हर साल 2 से 17 टेराग्राम मीथेन के लिए जिम्मेवार है दीमक

दीमक मीथेन का एक प्रमुख स्रोत है, लेकिन वे ग्लोबल वार्मिंग के कितने बड़े घटक हैं, इसकी ठोस व निश्चित जानकारी नहीं है
हजारों की संख्या में कॉलोनी में रहने वाले दीमकों के मीथेन उत्सर्जन के अलग-अलग आंकड़े हैं
हजारों की संख्या में कॉलोनी में रहने वाले दीमकों के मीथेन उत्सर्जन के अलग-अलग आंकड़े हैं
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दुनिया के लगभग हर उष्णकटिबंधीय वन, घास के मैदान, गर्म अथवा आर्द्र क्षेत्र में 2-5 मीटर ऊंचे भुरभुरे टीले देखे जा सकते हैं। मिट्टी, पानी और लार से बने ये टीले दीमकों के घर होते हैं। 60,000-2,00,000 की कॉलोनियों में टीले में रहने वाले ये छोटे कीड़े न केवल कुशल कारीगर और इंजीनियर हैं बल्कि कार्बन डाईऑक्साइड से अधिक प्रबल गैस मीथेन का एक आश्चर्यजनक स्रोत भी हैं।

दीमकों को मीथेन के प्राकृतिक स्रोतों जैसे आर्द्रभूमि, जंगली जानवरों, पशुधन और ज्वालामुखी जैसी भूगर्भीय विशेषताओं में शुमार किया जाता है। वैश्विक स्तर पर मीथेन के 1-3 प्रतिशत उत्सर्जन के लिए दीमक जिम्मेदार हैं। ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट 2020 में प्रकाशित अपने “ग्लोबल मीथेन बजट” में कहता है कि 2008-17 में दुनिया ने प्रति वर्ष 576 टेराग्राम (टीजी) (1 टीजी= 1 अरब किलोग्राम) मीथेन का उत्सर्जन किया, जिसमें दीमक ने 9 टीजी का योगदान दिया। अन्य अनुमानों ने दीमकों से उत्सर्जन को 2-15 टीजी प्रति वर्ष रखा है। हालांकि, वैज्ञानिकों का कहना है कि वास्तविक उत्सर्जन इन अनुमानों से अधिक या कम हो सकता है। इसमें निश्चितता लाने के लिए दीमकों की कॉलोनियों और मीथेन के बीच संबंध को समझने की जरूरत है।

दीमक पौधों और लकड़ी से अपने लगाव के कारण कृषि, जंगलों और निर्माण स्थलों पर कहर बरपाने के लिए जाने जाते हैं। दुनियाभर में दीमकों की 3,000 प्रजातियां हैं जिसमें से केवल 10-15 प्रतिशत को ही कीट के रूप में वर्गीकृत किया गया है। दीमक कुदरती तौर पर मृत और सड़े हुए पौधों व पशुओं में मौजूद पोषक तत्वों को खाते हैं और उनका पुनर्चक्रण करते हैं। यह सेल्युलोज युक्त आहार है जो उत्सर्जन का कारण बनता है। दीमक के पेट में रहने वाले मीथेनोजेनिक सूक्ष्मजीव उनके शरीर में प्रवेश करने वाले सेल्युलोज को तोड़ते हैं और मीथेन छोड़ते हैं (देखें, संचय भी, उद्गम भी)।

हालांकि, 2000 के दशक में यह पाया गया है कि दीमक टीले में सूक्ष्मजीवों के एक चुनिंदा समूह को जमा करके क्षति को आंशिक रूप से पूर्ववत करते हैं। सोनीपत के एसआरएम विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर जॉयिता सिंह चक्रवर्ती ने डाउन टू अर्थ को बताया कि अंतिम उत्सर्जन दीमक की आंत में मीथेन उत्सर्जक बैक्टीरिया और टीले में मीथेन लेने वाले बैक्टीरिया के बीच संतुलन पर निर्भर करता है।

वैश्विक मीथेन उत्सर्जन में दीमक के योगदान को पहली बार 1932 में कैलिफोर्निया मेडिकल स्कूल, बर्कले के एक फिजियोलॉजिस्ट एसएफ कुक द्वारा द यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो प्रेस में प्रकाशित किया गया था। दीमकों के श्वसन पर प्रयोग करते हुए उन्होंने एक अन्य गैस की पहचान की लेकिन उसकी संरचना को डिकोड नहीं किया। उन्होंने अनुमान लगाया कि संभवतः आंत सूक्ष्मजीवों के माध्यम से दीमक मवेशियों की तरह मीथेन छोड़ने के लिए भोजन में सेल्युलोज का उपयोग करते हैं।

