एक नए अध्ययन में वैज्ञानिकों ने चेताया है कि अगर जलवायु और वायु गुणवत्ता संबंधी नियमों को मजबूत न किया गया तो अगले दो दशकों में ओजोन संबंधी मौतों का आंकड़ा कहीं ज्यादा बढ़ जाएगा। इसका असर किसी एक देश में नहीं बल्कि दुनिया के कई शहरों में दर्ज किया जाएगा।
यह अंतराष्ट्रीय अध्ययन येल स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ से जुड़े वैज्ञानिकों के नेतृत्व में किया गया है, जिसके नतीजे जर्नल वन अर्थ में प्रकाशित हुए हैं। अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 20 देशों के 406 शहरों में बढ़ते ओजोन प्रदूषण के प्रभावों का आंकलन किया है।
उन्होंने अध्ययन में इस बात की भी जांच की है कि थोड़े समय के लिए भी ओजोन का संपर्क, इन शहरों में हर दिन होने वाली मौतों से कैसे जुड़ा है। शोधकर्ताओं की माने तो भौगोलिक दृष्टि से यह इस विषय पर किया अब तक का सबसे व्यापक और गहन अध्ययन है।
गौरतलब है कि वायु गुणवत्ता में आती गिरावट स्वास्थ्य पर मंडराते पर्यावरण से जुड़े सबसे बड़े खतरों में से एक है। सतह के पास मौजूद ओजोन भी वायु प्रदूषण का एक महत्वपूर्ण घटक है। यह तब बनता है जब कार और उद्योंगों से निकलने वाले धुंए के साथ-साथ पेंट, थिनर जैसे वाष्पशील रसायन सूर्य के साथ प्रतिक्रिया करते हैं।
ओजोन एक अत्यंत प्रतिक्रियाशील गैस है, जो सांस और ह्रदय सम्बन्धी बीमारियों के जोखिम को बढ़ा सकती है। इन बीमारियों की वजह से असमय मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है।
अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने इन 406 शहरों के स्वास्थ्य से जुड़े आंकड़ों का विश्लेषण किया है। साथ ही उन्होंने भविष्य में जलवायु और वायु गुणवत्ता संबंधी चार अलग-अलग परिदृश्यों में ओजोन संबंधी मौतों की गणना के लिए सीएमआईपी6 जलवायु मॉडल की मदद ली है।
इस अध्ययन के जो नतीजे सामने आए हैं उनसे पता चला है कि बढ़ते तापमान के साथ उत्तरी अमेरिका, यूरोप, एशिया, ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीका के इन शहरों में 2054 तक ओजोन संबंधी मौतों में हर साल 6,200 तक का इजाफा हो सकता है।
हालांकि अध्ययन के मुताबिक जो नतीजे सामने आए हैं उनपर जलवायु, इनकों लेकर जारी नियमों के साथ-साथ स्थानीय कारकों जैसे शहर की आबादी, स्थानीय जलवायु, मृत्युदर और वहां कितना प्रदूषण है, इसका भी प्रभाव पड़ता है।
बढ़ते तापमान के साथ उत्तर भारत में 20 फीसदी बढ़ जाएगा ओजोन प्रदूषण
अध्ययन से पता चला है कि ऐसे परिदृश्य में जहां बढ़ते तापमान और वायु गुणवत्ता को नियंत्रित करने पर गंभीरता से ध्यान दिया वहां 2054 तक ओजोन प्रदूषण से जुड़ी मौतों में 0.7 फीसदी की वृद्धि होने की आशंका है। वहीं दूसरी तरफ मजबूत वायु गुणवत्ता नियमों लेकिन कमजोर जलवायु नीतियों की स्थिति में इन मौतों में 56 फीसदी की वृद्धि होने की आशंका जताई गई है।
वहीं ऐसे परिदृश्य में जिनमें इन दोनों पर ध्यान न दिया गया, तो उस हालात में ओजोन से होने वाली मौतों में 94 फीसदी की वृद्धि हो सकती है। अध्ययन ने इस बात की भी पुष्टि की है कि यदि पेरिस समझौते के लक्ष्यों का पालन किया जाए तो ओजोन के होने होने वाली मौतों को सीमित किया जा सकता है। हालांकि इसके अलावा सभी परिदृश्यों में ओजोन प्रदूषण से होने वाली मौतों में वृद्धि दर्ज की गई।
इस बारे में अध्ययन के वरिष्ठ लेखक और येल स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ में सार्वजनिक स्वास्थ्य के सहायक प्रोफेसर काई चेन का कहना है कि, "यदि ज्यादा से ज्यादा देश पेरिस समझौते के लक्ष्यों के प्रति प्रतिबद्ध हों तो यह अध्ययन इस बात को उजागर करता है कि इससे स्वास्थ्य को ज्यादा से ज्यादा फायदा पहुंचेगा।"
यह सही है कि ओजोन को लेकर दुनिया भर के देशों ने अपने-अपने मानक निर्धारित किए हैं, लेकिन इसके बावजूद वो इसके कारण पैदा हो रही समस्या से निपटने के लिए काफी नहीं हैं। अपने इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने अधिकतम स्वीकार्य सीमा के रूप में ओजोन के लिए प्रति घन मीटर 70 माइक्रोग्राम का मानक तय किया है।
इसके विपरीत विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ओजोन के लिए 100 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर का मानक निर्धारित किया है। वहीं अमेरिका में यह करीब 137, यूरोप में 120, मेक्सिको में 137 और चीन में 160 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है।
आंकड़ों की मानें तो ओजोन प्रदूषण हर साल दुनिया भर में 365,000 जिंदगियां लील रहा है। इसमें से 46 फीसदी से ज्यादा मौतें केवल भारत में हो रहीं हैं। अनुमान है कि इसकी वजह से देश में हर साल 168,000 लोगों की असमय मृत्यु हो रही है। वहीं यदि चीन से जुड़े आंकड़ों को देखें तो वहां ओजोन हर साल 93,300 से ज्यादा लोगों की मौत की वजह बन रहा है।
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) ने भी अपनी एक रिपोर्ट में खुलासा किया है कि तापमान में होती वृद्धि के साथ उत्तर भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में ओजोन प्रदूषण 20 फीसदी बढ़ जाएगा। पता चला है कि ओजोन में होने वाली अधिकांश वृद्धि के लिए जीवाश्म ईंधन के कारण होने वाला उत्सर्जन जिम्मेवार है, लेकिन इस वृद्धि के लगभग पांचवे हिस्से के लिए जलवायु परिवर्तन भी जिम्मेवार है।
देखा जाए तो वायु गुणवत्ता और जलवायु आपस में गुंथे हुए हैं, क्योंकि जिन रसायनों की वजह से वायु गुणवत्ता खराब होती है, वे आमतौर पर ग्रीनहाउस गैसों के साथ उत्सर्जित होते हैं। ऐसे में एक में आने वाला बदलाव दूसरे को भी प्रभावित करता है।
ऐसे में वैज्ञानिकों ने ओजोन के लिए कड़े मानकों की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया है। उनका सुझाव है कि इससे न केवल ओजोन से होने वाली मौतों में कमी आएगी साथ ही सख्त वायु गुणवत्ता नियमों को लागू करने से उसके दूसरे फायदे भी सामने आएंगें। साथ ही यह जलवायु के लिहाज से भी फायदेमंद होगा।