क्या जलवायु परिवर्तन से निपटने में मददगार हो सकता है प्रोपेन

2050 तक करीब 250 करोड़ लोगों के पास एयर कंडीशनर होंगे, वहीं भारत में अगले 28 वर्षों में एयर कंडीशनरों की मांग में करीब 23 गुना वृद्धि होने की सम्भावना है
फोटो: इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट फॉर एप्लाइड सिस्टम्स एनालिसिस (आईआईएएसए)
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जलवायु में आते बदलावों और बढ़ते तापमान के साथ लू का कहर भी बढ़ता जा रहा है और साथ ही बढ़ती जा रही है घरों, दफ्तरों और दूसरे स्थानों को ठंडा रखने के लिए एयर कंडीशनरों की जरुरत। अनुमान है कि 2050 तक करीब 250 करोड़ लोगों के पास एयर कंडीशनर होंगे।

एक तरफ यह उपकरण जहां लोगों को गर्मी और लू के कहर से बचाने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। वहीं दूसरी तरफ इनके द्वारा उपयोग की जा रही बिजली और तापमान में होती वृद्धि में इनकी बड़ी भूमिका है, जोकि अपने आप में एक बड़ी समस्या है।

ऐसे में एक नए अध्ययन से पता चला है कि रेफ्रिजरेंट के रूप में प्रोपेन का उपयोग वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि को कम कर सकता है।

देखा जाए तो हम गर्मियों में या फिर निम्न अक्षांशों में पूरे साल भर घरों को ठंडा रखने के लिए एयर कंडीशनर या अन्य कूलिंग उपकरण बड़ी मात्रा में बिजली का उपयोग करते हैं। अनुमान है कि यह कूलिंग उपकरण वैश्विक स्तर पर बिजली उपयोग का करीब दसवां हिस्सा खर्च कर रहे हैं।

शोधकर्ताओं का मानना है कि यदि वैश्विक तापमान में होती वृद्धि आने वाले वर्षों में भी इसी तरह जारी रहती है, तो गर्मी के कहर से बचने के लिए बिजली की मांग करीब तीन गुना बढ़ जाएगी। देखा जाए तो ऊर्जा की बढ़ती मांग के साथ-साथ यह एयर कंडीशनर पर्यावरण को भी खतरे में डाल रहे हैं क्योंकि वातावरण को ठंडा रखने के लिए यह हेलोजन युक्त रेफ्रिजरेंट का उपयोग करते हैं।

इस पर किए एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि वैश्विक तापमान में जिस तरह से वृद्धि हो रही है, उसके चलते आने वाले समय में एयर कंडीशनर भारत में लक्ज़री नहीं बल्कि वक्त की जरुरत बन जाएंगे। अनुमान है कि 2050 तक भारत में करीब 110 करोड़ एयर कंडीशनर (एसी) लग चुके होंगें। वहीं यदि इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (आईईए) द्वारा जारी आंकड़ों को देखें तो 2020 में देश में करीब 4.8 करोड़ एसी थे। मतलब कि इन 28 वर्षों में एयर कंडीशनर की संख्या में करीब 23 गुना वृद्धि होने की सम्भावना है।

2050 तक भारत की 99 फीसदी शहरी आबादी को होगी एयर कंडीशनिंग की जरुरत

गौरतलब है कि अभी भारत में 10 फीसदी से भी कम आबादी के पास एसी है। वहीं अनुमान है कि उच्च उत्सर्जन परिदृश्य में 2050 तक भारत और इंडोनेशिया की 99 फीसदी शहरी आबादी को एयर कंडीशनिंग की जरुरत होगी।

देखा जाए तो दुनिया भर में स्थान को ठंडा रखने के लिए स्प्लिट-एयर कंडीशनर (स्प्लिट एसी) का बड़े पैमाने पर उपयोग किया जा रहा है, जोकि एक पाइप के जरिए  एक इनडोर और आउटडोर एयर यूनिट से जुड़े होते हैं। इनमें से ज्यादातर एयर कंडीशनर एचसीएफसी-22 और एचएफसी-410ए को रेफ्रिजरेंट के रूप में उपयोग करते हैं।

इन दोनों ही रेफ्रिजरेंट का संभावित ग्लोबल वार्मिंग स्कोर बहुत ज्यादा करीब 2,256 तक होता है। सीधे शब्दों में कहें तो यह रेफ्रिजरेंट बहुत ज्यादा गर्मी सोख सकते हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक यह रेफ्रिजरेंट 100 वर्षों में कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में 2,256 गुना ज्यादा गर्मी पैदा कर सकते हैं।

