कार्बन डाइऑक्साइड वृद्धि दर में अभूतपूर्व उछाल, वैज्ञानिकों ने चेताया

वैज्ञानिकों ने कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में अब तक की सबसे तेज दर का पता लगाया है, जो मानवजनित है
कार्बन डाइऑक्साइड में सबसे बड़ी प्राकृतिक वृद्धि 55 सालों में लगभग 14 भाग प्रति मिलियन की वृद्धि हुई।  फोटो साभार: आईस्टॉक
कार्बन डाइऑक्साइड में सबसे बड़ी प्राकृतिक वृद्धि 55 सालों में लगभग 14 भाग प्रति मिलियन की वृद्धि हुई। फोटो साभार: आईस्टॉक
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शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने प्राचीन अंटार्कटिका की बर्फ का गहन रासायनिक विश्लेषण किया, जिससे पता चला कि आज वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड वृद्धि की दर पिछले 50 हजार सालों की तुलना में 10 गुना तेज है।

नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में प्रकाशित नतीजे पृथ्वी के अतीत में अचानक जलवायु में हुए बदलाव की अवधि के बारे में अहम खुलासा करते हैं। साथ ही आज जलवायु में हो रहे बदलावों के संभावित प्रभावों की नई जानकारी को सामने लाते हैं।

शोधकर्ताओं ने शोध में पिछले प्राकृतिक सीओ2 वृद्धि की अब तक की सबसे तेज दर का पता लगाया और बताया कि आज की यह वृद्धि दर, मुख्य रूप से मानवजनित उत्सर्जन के कारण इतनी ज्यादा है।

कार्बन डाइऑक्साइड (सिओ2) एक ग्रीनहाउस गैस है जो वायुमंडल में प्राकृतिक रूप से पाई जाती है। जब कार्बन डाइऑक्साइड वायुमंडल में प्रवेश करती है, तो यह ग्रीनहाउस प्रभाव के कारण जलवायु को गर्म कर देती है। अतीत में, हिमयुग चक्रों और अन्य प्राकृतिक कारणों से सीओ2 के स्तर में उतार-चढ़ाव होता रहा है, लेकिन आज मानवजनित उत्सर्जन के कारण यह बढ़ रही है।

शोध के मुताबिक, सैकड़ों-हजारों वर्षों में अंटार्कटिका में बनी बर्फ में हवा के बुलबुले में फंसी प्राचीन वायुमंडलीय गैसें शामिल हैं। वैज्ञानिक सूक्ष्म रसायनों का विश्लेषण करने और पिछली जलवायु के रिकॉर्ड का पता लगाने के लिए 3.2 किलोमीटर गहराई तक ड्रिलिंग कर वहां से एकत्र किए गए बर्फ के नमूनों का उपयोग करते हैं।

पिछले शोध से पता चला है कि पिछले हिमयुग के दौरान, जो लगभग दस हजार साल पहले समाप्त हुआ था, ऐसे कई मौके थे जब कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर औसत से बहुत अधिक बढ़ गया था। लेकिन वे माप इतने विस्तृत नहीं थे कि तीव्र बदलावों की पूरी प्रकृति को उजागर कर सकें, जिससे वैज्ञानिकों की यह समझने की क्षमता सीमित हो गई।

वेस्ट अंटार्कटिक आइस शीट डिवाइड आइस कोर के नमूनों का उपयोग करते हुए, शोधकर्ताओं ने पता लगाया कि उस अवधि के दौरान क्या हो रहा था। उन्होंने एक पैटर्न की पहचान की, जिससे पता चला कि कार्बन डाइऑक्साइड में ये उछाल उत्तरी अटलांटिक में ठंड में कमी के साथ हुआ, जिसे हेनरिक इवेंट के रूप में जाना जाता है, जो दुनिया भर में अचानक जलवायु परिवर्तन से जुड़ा हुआ है।

शोधकर्ता के मुताबिक, ये हेनरिक घटनाएं वास्तव में अहम हैं। हमें लगता है कि वे उत्तरी अमेरिकी बर्फ की चादर के ढहने के कारण हुआ। यह एक ऐसी घटना है जिसमें उष्णकटिबंधीय मॉनसून, दक्षिणी गोलार्ध में पश्चिमी हवाओं और महासागरों से निकलने वाली सीओ2 की बड़ी मात्रा में बदलाव होता है।

कार्बन डाइऑक्साइड में सबसे बड़ी प्राकृतिक वृद्धि 55 सालों में लगभग 14 भाग प्रति मिलियन की वृद्धि हुई। यह छलांग लगभग हर 7,000 वर्षों में एक बार हुई थी। आज की दरों पर, उस स्तर की वृद्धि में केवल पांच से छह साल लगते हैं।

साक्ष्य बताते हैं कि प्राकृतिक कार्बन डाइऑक्साइड की वृद्धि के पिछले समय के दौरान, गहरे समुद्र के प्रसार में अहम भूमिका निभाने वाली पश्चिमी हवाएं भी मजबूत हो रही थीं, जिससे दक्षिणी महासागर से सीओ2 तेजी से निकल रही थी।

अन्य शोधों से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन के कारण ये पछुआ हवाएं अगली सदी में मजबूत होंगी। शोधकर्ताओं ने कहा कि नए निष्कर्षों से पता चलता है कि यदि ऐसा होता है, तो इससे मानवजनित कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने की दक्षिणी महासागर की क्षमता कम हो जाएगी।

शोधकर्ता ने शोध के हवाले से कहा, हमारे द्वारा उत्सर्जित कार्बन डाइऑक्साइड का हिस्सा लेने के लिए हम दक्षिणी महासागर पर निर्भर हैं, लेकिन तेजी से बढ़ती दक्षिणी हवाएं ऐसा करने की उसकी क्षमता को कमजोर करती हैं।

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