओर चीन तो दूसरी ओर नेपाल है। यह अत्यधिक ग्लेशियरों और विविध परिदृश्यों के लिए जाना जाता है। माउंट एवरेस्ट के इलाके जलवायु परिवर्तन को लेकर सबसे संवेदनशील इलाकों में से एक माने जाते हैं।

हिंद महासागर में बहने वाली लगभग सभी नदियां हिमालय के उत्तरी ढलान से निकलती हैं, जो लगभग 3000 से 4000 मीटर की गहराई के साथ घाटी से बहते हुए आगे बढ़ती हैं। ये नदियां महत्वपूर्ण भू-पारिस्थितिकी के रूप में जानी जाती हैं, हिमालय क्षेत्रीय जलवायु और हिंदू-कुश-हिमालय में पर्यावरणीय परिवर्तनों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेज (सीएएस) के नॉर्थवेस्ट इंस्टीट्यूट ऑफ इको-एनवायरनमेंट एंड रिसोर्सेज के शोधकर्ताओं और उनके सहयोगियों ने माउंट एवरेस्ट क्षेत्र में हाल के जलवायु और पर्यावरणीय परिवर्तनों को लेकर खुलासा किया है।

शोधकर्ताओं ने बताया कि यह अध्ययन नवीनतम आंकड़ों और मॉडलिंग पर आधारित है। माउंट एवरेस्ट के इलाकों में हवा के तापमान में बदलाव, बारिश, ग्लेशियर और ग्लेशियर से बनी झीलों, नदियों और झीलों के पानी की गुणवत्ता, वायुमंडलीय पर्यावरण और वनस्पति फेनोलॉजी या फिनोलॉजी में हो रहे बदलाव और वर्तमान स्थिति पर गौर किया गया था।

बर्फ के कोर और पेड़ के छल्ले से पुनर्निर्मित ऐतिहासिक तापमान रिकॉर्ड के अनुसार, शोधकर्ताओं ने 20वीं शताब्दी के दौरान माउंट एवरेस्ट के इलाकि में तापमान में बढ़ोतरी पाई। अध्ययनकर्ता प्रो. कांग शिचांग ने कहा, माउंट एवरेस्ट क्षेत्र में 1961 से 2018 तक मौसम संबंधी बदलावों के आधार पर 1960 से हर दशक के बाद तापमान लगभग 0.33 डिग्री सेल्सियस बढ़ रहा है।

शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया कि माउंट एवरेस्ट के इलाके में आमतौर पर भविष्य में (2006-2099 के दौरान) बढ़ते तापमान की प्रवृत्ति को दिखाता है। सर्दियों में तापमान बढ़ने की दर गर्मियों में प्रतिनिधि एकाग्रता मार्ग या रिप्रेजेन्टेटिव कंसंट्रेशन पाथवे 4.5 और 8.5 के विभिन्न परिदृश्यों की तुलना में अधिक है।

उन्होंने आगे बताया कि माउंट एवरेस्ट के इलाके में वर्तमान ग्लेशियर क्षेत्र लगभग 3,266 वर्ग किलोमीटर है, जो 1970 से 2010 तक एक गंभीर रूप से सिकुड रहा है। ग्लेशियर के पीछे हटने से नदी के प्रवाह में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।

इस बीच, ग्लेशियर से बनी झीलों का क्षेत्रफल 1990 में 106.11 वर्ग किलोमीटर से बढ़कर 2018 में 133.36 वर्ग किलोमीटर हो गया और ग्लेशियर से बनी झीलों की संख्या 1990 में 1,275 से 16.9 फीसदी बढ़कर 2018 में 1,490 हो गई।

टीम ने यह भी पाया कि, वर्तमान में, खतरे वाले इलाकों में लगभग 95 ग्लेशियर से बनी झीलें थीं, जिनमें से 17 झीलें सबसे अधिक खतरे वाली और 59 झीलें माउंट एवरेस्ट क्षेत्र में मध्यम खतरे वाली थीं।

प्रो कांग ने कहा कि इन सभी निष्कर्षों से पता चलता मिलता है कि माउंट एवरेस्ट के इलाके में बढ़ता तापमान के प्रति अपनी हाइड्रोलॉजिकल प्रतिक्रिया करता है। यह बदलाव अगले कुछ दशकों में और तेज हो सकता है, यह डाउनस्ट्रीम क्षेत्र में जल संसाधनों की सुरक्षा को एक बड़ा खतरा है।

इसके अलावा, माउंट एवरेस्ट के सबसे दूर के इलाकों जहां मानव गतिविधि न होने के चलते, वर्तमान वायुमंडलीय वातावरण अपेक्षाकृत स्वच्छ है। हालांकि, शोधकर्ताओं ने खुलासा किया है कि दक्षिण एशिया, पश्चिम एशिया और मध्य एशिया से वायु प्रदूषक लंबी दूरी तय करके इस प्राचीन क्षेत्र पर प्रभाव डाल रहे हैं। जिसके परिणामस्वरूप औद्योगिक क्रांति के बाद से प्रदूषकों (जैसे ब्लैक कार्बन) की मात्रा बढ़ रही है।

शोधकर्ताओं ने माउंट एवरेस्ट क्षेत्र में सामान्यीकृत अंतर वनस्पति सूचकांक (एनडीवीआई) की भी जांच की। उन्होंने खुलासा किया कि एनडीवीआई ने मई से सितंबर तक बढ़ती प्रवृत्ति दिखाई, लेकिन प्राथमिक उत्पादन का परिवर्तन 1982 से 2015 तक स्पष्ट नहीं थी।

वनस्पति वृद्धि के मौसम के शरुआती दोर में 1.85 दिन की देरी हुई और समाप्ति की अवधि 0.54 दिनों से आगे बढ़ा। दक्षिण ढलान पर समाप्ति का समय थोड़ा बदल गया और शरुआती दोर में कोई खास बदलाव नहीं आया।  

इसके अलावा उन्होंने बताया कि अभी भी प्रत्यक्ष निगरानी आंकड़े की कमी थी, विशेष रूप से अत्यधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों के लिए, जिसने माउंट एवरेस्ट क्षेत्र में बहु-क्षेत्रीय प्रक्रियाओं और तंत्र की हमारी समझ को सीमित कर दिया।

प्रो कांग ने कहा कि माउंट एवरेस्ट में जलवायु, पर्यावरण और पारिस्थितिकी के लिए लंबे समय तक टिकाऊ निगरानी प्रणाली की स्थापना करना जरूरी है। यह हमें जलवायु के बढ़ते तापमान और क्षेत्र में पारिस्थितिक तंत्र, जल विज्ञान और जल संसाधनों पर इसके प्रभाव का व्यापक मूल्यांकन करने में मदद करेगा। यह अध्ययन अर्थ-साइंस रिव्यू में प्रकाशित किए गए थे।

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