आरके पचौरी: एक पर्यावरण वैज्ञानिक ने क्यों कहा था कि भारत को कार्बन उत्सर्जन का अधिकार है

जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र की संस्था इंटरगर्वमेंटल पैनल ऑफ क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) के पूर्व प्रमुख का 79 वर्ष की उम्र में निधन हो गया।
आरके पचौरी। फोटो साभार- Flickr
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मैं जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र की संस्था इंटरगर्वमेंटल पैनल ऑफ क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) और द एनर्जी एंड रिसोर्स इंस्टीट्यूट (टेरी) के पूर्व प्रमुख आरके पचौरी से जून 2006 में एक साक्षात्कार के सिलसिले में मिला।
हालांकि, उन्होंने मुझे पूर्व में ही बातचीत के मुद्दों के बारे में बताने को कहा था, लेकिन मैंने उन्हें सिर्फ एक ही मुद्दे के बारे में सूचित किया, मेरा सवाल था भारत को क्यों अधिक कार्बन उत्सर्जन का अधिकार है?
हमारे बीच सहमति हुई थी कि हम इसी सवाल के आसपास बने रहेंगे।
जैसे ही मैं उनके दफ्तर में घुसा (वही दफ्तर जो बाद में कई यौन शोषण के आरोपों की वजह से अपना सम्मान खोता रहा), वह कुशल क्षेम पूछने के पहले ही अपनी गंभीर आवाज में बोले, भारत के पास उत्सर्जन बढ़ाने के अलावा कोई और चारा नहीं है। वह बोले, "तो आपको अपने एक सवाल का जवाब मिल गया होगा। क्या हम यहां साक्षात्कार बंद कर सकते हैं?" अगले 40 मिनट तक हमलोग आईपीसीसी के प्रमुख के बड़े बयान के आसपास बातचीत करते रहे।
पचौरी महज एक जलवायु वैज्ञानिक नहीं थे।अपने संदेश के मामले में वह स्पष्ट थे और वैज्ञानिक होने से इतर भाषाई सहजता उनकी पहचान थी।
उन्होंने मुझे कहा कि उत्सर्जन भारत की जरूरत है और हमें विकास के लिए उत्सर्जित करना होगा। अपनी आवाज में और जोर डालते हुए वह कहते हैं कि भारत को कोई भी इस आजादी से वंचित नहीं रख सकता।
लेकिन, उन्होंने संवाद के स्तर और ऊंचा करते हुए कहा कि हमें साथ-साथ जलवायु परिवर्तन और उसके असर को भी ध्यान में रखना होगा।
अगले 20 मिनट में एक पर्यावरण पत्रकार के लिहाज से सबसे जरूरी सुर्खी बनाने लायक बात सामने आ चुकी थी। वो बात थी, "मुझे लगता है कि परमाणु ऊर्जा, ऊर्जा ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन के लिहाज से सबसे साफ ऊर्जा है। परमाणु ऊर्जा में वाकई कोई उत्सर्जन नहीं होता। सीमित विकल्पों को देखते हुए और जलवायु परिवर्तन के खतरे को देखते हुए, परमाणु भारत के लिए ऊर्जा का सबसे गंभीर विकल्प है।”
हमारी बातचीत यहीं रुक गई, क्योंकि इंडियन हैबिटैट सेंटर के बगल में आग लगने की सूचना आई। हमें भवन को खाली करने को कहा गया। लेकिन, मेरे पास सुर्खी थी, और उन्हें बहुत बाद में इसका पछतावा हुआ कि वो अपने पक्ष के समर्थन में और अधिक बात नहीं रख पाए।
पचौरी का देहांत 13 फरवरी 2020 को हुआ। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में वो यौन उत्पीड़न की वजह से अधिकतर खबरों में बने रहे और जिस वजह से उन्हें टेरी के प्रमुख समेत सभी आधिकारिक पदों से हटना पड़ा। उनकी मृत्यु ने उनके एक पर्यावरणविद के रूप में, एक संस्थान निर्माता के रूप में लंबे समय के योगदान और मुख्यधारा के जलवायु परिवर्तन में उनके काम वाली छवि को सामने ला दिया है।
उनके निधन की सूचना देते हुए परिवार ने बयान में कहा,"उनके साहसी नेतृत्व ने जलवायु परिवर्तन को दुनिया में सबसे अधिक दबाव देने वाले मुद्दे के रूप में पहचाने जाने की अनुमति दी और अंतरराष्ट्रीय विचार-विमर्श और कार्यों के एक नए युग का शुभारंभ किया,"
टेरी के डायरेक्टर जनरल अजय माथुर ने कहा, "आज टेरी जो भी है डॉक्टर पचौरी के अथक दृढ़ता के कारण है। उन्होंने इस संस्थान को विकसित करने और इसे स्थिरता के क्षेत्र में एक प्रमुख वैश्विक संगठन बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।"

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