नदियों से जल्दी उतर जाता है बर्फ का आवरण, वैज्ञानिकों ने जताई चिंता

पृथ्वी की आधी से अधिक नदियां हर साल जम जाती हैं। ये जमी हुई नदियां लोगों और उद्योगों के लिए महत्वपूर्ण हैं तथा ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा को नियंत्रित करती है
Photo: Creative commons
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वैश्विक तापमान में हर एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने से वार्षिक नदियों के बर्फ का आवरण (आइस कवर) लगभग छह दिन पहले ही पिघल जाएगा। ऐसा अमेरिका की नार्थ कैरोलिना विश्वविद्यालय के चैपल हिल डिपार्टमेंट ऑफ जियोलॉजिकल साइंसेज में शोधकर्ताओं के एक नए अध्ययन में पाया गया है। इस गिरावट के आर्थिक और पर्यावरणीय परिणाम बहुत खतरनाक होंगे।

पृथ्वी की आधी से अधिक नदियां हर साल जम जाती हैं। ये जमी हुई नदियां लोगों और उद्योगों के लिए महत्वपूर्ण हैं तथा ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा को नियंत्रित करती है। जमी हुई नदियां पारिस्थितिक रूप से लाभकारी भूमिका निभाती है। ये ताजा पानी देने के साथ-साथ नदियों में पोषक तत्वों को भी बढ़ाती हैं।

"नेचर एंड फ्यूचर ऑफ ग्लोबल रिवर आइस" नामक अध्ययन, नेचर पत्रिका में प्रकाशित किया गया है। वैश्विक स्तर पर यह इस तरह का पहला अध्ययन है। 

यूएनसी-चैपल हिल भू-वैज्ञानिक विभाग के पोस्टडॉक्टरल स्कॉलर और प्रमुख अध्ययनकर्ता जिओ यांग ने कहा कि दुनिया भर में मौसमी रूप से जमने वाली नदियों को मापने के लिए हमने 34 वर्षों में लिए गए 4 लाख से अधिक उपग्रह चित्रों का आकलन किया है। हमने नदी के बर्फ कवरेज में हर महीने होने वाली व्यापक गिरावट का पता लगाया है। भविष्य में होने वाले बर्फ के नुकसान को देखते हुए इन नदियों के साथ-साथ लोगों और उद्योगों को आर्थिक चुनौतियों का सामना करने की आशंका है। बर्फ की कमी के कारण नदियों से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन नियंत्रित नहीं होगी, जिससे मौसमी पैटर्न में बदलाव आएगा।  

अध्ययनकर्ताओं की टीम ने अतीत में नदी के बर्फ के आवरण में बदलाव को भी देखा और भविष्य के लिए पूर्वानुमान लगाने के मॉडल को भी तैयार किया। टीम ने 2008-2018 और 1984-1994 तक नदी के आइस कवर की तुलना की, जिसमें मासिक वैश्विक गिरावट 0.3 से 4.3 फीसदी तक देखी गई। सबसे अधिक गिरावट तिब्बती पठार, पूर्वी यूरोप और अलास्का में पाई गई थी।

अध्ययन में बताया गया है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण नदी की बर्फ में गिरावट जारी रहने की आशंका है।

टीम ने 2009-2029 और 2080-2100 के, मॉडल के माध्यम से अपेक्षित नदी के आइस कवर की तुलना की। जिसमें सर्दियों के महीनों में उत्तरी गोलार्ध में 9-15 फीसदी की गिरावट और वसंत के दौरान 12-68 फीसदी तक की मासिक गिरावट देखी गई। रॉकी पर्वत, उत्तरपूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका, पूर्वी यूरोप और तिब्बती पठार पर भारी प्रभाव पड़ने की आशंका है। 

यूएनसी-चैपल हिल के एसोसिएट प्रोफेसर ऑफ ग्लोबल हाइड्रोलॉजी टैमलिन पावलेस्की ने कहा इस अध्ययन से पता चलता है कि जलवायु मॉडल के साथ भारी मात्रा में उपग्रह चित्रों की मदद से हम भविष्य में होने वाले बदलावों पर नजर रखने के साथ-साथ इससे निपटने की तैयारी भी कर सकते हैं।

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