1982 में अमेरिका, जर्मनी और केन्या के शोधकर्ताओं ने साइंस में एक पेपर प्रकाशित किया जिसमें कहा गया था कि दीमक प्रति वर्ष 150 टीजी मीथेन उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं। यह उस समय के कुल मीथेन उत्सर्जन का 40 प्रतिशत था। चक्रवर्ती स्पष्ट करती हैं कि इस्तेमाल की गई पद्धति के कारण यह एक अतिशयोक्तिपूर्ण गणना थी। पिछले कुछ दशकों में हुए विभिन्न अध्ययनों में दीमक से मीथेन उत्सर्जन की मात्रा अलग-अलग निकाली गई है। 1993 में इसे 26 टीजी प्रति वर्ष, 1996 में 19.7 टीजी प्रति वर्ष, 2013 में 11 टीजी प्रति वर्ष और 2018 में 20.03 टीजी प्रति वर्ष निर्धारित किया गया।

कई प्रभाव

दीमक से मीथेन उत्सर्जन के अनुमान में अनिश्चितता के कई कारण हैं। सबसे पहले तो दीमक की 3,000 ज्ञात प्रजातियों में से केवल 5 प्रतिशत का उत्सर्जन डेटा उपलब्ध है। दूसरा, उत्सर्जन की गणना के लिए आवश्यक दीमक बायोमास (वैश्विक स्तर पर सभी टीलों में मौजूद दीमक का द्रव्यमान) का अनुमान लगाना एक आक्रामक प्रक्रिया है जिसमें टीले को नष्ट करना और मैन्युअल रूप से कीड़ों की गिनती करना शामिल है। तीसरा, इस बात की सीमित जानकारी है कि टीले किस हद तक मीथेन कैप्चर करते हैं।

वर्तमान में दीमक उत्सर्जन का अनुमान लगाने के दो प्राथमिक तरीके हैं। पहले तरीके में प्रयोगशाला में दीमक का अध्ययन शामिल है। हालांकि, यह विधि टीले द्वारा मीथेन कैप्चर की गणना नहीं करती। दूसरा तरीका है, वनों में अलग-अलग टीलों द्वारा जारी उत्सर्जन की जांच करना, लेकिन यहां टीले के बाहर अलग-अलग दीमकों द्वारा उत्सर्जन छूट जाता है। चक्रवर्ती ने उत्तराखंड में दून घाटी के जंगलों में 2015-16 में वन अनुसंधान संस्थान में डॉक्टरेट छात्र के रूप में ऐसा अध्ययन किया। उन्होंने भारत में सबसे आम दीमक प्रजाति ओडोंटोटर्मस ओबेसस के टीले का अध्ययन किया, जो जंगल में और कभी-कभी कृषि क्षेत्रों में पाया जाता है, लेकिन शहरी क्षेत्रों में कम दिखता है। उन्होंने टीले को पारदर्शी प्लास्टिक की चादरों से ढंक दिया, जिसमें एक छेद था जिसे रबर सेप्टम से सील कर दिया गया था और सेप्टम में एक सिरिंज के जरिए छोड़ी गई गैस को कैप्चर कर लिया। गैस के नमूनों से पता चला है कि टीले औसतन 0.38 मिलीग्राम प्रति वर्ग मीटर प्रति घंटा (mg m−-2 h­-1) मीथेन छोड़ते हैं। उनका अध्ययन 2021 में ईकोसिस्टम्स पत्रिका में प्रकाशित हुआ था।



ओडोंटोटर्मस ओबेसस पर चक्रवर्ती का अनुमान अफ्रीका में थोराकोटर्मस दीमक प्रजातियों (17.3 mg m−-2 h­-1) की तुलना में कम है, लेकिन मलेशिया के उष्णकटिबंधीय जंगलों की प्रजातियों की तुलना में अधिक है (2.3 × 10-14 mg m−-2 h­-1)। वह बताती हैं कि प्रजातियों के बीच इस तरह के अंतर खाने के प्रकार, चयापचय प्रक्रिया और आंत माइक्रोबियल सामग्री में भिन्नता के कारण हैं। अध्ययनों से संकेत मिलता है कि लकड़ी खाने वाले दीमक मिट्टी खाने वाली और फंगस पर पलने वाली प्रजातियों की तुलना में कम मीथेन छोड़ते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि लकड़ी खाने वाले दीमक में सूक्ष्मजीव होते हैं जो मुख्य रूप से एसीटेट छोड़ते हैं। 1993 के केमोस्फीयर पेपर का कहना है कि अन्य समूहों में मीथेन-छोड़ने वाले सूक्ष्मजीव हावी हैं।

प्रजातियों के भीतर भी उत्सर्जन में भिन्नता होती है। एकेडमिक जर्नल ऑफ प्लांट साइंसेज में 2009 में प्रकाशित एक शोधपत्र कहता है कि कॉलोनी की रानी सबसे बड़ी उत्सर्जक है। इस रानी का मुख्य काम राजा के साथ प्रजनन कर श्रमिकों और सैनिकों की संख्या बढ़ाना है। रानी के बाद सर्वाधिक उत्सर्जन वे सैनिक करते हैं जो कॉलोनी की रक्षा करते हैं। इसके बाद कॉलोनी बनाने वाले श्रमिकों और फिर अंत में लार्वा का नंबर आता है। इसके अलावा मिट्टी का तापमान और नमी जैसे बाहरी कारक भी हैं। चक्रवर्ती के 2021 के अध्ययन में कहा गया है कि उच्च तापमान चयापचय गतिविधि को बढ़ाता है और अधिक नमी का स्तर वनस्पति विकास और दीमक के बीच भोजन की खपत को बढ़ाता है। ये दोनों कारक उत्सर्जन बढ़ा सकते हैं। ओडोंटोटर्मस ओबेसस के टीले जुलाई में अधिकतम (0.66 mg m-2 h-−1) और नवंबर में न्यूनतम (0.135 mg m−-2 h−-−1) उत्सर्जन था।

