80 के दशक से शुरू हुआ था ग्रीनलैंड की बर्फ का नुकसान होना

अध्ययन में 200 से अधिक ग्लेशियरों के 20 हजार से अधिक उपग्रह छवियों की समीक्षा की गई, इनमें से विश्लेषण के लिए लगभग 3,800 छवियों का चयन किया गया
Photo : Wikimedia Commons
Photo : Wikimedia Commons
Published on

ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर (ग्रीनलैंड आइस शीट) पिछले दो दशकों से लगातार घट रही है, जिससे ग्लेशियरों की बर्फ में बदलाव आ रहा है। इनकी बर्फ का वार्षिक नुकसान 40-60 फीसदी तक का हो रहा है। आखिर ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने की शुरुआत कब और किस तरह हुई इसी को लेकर एक अध्ययन किया गया है।

लगभग 40 वर्षों के उपग्रह चित्रों के एक अध्ययन से पता चला है कि ग्रीनलैंड के ग्लेशियरों पर गिरने वाली बर्फ की मात्रा, इनके पिघलने से जो पानी का नुकसान हुआ उससे कम थी। इस तरह की घटनाओं की शुरुआत 1980 के दशक के मध्य से हो गई थी। 

यह अध्ययन यूनिवर्सिटी ऑफ लिवरपूल के पर्यावरण विज्ञान विश्वविद्यालय के पीएच.डी. छात्र डॉमिनिक फेहरनर की अगुवाई में किया गया। अध्ययन में 200 से अधिक ग्लेशियरों के 20 हजार से अधिक उपग्रह छवियों की समीक्षा समीक्षा की गई, इनमें से विश्लेषण के लिए लगभग 3,800 छवियों का चयन किया गया। इस विश्लेषण से पता चला है कि कुछ ग्लेशियरों से पहले के मुकाबले एक दशक से अधिक समय से बर्फ पिघल रही थी।

यह अब तक किए गए ग्लेशियरों की विस्तृत श्रृंखला के पहले सबसे बड़े आकलनों में से एक है। पहले इनमें बहुत समय लगता था और इसमें अत्यधिक श्रम लगने के कारण इसके डाउनलोड होने की प्रक्रिया और विश्लेषण करना कठिन था। क्लाउड कंप्यूटिंग की मदद से यह अध्ययन संभव हो पाया, जिससे इन छवियों में पहले 20 मिनट प्रति छवि लगता था जो अब घटकर लगभग 5 सेकंड हो गया है।

उपयोग की गई सभी छवियां तब से मौजूद थीं, जब से उपग्रह इन छवियां को ले रहा था, यह दशकों से भी पहले की थी। हालांकि, क्लाउड कंप्यूटिंग तकनीक का लाभ उठाते हुए, यह पहली बार है जब पूरी बर्फ की चादर के ऊपर इतने लंबे समय तक इनका विश्लेषण करना संभव हो गया है। यह अध्ययन जर्नल ऑफ ग्लेशियोलॉजी में प्रकाशित हुआ है।

शोध से यह भी पता चला है कि बर्फ की चट्टान, ग्लेशियर जलवायु कारकों जैसे महासागर के तापमान और वायु तापमान के जवाब में अपेक्षाकृत सरल, रैखिक तरीके से प्रतिक्रिया करते हैं। जब हर एक ग्लेशियर को देखा गया था, तो उनकी प्रतिक्रियाएं जटिल और गैर-रैखिक थी।

ये निष्कर्ष भविष्य में एक समूह के रूप में समुद्र में मिलने वाले ग्लेशियरों के व्यवहार को मॉडल करने के लिए बहुत आसान और सरल बना देंगे। पहले, इस कार्य की कम्प्यूटेशनल जटिलता और मॉडल इनपुट के आसपास अनिश्चितता का मतलब था कि विभिन्न जलवायु परिवर्तन परिदृश्यों के लिए हर एक ग्लेशियर के लिए मॉडल करना संभव नहीं था।

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in