इसके खतरे को देखते हुए मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल में किगाली संशोधन किया गया था, जिसमें इससे निपटने पर जोर देने की बात कही गई थी। ऐसे में कई निर्माता ऐसे रेफ्रिजरेंट की तलाश में हैं जिनका ग्लोबल वार्मिंग संभावित स्कोर कम हो। ऐसा ही एक रेफ्रिजरेंट एचएफसी-32 है जिसका ग्लोबल वार्मिंग संभावित स्कोर 771 के करीब है। मतलब कि यह रेफ्रिजरेंट भी ग्लोबल वार्मिंग को देखते हुए ज्यादा प्रभावी नहीं है।

वैश्विक तापमान में 0.09 डिग्री सेल्सियस की गिरावट कर सकता है प्रोपेन का उपयोग

ऐसे में यूनाइटेड नेशंस एनवायरनमेंट प्रोग्राम और लीड्स विश्वविद्यालय के सहयोग से इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट फॉर एप्लाइड सिस्टम्स एनालिसिस (आईआईएएसए) के शोधकर्ता पल्लव पुरोहित के नेतृत्व एक अध्ययन किया गया है। जर्नल प्लोस में प्रकशित इस अध्ययन से पता चला है कि रेफ्रिजरेंट के रुप में प्रोपेन का उपयोग बढ़ते तापमान की इस समस्या को कम करने में मददगार हो सकता है। अनुमान है कि इसके उपयोग से सदी के अंत तक वैश्विक तापमान में होती वृद्धि को 0.09 डिग्री सेल्सियस तक कम किया जा सकता है।

ऐसे में यह रेफ्रिजरेंट वैश्विक तापमान में होती वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। साथ ही अपने इस शोधपत्र में शोधकर्ताओं ने रेफ्रिजरेंट एचएफसी-32 के वैश्विक तापमान पर पड़ने वाले असर की गणना की है।

पता चला है कि रेफ्रिजरेंट के रूप में एचएफसी-32 का उपयोग वैश्विक तापमान में होती वृद्धि में सदी के अंत तक 0.03 डिग्री सेल्सियस की कमी ला सकता है , लेकिन इसके बावजूद यह गिरावट प्रोपेने के कारण आने वाली गिरावट की तुलना में काफी कम है। 

इस बारे में शोधकर्ता पल्लव पुरोहित का कहना है कि ऊर्जा उपयोग के मामले प्रोपेन कहीं ज्यादा बेहतर विकल्प है, साथ ही यह रेफ्रिजरेंट ग्लोबल वार्मिंग के दृष्टिकोण से पर्यावरण के लिए कहीं ज्यादा फायदेमंद है, क्योंकि इसका ग्लोबल वार्मिंग संभावित स्कोर एक से भी कम है।

उनके अनुसार 7 किलोवाट तक की क्षमता वाले एचएफसी-संचालित स्प्लिट-एसी की जगह इसे तकनीकी रूप से मान्य विकल्प के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। 

शोध से पता चला है कि प्रोपेन का उपयोग करने ऊर्जा दक्ष स्प्लिट-एसी पहले ही भारतीय और चीनी बाजार में व्यावसायिक रूप से उपलब्ध हैं। हालांकि एचएफसी-32 की तरह ही बेहतर प्रदर्शन करने के बावजूद इन प्रोपेन आधारित स्प्लिट एयरकंडीशनरों के उपयोग को कुछ देशों में प्रतिबंधित किया गया है।

मुख्य रूप से ऐसे इसकी उच्च ज्वलनशीलता के कारण है क्योंकि दुनिया के कई देशों में मानक इस तरह के रेफ्रिजरेंट के उपयोग को प्रतिबंधित करते हैं, जिसकी वजह से इनकों व्यापक रूप से अपनाने में बाधा आ रही है। 

वहीं यदि कीमत की बात करें तो एचएफसी-410ए आधारित एयर कंडीशनर की कीमत प्रोपेन आधारित स्प्लिट ऐसी की कीमत से करीब 6 से 10 फीसदी ज्यादा होती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि इनमें सुरक्षा के लिए अतिरिक्त उपायों की जरुरत पड़ती है।

हालांकि इनके परिचालन की लागत कम है क्योंकि वे अन्य की तुलना में कहीं ज्यादा दक्ष और कुशल हैं। शोधकर्ताओं के मुताबिक प्रोपेन आधारित यह ऐसी एचएफसी-410ए की तुलना में 40 से 60 फीसदी कम कम रेफ्रिजरेंट का उपयोग करते हैं जो जेब और पर्यावरण के दृष्टिकोण से फायदेमंद है।

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