पहाड़ों में 15 साल बाद दिखी ऐसी बर्फबारी

उत्तराखंड के निचले क्षेत्रों में कई ऐसे गांव हैं, जहां पिछले दस-पंद्रह वर्षों बाद बर्फ गिरी है। इन गांवों के लोग खुशियां मना रहे हैं
केदारनाथ में इस सीजन में अब तक दस फीट तक बर्फ गिर चुकी है जिससे न्यूनतम तापमान माइनस दस डिग्री तक पहुंच गया है। Credit: Lakki Rawat
केदारनाथ में इस सीजन में अब तक दस फीट तक बर्फ गिर चुकी है जिससे न्यूनतम तापमान माइनस दस डिग्री तक पहुंच गया है। Credit: Lakki Rawat
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हिमालयी राज्य उत्तराखंड में बर्फबारी ने पिछले कई वर्षों का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। राज्य के निचले क्षेत्रों में कई ऐसे गांव हैं, जहां पिछले दस-पंद्रह वर्षों बाद बर्फ गिरी है। इन गांवों के लोग खुशियां मना रहे हैं। बर्फबारी से इन गांवों में उत्सव सरीखा माहौल बन गया है।

कम ऊंचाई वाले क्षेत्रों में भी बर्फबारी 

पिछले कुछ वर्षों के रुझान के अनुसार, उत्तराखंड में आमतौर पर समुद्र तल से दो हजार फुट या उससे अधिक ऊंचाई वाले इलाकों में बर्फबारी होती है। देहरादून मौसम विज्ञान केंद्र का कहना है कि इस बार 1,500 मीटर तक बर्फबारी हुई है। देहरादून में राजपुर से ऊपर और मसूरी के निचले इलाकों में बर्फ गिरी है। जोशीमठ और केदारघाटी में 1,500 मीटर तक की ऊंचाई वाले गांवों में बर्फबारी हुई है। 

देहरादून मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक बिक्रम सिंह कहते हैं कि इस बार मॉनसून के बाद और सर्दियों के मौसम में तापमान सामान्य या उससे नीचे ही दर्ज किया गया है। सिर्फ 14 से 20 जनवरी तक तापमान में सामान्य से थोड़ी बढ़त रही। लेकिन ज्यादातर समय तापमान नीचे ही रहा। उनके मुताबिक, तापमान कम रहने पर अच्छी बर्फबारी होती है। जबकि तापमान अधिक होने पर, धरती की सतह भी गर्म रहती है, जिससे बर्फबारी कम होती है और बर्फ जल्दी पिघल जाती है। सिंह के मुताबिक्र, सामान्य से कम तापमान ने ही निचले इलाकों तक बर्फ की बौछारें पहुंचाई हैं। ऐसी स्थिति में 1,200 फीट से लेकर 1,500 फीट तक भी बर्फ मिल जाती है। 

करीब पंद्रह वर्षों बाद उत्तराखंड में मौसम का ये रुख देखने को मिला है। सिंह के मुताबिक, इस बार राजस्थान और पड़ोसी क्षेत्रों से इन्ड्यूस्ड सिस्टम भी बना। पश्चिमी विक्षोभ के साथ मिलकर, कम ऊंचाई वाले इलाकों में बने इस इनड्यूस्ड सिस्टम से नमी ज्यादा होती है, जिससे बारिश और बर्फबारी अच्छी हो जाती है। यही वजह है कि इस बार निचले इलाकों में बर्फबारी हुई।

हिमालयी क्षेत्र में बर्फबारी

राज्य में अब तक की बारिश और बर्फबारी सामान्य से अधिक दर्ज की जा चुकी है। सिंह कहते हैं कि बर्फबारी के लिए अभी फरवरी का पूरा महीना बचा है। साथ ही मार्च में भी पश्चिमी विक्षोभ बनने पर बर्फ गिर जाती है। तो इस तरह हिमालयी क्षेत्र के लिए इस वर्ष अच्छी बर्फबारी हुई है। 

कृषि और बागवानी के लिए भी ये बारिश वरदान साबित होगी। सिंह के मुताबिक, खेती के लिहाज से ये महीना किसानों के लिए बहुत अच्छा रहा है। उनके लिए तो मानो सोना बरस गया हो। क्योंकि पहाड़ों में ज्यादातर खेती बारिश पर ही निर्भर करती है। मार्च-अप्रैल में भी ठीक-ठाक बारिश हो जाए तो किसानों के लिए फसल का ये मौसम बेहतरीन साबित हो सकता है।

जलवायु परिवर्तन का असर!