रोकथाम की सीमा

शोधकर्ताओं ने दीमक के टीले के भीतर मीथेन कैप्चर का अध्ययन करने का भी प्रयास किया है। पीएनएएस में प्रकाशित 2018 के एक अध्ययन में ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों ने देश के उत्तरी क्षेत्र में दीमक के 29 टीलों में मीथेन और आर्गन (गैस) इंजेक्ट किया और फिर गैसों को पंप से खींचा। इस क्षेत्र में दीमक की तीन मूल प्रजातियां मौजूद हैं। वैज्ञानिकों ने पाया कि कुछ मीथेन खत्म हो गई जबकि आर्गन उतना ही था। उन्होंने डिफ्लोरोमीथेन के साथ यह प्रक्रिया दोहराई। यह प्रक्रिया मीथेन खाने वाले बैक्टीरिया को गैस के ऑक्सीकरण से रोकने के लिए जाना जाती है। इस बार वे मीथेन और आर्गन के इंजेक्शन और पंप किए गए स्तरों को तुलनीय पाते हैं। यह इंगित करता है कि मीथेन का उपभोग करने वाले सूक्ष्मजीव 20-80 प्रतिशत गैस को कम करते हैं। सूक्ष्मजीव सभी उत्सर्जन का उपभोग क्यों नहीं करते, यह समझने के लिए 2020 में कई देशों के शोधकर्ताओं ने उत्तरी ऑस्ट्रेलिया से दीमक की तीन प्रजातियों के 17 टीलों को खोदकर अध्ययन किया। उन्होंने पाया कि मीथेन का उपभोग करने वाले सूक्ष्मजीवों में टीले के 0.5 प्रतिशत से भी कम दीमक शामिल हैं। इससे संकेत मिलता है कि इनकी संख्या सीमित है। आईएसएमई जर्नल में प्रकाशित एक शोधपत्र में शोधकर्ता लिखते हैं कि ये परिणाम दुनिया के अन्य हिस्सों पर लागू नहीं होते।

गर्मी का जोखिम

एक दीमक कॉलोनी से उत्सर्जन की जानकारी, आवश्यक नहीं है कि व्यापक स्तर पर लागू हो। मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर मेट्रोलॉजी के थॉमस क्लेनन कहते हैं, दुनियाभर में दीमक की कॉलोनियों और उसमें दीमक की संख्या के बारे में अनिश्चितता है और इन क्षेत्रों का अध्ययन भी नहीं किया गया है।

इस बात भी अब तक कोई जानकारी सामने नहीं आई है कि दीमक जलवायु परिवर्तन पर कैसी प्रतिक्रिया देते हैं। जैसे-जैसे तापमान बढ़ता है और वनस्पति गर्म क्षेत्रों में अधिक उत्पादक होती जाती है, वैसे-वैसे दीमकों के उत्तर की ओर बढ़ने की उम्मीद होती है। इससे नए क्षेत्रों का उपनिवेशीकरण होता है। एनवायरमेंटल रिसर्च लेटर्स में 2021 के एक अध्ययन में क्लेनन और उनके सहयोगियों ने एक कंप्यूटर मॉडल का उपयोग करके पता लगाया कि जलवायु परिवर्तन दीमक के उत्सर्जन को कैसे प्रभावित करता है। उनका अनुमान है कि 2000-09 में दीमक उत्सर्जन प्रति वर्ष 11.7 टीजी था। इसके बाद वे एक विशिष्ट स्थान में दीमक के लिए भोजन की उपलब्धता और वहां उनकी संख्या निर्धारित करते हैं। उनके अनुमान से पता चलता है कि 2100 तक औसत तापमान 3.6 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ने पर दीमक उत्सर्जन 2200 में 88 टीजी प्रति वर्ष और 2280 के दशक में 95 टीजी प्रति वर्ष तक बढ़ सकता है।

चक्रवर्ती मानती हैं कि जैव विविधता में कमी और शिकारियों की संख्या में गिरावट भी दीमक की आबादी को बढ़ा सकती है। 2021 के अध्ययन में वह पाती हैं कि दीमक विविधतापूर्ण स्थानों की तुलना में डिग्रेडेड स्थानों में अधिक सक्रिय है। इसलिए वह कहती हैं कि उत्सर्जन को कम करने के लिए पारिस्थितिक संतुलन को बहाल करना एक समाधान हो सकता है।

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