अंटार्कटिका में तैरती बर्फ के शेल्फ के खतरे का वैज्ञानिकों ने लगाया पता

शोधकर्ताओं ने लार्सन सी आइस शेल्फ में सैकड़ों दरारों का आकलन किया ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि कौन से सबसे कमजोर हैं जो ढह सकते हैं।
फोटो : विकिमीडिया कॉमन्स
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अंटार्कटिका की स्थिरता और समुद्र के स्तर में वृद्धि इसके बर्फ के शेल्फ के विकास से निर्धारित होती है। हाल के दशकों में बर्फ के शेल्फ में बड़े बदलाव हुए हैं, जिनमें से कई ढह गए हैं। अनुमान यह है कि ये घटनाएं हाइड्रो फ्रैक्चरिंग और असामान्य लहरों के बल के कारण होती हैं। ग्लेशियोलॉजिस्ट अब इस बात का पता लगा रहे है कि यहां कितने हिमखंडों में दरारें पड़ी है और वे ढहने के कगार पर हैं।

ग्लेशियोलॉजिस्ट ने जुलाई 2017 में अंटार्कटिका के लार्सन सी बर्फ की चादर के टूटने से 5,133 वर्ग किलोमीटर के आकार के हिमखंड ए68 में हो रही हलचल के बारे में पता लगाया है। ताकि बर्फ के पतले होने के कारणों की खोज की जा सके। हवा में उड़ने वाली बर्फ, हिमखंड के टुकड़े और जमे हुए समुद्री जल का मिश्रण जो आमतौर पर दरारों को भरने का काम करता है। शोध में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, इरविन और नासा की जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी की टीम शामिल है।

शोधकर्ताओं ने बताया कि उनके मॉडलिंग के द्वारा किए गए अध्ययनों से पता चला है कि बर्फ के शेल्फ के नष्ट होने का एक प्रमुख कारण चादर का पतला होना है। बर्फ की चादर के टूटे हुए बड़े-बड़े टुकड़ों (शेल्फ) के नीचे समुद्र के पानी के बहने और ऊपर से विकिरण से बढ़ती गर्मी से दशकों से धीरे-धीरे बर्फ की चादर को पिघला रहे हैं।

चूंकि बर्फ के शेल्फ को समुद्र में तेजी से बहने वाले जमीन के ग्लेशियरों को रोकने के लिए जाना जाता है, दरार संबंधी या रिफ्ट डायनामिक्स के बारे में यह नया ज्ञान जलवायु परिवर्तन और बर्फ के शेल्फ की स्थिरता के बीच पहले से कम आंके गए संबंध को उजागर करता है।

इरविन में यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया (यूसीआई) के पृथ्वी प्रणाली विज्ञान प्रोफेसर सह-अध्ययनकर्ता एरिक रिग्नॉट ने कहा, बर्फ के मिश्रण के पतले होने से तैरती हुई बर्फ की शेल्फ के बड़े टुकड़ों को एक साथ चिपका देता है। यह एक और तरीका है जिससे बदलती जलवायु में अंटार्कटिका की बर्फ की शेल्फ के तेजी से पीछे हटने का कारण हो सकता है।

रिग्नॉट ने कहा कि इस बात को ध्यान में रखते हुए, हमें ध्रुवीय बर्फ के नुकसान से समुद्र के स्तर में वृद्धि के समय और सीमा के बारे में अपने अनुमानों पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता हो सकती है। यानी यह जल्द ही आ सकता है और अपेक्षा से अधिक बड़ा धमाका कर सकता है।