जीबी पंत नेशनल इस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन इनवायरमेंट एंड सस्टेनेबल डेवलपमेंट के वैज्ञानिक और गढ़वाल परिक्षेत्र के प्रभारी आरके मैखुरी भी कहते हैं कि पिछले पंद्रह वर्षों से इतनी कम ऊंचाई वाले क्षेत्रों में बर्फ नहीं गिरी थी। इसके साथ ही इस बार बर्फबारी की तीव्रता भी बहुत अधिक रही है। वे इसे जलवायु परिवर्तन का असर ही मान रहे हैं। वह कहते हैं कि गढ़वाल में जिन क्षेत्रों में सामान्यत: दो फीट तक बर्फ गिरती है, वहां इस बार चार-पांच फीट तक बर्फबारी दर्ज की गई। केदारनाथ में इस सीजन में अब तक दस फीट तक बर्फ गिर चुकी है जिससे यहां तापमान में भी गिरावट आई है। केदारनाथ में न्यूनतम तापमान माइनस दस डिग्री तक पहुंच गया है। मैखुरी मानते हैं कि इस बर्फबारी से ग्लेशियर अधिक रिचार्ज होंगे। गंगा-यमुना जैसी हिमालयी नदियों के स्रोत ग्लेशियर ही हैं। इसका फायदा हमें गर्मियों में मिलेगा। मई-जून के महीने में जब गर्मी बढ़ती है तो ग्लेशियर के पिघलने से नदियों में पानी कम नहीं होगा। इसके साथ ही राज्य के वन क्षेत्र के लिए भी ये बर्फबारी अच्छी रही है। 

हिमाचल में भी अच्छी बर्फबारी

हिमाचल प्रदेश से भी अच्छी बर्फबारी हो रही है। हिमाचल प्रदेश मौसम विभाग के निदेशक मनमोहन सिंह ने बताया कि शिमला में 22 जनवरी को करीब 44.5 सेंटीमीटर तक बर्फबारी हुई जो वर्ष 2004 के बाद जनवरी महीने में होने वाली सबसे अधिक बर्फबारी है। हालांकि ये सिर्फ 24 घंटे का रिकॉर्ड है। 23 जनवरी, 2004 को 57.7 सेमी तक बर्फ गिरी थी। इस बार की बर्फबारी उससे अधिक नहीं रही। सिंह के मुताबिक पिछले कुछ वर्षों की तुलना में इस बार ज्यादा बर्फ गिरी है। बर्फबारी के लिहाज से इससे पहले वर्ष 2017, 2013 और 2012 अच्छे रहे थे। 

मनमोहन सिंह कहते हैं कि हिमाचल में 1,500 फीट की ऊंचाई तक बर्फ गिरना सामान्य है। सोलन करीब 1500 फीट की ऊंचाई पर बसा है जहां अक्सर ही बर्फ गिरती है। सिंह बताते हैं कि 6-7 वर्ष पहले कांगड़ा तक बर्फ गिरी थी जो कि महज 750 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। हिमालयी राज्यों में इस सीजन की बर्फबारी ने स्थानीय लोगों और प्रशासन की मुश्किलें जरूर बढ़ाई हैं। सड़क मार्ग बंद होने से आवाजाही में दिक्कत आ रही है। साथ ही दुर्घटनाओं की आशंका बढ़ गई है। लेकिन मौसम और पर्यावरण के लिहाज से ये बर्फ अच्छी मानी जा रही है।

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