जलवायु परिवर्तन के चलते समय से पहले और कमजोर पैदा हो रही हैं शार्क मछलियां

तापमान बढ़ने से शार्क भ्रूण का विकास बहुत तेजी से हो रहा है जिस वजह से शार्क के बच्चे समय से पहले ही जन्म ले रहे हैं
brownbanded bamboo shark (Chiloscyllium punctatum) at Manila Ocean Park
brownbanded bamboo shark (Chiloscyllium punctatum) at Manila Ocean Park
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जलवायु परिवर्तन न केवल इंसानों पर असर डाल रहा है बल्कि साथ ही यह अन्य जीवों को भी प्रभावित कर रहा है। ऐसा ही एक एक उदाहरण हाल ही में नेचर साइंटिफिक रिपोर्ट जर्नल में छपे एक शोध में सामने आया है। इस शोध के अनुसार जैसे-जैसे समुद्र का तापमान बढ़ रहा है उसका असर यहां रहने वाले जीवों पर पड़ रहा है।

इस बदलाव के चलते शार्क मछलियों के बच्चे समय से पहले ही जन्म ले रहे हैं साथ ही उनमें पोषण की कमी भी दर्ज की गई है। जिस वजह से उनका जिन्दा रहना और मुश्किल होता जा रहा है। इसका असर उनके आकार पर भी पड़ रहा है जो पहले से घट गया है।

इसे समझने के लिए ऑस्ट्रेलियाई शोधकर्ताओं की टीम ने एपॉलेट शार्क के जन्म, वृद्धि, विकास और उसके शारीरिक प्रदर्शन पर बढ़ते तापमान के प्रभावों का अध्ययन किया है। एपॉलेट शार्क, शार्क मछली की एक ऐसी प्रजाति है जो अंडे देती है और केवल ग्रेट बैरियर रीफ में ही पाई जाती है जो पहले से ही तापमान बढ़ने और अपने कोरल्स की वजह से चर्चा में रहा है।

गौरतलब है कि दुनिया भर में शार्क की 500 से भी ज्यादा प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें से कुछ ही अंडे देती है, जिनमें एपॉलेट शार्क भी एक है। यह मछलियां पहले ही समुद्र पर बढ़ते इंसानी प्रभाव के चलते खतरे में है ऐसे में जलवायु परिवर्तन इस खतरे को और बढ़ा रहा है। 

बढ़ते तापमान के हिसाब से अपने को नहीं ढाल पा रही हैं शार्क

यदि शार्क के विकास की बात करें तो जैसे-जैसे समुद्र का पानी गर्म होता है, वैसे-वैसे शार्क का विकास भी होता है, लेकिन जलवायु परिवर्तन की वजह से यह तापमान जिस तेजी से बढ़ रहा है। यह मछलिया अपने आप को उसके अनुकूल नहीं ढाल पा रही हैं।

इस शोध की प्रमुख शोधकर्ता कैरोलिन व्हीलर ने बताया कि इस समझने के लिए हमने 31 डिग्री सेल्सियस तापमान तक पानी में शार्क भ्रूणों का परीक्षण किया है। उनके अनुसार तापमान बढ़ने से भ्रूण का विकास बहुत तेजी से हो रहा था, जो शार्क के लिए एक बड़ी समस्या पैदा कर सकता है। हमने पाया कि तापमान बढ़ने के साथ भ्रूण बड़ी तेजी से बढ़े रहे हैं और अपने विकास के लिए उन्होंने अंडे में मौजूद योक को बहुत जल्दी ही इस्तेमाल कर लिया, चूंकि वो अंडे में थे ऐसे में वो योक ही उनके भोजन का एकमात्र स्रोत था।

इसके चलते बच्चों को समय से पहले ही अंडे से बाहर आना पड़ा। इस वजह से शिशु शार्क न केवल आकार में छोटे थे, साथ ही उनमें ऊर्जा की भी कमी थी। ऐसे में उन्हें तुरंत भोजन की जरुरत थी। चूंकि अंडे देने के बाद शार्क उनकी परवाह नहीं करती ऐसे में उन्हें अपने बलबूते पर ही अगले चार महीनों तक जिन्दा रहना पड़ता है। पर जन्म के समय ऊर्जा की कमी उनके लिए घातक सिद्ध हो सकती है।

हालांकि इस शोध में वैज्ञानिकों ने केवल एपॉलेट शार्क पर समुद्र के बढ़ते तापमान और उसके प्रभाव की जांच की है। पर उनका मानना है कि इसके नतीजे बहुत महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि शार्क की यह प्रजाति अन्य की तुलना में बदलते तापमान का सामना कहीं बेहतर कर सकती है। यदि उनपर इसका इतना असर पड़ रहा है तो वो अन्य प्रजातियों के लिए भी घातक हो सकता है।

इस शोध से जुड़ी शोधकर्ता डॉ रोमर ने बताया कि, "एपॉलेट शार्क को बदलते तापमान का सामना करने के लिए जाना जाता है यहां तक कि वो  समुद्र में बढ़ते एसिडीकरण को भी सह लेती हैं। पर यदि यह प्रजाति ही बढ़ते तापमान का सामना नहीं कर पा रही है तो अन्य प्रजातियों का क्या होगा?"

दुनिया भर में शार्क को उसके हमलावार स्वाभाव के लिए जाना जाता है पर इसके साथ ही वो समुद्र के पारिस्थितिकी तंत्र के लिए बहुत जरुरी भी होती हैं। वह एक महत्वपूर्ण समुद्री शिकारी भी होती है जो समुद्र के इकोसिस्टम को स्वस्थ बनाए रखती हैं। इन शिकारियों के बिना पूरा इकोसिस्टम ही नष्ट हो सकता है। ऐसे में इन जीवों को बचाना भी जरुरी है।

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