ग्रीनहाउस गैसों के बढ़ते उत्सर्जन के चलते 400 मीटर तक सिकुड़ गया है समताप मंडल

यही नहीं यदि बढ़ते उत्सर्जन पर अभी रोक न लगाई गई तो यह परत 2080 तक करीब 1.3 किलोमीटर घट जाएगी
ग्रीनहाउस गैसों के बढ़ते उत्सर्जन के चलते 400 मीटर तक सिकुड़ गया है समताप मंडल
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हाल ही में किए एक शोध से पता चला है कि ग्रीनहाउस गैसों के बढ़ते उत्सर्जन के साथ वायुमंडल की पांच प्रमुख परतों में से एक समताप मंडल (स्ट्रेटोस्फियर) सिकुड़ रहा है। जलवायु वैज्ञानिकों के एक अंतराष्ट्रीय दल द्वारा इस बात का खुलासा किया गया है। उनके अनुसार 1980 के बाद से वायुमंडल की इस परत की मोटाई करीब 400 मीटर तक सिकुड़ गई है, जोकि इसकी मोटाई का करीब एक फीसदी है।  

हालांकि इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि बढ़ता उत्सर्जन जलवायु में आ रहे बदलावों के लिए जिम्मेवार है। साथ ही इसके कारण धरती पर जल की उपलब्धता, खाद्य सुरक्षा, पेड़पौधों, जीव-जंतुओं आदि पर भी असर पड़ रहा है, पर हाल ही में जर्नल एनवायर्नमेंटल रिसर्च लेटर्स में छपे शोध में यह चौंका देने वाली जानकारी सामने आई है। यही नहीं शोध के मुताबिक यदि उत्सर्जन में हो रही वृद्धि पर जल्द रोक न लगाई गई तो यह परत 2080 तक करीब 1.3 किलोमीटर तक घट जाएगी।

यदि समताप मंडल की बात करें तो वो धरती के वातावरण की पांच प्रमुख परतों में से एक है। जो पृथ्वी की सतह से 20 से 60 किलोमीटर की ऊंचाई पर मौजूद है। इसके नीचे क्षोभमंडल और ऊपर मध्यमंडल होता है। इस परत की सबसे महत्वपूर्ण विशेष इसमें मौजूद ओजोन गैस की परत का होना है जो सूर्य से आने वाली हानिकारक किरणों को सोख लेती है और पृथ्वी के वातावरण को सुरक्षित रखती है।

क्या है इसके पीछे की वजह

जैसा कि हम जानते हैं समताप मंडल पृथ्वी की सतह से लगभग 20 से 60 किलोमीटर की ऊंचाई तक फैला हुआ है। इसके नीचे क्षोभमंडल है जहां हम मनुष्य सांस लेते हैं। जलवायु से जुड़ी सभी घटनाएं जैसे बारिश, कोहरा, ओलावृष्टि आदि इसी परत के अंदर होती हैं। क्षोभमंडल में बढ़ता कार्बनडाइऑक्साइड का स्तर हवा को और गर्म कर रहा है जिससे वो फैल रही है। यह समताप मंडल की निचली सीमा को ऊपर की ओर धकेल रही है। इसके साथ ही जब कार्बनडाइऑक्साइड समताप मंडल में प्रवेश करती है तो वो अलग तरह से व्यवहार करती है, इसके कारण हवा ठंडी हो जाती है जिससे वो सिकुड़ने लगती है।

इस प्रभाव को समझने के लिए वैज्ञानिकों ने उपग्रहों से प्राप्त आंकड़ों कर कंप्यूटर आधारित मॉडल्स का सहारा लिया है। साथ ही उन्होंने वातावरण में होने वाली रासायनिक अंतःक्रियाओं को भी ध्यान में रखा है, उन्होंने ओजोन परत के समताप मंडल पर पड़ने वाले प्रभाव का भी अध्ययन किया। शोध से यह भी पता चला है कि ओजोन परत में होने वाले परिवर्तन का समताप मंडल के पतले होने पर बहुत कम प्रभाव पड़ा है। इसके लिए मुख्य तौर पर कार्बनडाइऑक्साइड ही जिम्मेवार है।

यदि वातावरण में बढ़ते कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर की बात करें तो वो काफी तेजी से बढ़ रहा है। अप्रैल 2021 में अपने चरम 421.21 पीपीएम पर पहुंच गया था जोकि 36 लाख वर्षों में पहली बार हुआ है। जहां 1959 में कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा का वार्षिक औसत 315.97 पीपीएम था वो मार्च 2021 में बढ़कर 417.64 पार्टस प्रति मिलियन (पीपीएम) रिकॉर्ड किया गया था। जो स्पष्ट तौर पर वातावरण में इसके तेजी से बढ़ते स्तर को दिखाता है।

वैज्ञानिकों की मानें तो इस परत के सिकुड़ने का असर उपग्रहों, जीपीएस और रेडियो संचार को प्रभावित कर सकता है। यह पहली बार नहीं है जब इस बात की जानकारी सामने आई है कि मनुष्यों का बढ़ता हस्तक्षेप पृथ्वी के संतुलन को बिगाड़ रहा है।

इससे पहले अप्रैल में जर्नल जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में छपे एक शोध से पता चला था कि उत्सर्जन और बढ़ते तापमान के चलते अपनी धुरी पर पृथ्वी का झुकाव और बढ़ता जा रहा है। जिसके लिए तापमान में हो रही वृद्धि के कारण ग्लेशियरों में जमा करोड़ों टन बर्फ के पिघलने को जिम्मेवार माना था। यह शोध स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि पृथ्वी पर जो संतुलन की स्थिति बनी हुई है, उसमें बढ़ते इंसानी हस्तक्षेप के चलते बदलाव सामने आने लगे हैं।

जिसका असर कई रूपों में हमारे जीवन पर भी पड़ रहा है। हालांकि वो असर अभी भी उस सीमा के भीतर ही हैं, जिसे बदला जा सकता है, पर एक बार यदि समय हमारे हाथ से निकल गया तो हम उसे दोबारा ठीक नहीं कर पाएंगें क्योंकि यदि एक बार पृथ्वी अपने टिप्पिंग पॉइंट्स पर पहुंच गई तो उसके विनाशकारी परिणामों को रोकना लगभग नामुमकिन हो जाएगा।  

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