नासा और यूरोपीय उपग्रहों के आंकड़ों का उपयोग करते हुए, शोधकर्ताओं ने लार्सन सी आइस शेल्फ में सैकड़ों दरारों का आकलन किया ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि कौन से सबसे कमजोर हैं जो टूट सकते हैं। उन्होंने गहन अध्ययन के लिए ऊपर से नीचे की 11 दरारों का चयन किया, यह देखने के लिए मॉडलिंग की कि किन तीन परिदृश्यों में उनके टूटने की सबसे अधिक आशंका है। पहला यदि बर्फ की शेल्फ पिघलने के कारण पतली हो गई है, दूसरा यदि बर्फ का मिश्रण पतला हो गया है या तीसरा यदि दोनों बर्फ की शेल्फ और मिश्रण पतला हो गया है।

नासा जेपीएल अनुसंधान वैज्ञानिक और समूह पर्यवेक्षक एरिक लारौर ने कहा बहुत से लोगों ने सहज रूप से सोचा होगा कि यदि आप बर्फ की शेल्फ को पतला करते हैं, तो आप इसे और अधिक नाजुक बनाने जा रहे हैं और यह बस टूटने ही वाला है।

इसके बजाय, मॉडल ने दिखाया कि मिश्रण में बिना किसी बदलाव के एक पतली बर्फ की शेल्फ ने दरारों को ठीक करने का काम किया। दरारें औसत वार्षिक चौड़ाई दर 79 से 22 मीटर (259 से 72 फीट) तक कम हो गई। बर्फ की शेल्फ और मिश्रण दोनों के पतला होने से भी कुछ हद तक दरार कम हो गई। लेकिन जब मॉडलिंग केवल मिश्रण के पतले होने की थी, तो वैज्ञानिकों ने 76 से 112 मीटर (249 से 367 फीट) की औसत वार्षिक दर से दरारों को काफी चौड़ा पाया।

लारौर ने बताया कि अंतर पदार्थों के विभिन्न स्वरूपों को दर्शाता है। मिश्रण या मेलेंज शुरू करने के लिए बर्फ की तुलना में पतला होता है। जब मिश्रण केवल 10 या 15 मीटर मोटा होता है, तो यह पानी के समान होता है और बर्फ की शेल्फ में दरारें पड़ने लगती हैं। सर्दियों में भी, गर्म समुद्र का पानी नीचे से मिश्रण तक पहुंच सकता है क्योंकि दरार एक बर्फ की शेल्फ की पूरी गहराई तक फैली हुई होती है।

नासा जेपीएल के वैज्ञानिक रिग्नॉट ने कहा अंटार्कटिका प्रायद्वीप में बड़े हिमखंड के टूटने की घटनाओं में वृद्धि के पीछे प्रचलित सिद्धांत हाइड्रो फ्रेक्चरिंग रहा है। जिसमें सतह पर पिघले हुआ पानी बर्फ के शेल्फ में पड़ी दरारों के माध्यम से रिसने लगता हैं, जो पानी के फिर से जमने पर फैलते हैं। लेकिन वह सिद्धांत यह समझाने में विफल रहता है कि अंटार्कटिक सर्दियों में लार्सन सी आइस शेल्फ से हिमखंड ए68 कैसे टूट सकता है जबकि वहां कोई पिघला हुआ पानी मौजूद नहीं था।  

उन्होंने कहा कि उन्होंने और क्रायोस्फीयर का अध्ययन करने वाले अन्य लोगों ने अंटार्कटिक प्रायद्वीप पर बर्फ के शेल्फ के ढहने को देखा है, जो दशकों पहले शुरू हुए एक हिमखंड के पीछे हटने की घटना से उपजा है। यह शोध प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में प्रकाशित हुआ है।

रिग्नॉट ने कहा हमने आखिरकार इस बात का खुलासा करना शुरू कर दिया है कि क्यों ये बर्फ की सेल्फ पीछे हटने लगे और इस स्थिति में आ गए, जो हाइड्रो फ्रैक्चरिंग पर कार्रवाई करने से पहले दशकों तक बने रहे। हालांकि बर्फ का पतला होना एकमात्र प्रक्रिया नहीं है जो इसे समझा सकते हैं।       

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