भविष्य में पानी की उपलब्धता में होने वाले बदलावों से दुनिया भर में ताजे पानी, खाद्य सुरक्षा और प्राकृतिक पारिस्थितिकी प्रणालियों की स्थिरता के लिए बड़ी चुनौतियां आने वाली हैं। वर्षा और वाष्पीकरण में परिवर्तन विशेष रूप से सूखी जमीन (ड्राईलैंड) के पारिस्थितिकी तंत्र के लिए महत्वपूर्ण है, जिसमें वनस्पति का विकास और इसके नष्ट होने की दर काफी हद तक जल की उपलब्धता पर निर्भर करते हैं। ग्लोबल वार्मिंग से वैश्विक जल चक्र तेज होने की उम्मीद है, लेकिन सतह के पानी की उपलब्धता में वाष्पीकरण के कारण बदलाव होगा।
ग्लोबल वार्मिंग से सतही जल की उपलब्धता बदल जाती है, नम क्षेत्रों में वर्षा से वाष्पीकरण द्वारा उत्पन्न ताजे पानी के संसाधनों में वृद्धि होगी और शुष्क क्षेत्रों में पानी की उपलब्धता घटेगी। यह अपेक्षा मुख्य रूप से वायुमंडलीय थर्मोडायनामिक प्रक्रियाओं पर आधारित है। जैसे ही हवा का तापमान बढ़ता है, समुद्र और भूमि से हवा में अधिक पानी वाष्पित हो जाता है। क्योंकि गर्म हवा शुष्क हवा की तुलना में अधिक जलवाष्प धारण कर सकती है, पानी की उपलब्धता के मौजूदा पैटर्न को बढ़ाने के लिए एक अधिक नमी वाले वातावरण की आवश्यकता होती है, जिससे ग्लोबल वार्मिंग की वजह से सूखे क्षेत्र और सूखे होतेे जाएंगे और नमी वाली जगह और नम हो जाएगी।
कोलंबिया के अध्ययनकरताओं में इंजीनियरिंग टीम के अर्थ इंस्टीट्यूट से जुड़े पियरे जेंटाइन, मौरिस इविंग और पृथ्वी और पर्यावरण इंजीनियरिंग के प्रोफेसर जे. लामर वर्ज़ेल शामिल थे। टीम ने नम क्षेत्रों से जुड़े जलवायु मॉडल के पूर्वानुमान के बारे में पता लगाया, जिसमें सूखा क्षेत्र और अधिक सूखा हो जाता है। शोधकर्ताओं ने पता लगाया कि उष्णकटिबंधीय और समशीतोष्ण क्षेत्रों में 0.65 से कम सूखेपन का इंडेक्स था, जबकि उनके द्वारा अधिक उत्सर्जन वाले ग्लोबल वार्मिंग परिदृश्य का उपयोग किया गया।
नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित इस नए अध्ययन में इन पूर्वानुमानों में लंबे समय तक मिट्टी की नमी के बदलाव और वातावरण के महत्व को दर्शाया है। शोधकर्ताओं ने वायुमंडलीय परिसंचरण और नमी के एक जगह से दूसरी जगह तक पहुंचने के लंबे समय तक जांज की। मिट्टी में नमी की पहचान की, साथ ही बताया कि मिट्टी की नमी की कमी सूखे के दौर से भविष्य में पानी की कमी की पुष्टि करता है।
झोउ कहते हैं कि ये प्रतिक्रिया लंबे समय तक सतह के पानी में परिवर्तनों की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जैसा कि मिट्टी में अलग-अलग तरह की नमी पानी की उपलब्धता को प्रभावित करती है, यह कमी आंशिक रूप से अधिक और कम हाइड्रोक्लिमेटिक घटनाओं, जैसे कि सूखा और बाढ़ और इनकी आवृत्तियों में वृद्धि को कम कर सकती है।
टीम ने अध्ययन के लिए विकसित एक नए सांख्यिकीय दृष्टिकोण के साथ एक अनोखे मॉडलों वाली भूमि-वायुमंडल जोड़े का प्रयोग को एक साथ जोड़ा। इसके बाद उन्होंने भविष्य में पानी की उपलब्धता में सूखे की स्थिति में मिट्टी की नमी की महत्वपूर्ण भूमिका की जांच करने के लिए एक एल्गोरिदम लागू किया और भविष्य में पानी की उपलब्धता में परिवर्तन करने वाले थर्मोडायनामिक में होने वाले बदलावों की जांच की।
उन्होंने पाया कि ग्लोबल वार्मिंग के मुकाबले महासागरों के ऊपर शुष्क क्षेत्रों में सतही जल की उपलब्धता में बहुत अधिक गिरावट आएगी, लेकिन शुष्क क्षेत्रों में केवल मामूली कमी होगी। झोउ ने बताया कि यह घटना भूमि-वायुमंडल प्रक्रियाओं से जुड़ी है। उन्होंने बताया कि शुष्क क्षेत्रों में मिट्टी की नमी में जलवायु परिवर्तन के कारण पर्याप्त गिरावट आने का अनुमान है। मिट्टी की नमी में परिवर्तन वायुमंडलीय प्रक्रियाओं और पानी के चक्र को और प्रभावित करेगा।
ग्लोबल वार्मिंग से पानी की उपलब्धता कम होने के आसार हैं और इसलिए शुष्क क्षेत्रों में मिट्टी की नमी बढ़ जाती है। लेकिन इस नए अध्ययन में पाया गया कि मिट्टी की नमी का सूखना वास्तव में पानी की उपलब्धता पर नकारात्मक प्रभाव डालता है, मिट्टी की नमी में कमी से वाष्पीकरण और इससे ठंडा कम हो जाता है और नमी वाले क्षेत्रों और महासागर के सापेक्ष शुष्क क्षेत्रों में सतह की गर्मी बढ़ जाती है। भूमि और महासागर के तापमान बढ़ने से समुद्र और भूमि के बीच हवा के दबाव में काफी अंतर पैदा होता है, जिससे समुद्र से भूमि पर अधिक हवा बहने से जल वाष्प एक जगह से दूसरी जगह जाता है।
जेंटाइन कहते हैं हमारे अध्ययन से पता चलता है कि मिट्टी की नमी के बारे में पूर्वानुमान और संबंधित वातावरण की प्रतिक्रियाएं अत्यधिक परिवर्तनशील और मॉडल पर निर्भर हैं। यह अध्ययन भविष्य में मिट्टी की नमी के पूर्वानुमानों में सुधार लाने और वातावरण की प्रतिक्रियाओं की सटीक जानकारी देता है, जो महत्वपूर्ण है। जल उपलब्धता और बेहतर जल संसाधन प्रबंधन के लिए विश्वसनीय पूर्वानुमान लगाने में यह कामयाब है।