बर्फ से बनी या सबग्लेशियल झीलों की दुनिया की पहली सूची शेफील्ड विश्वविद्यालय की अगुवाई में एक अंतरराष्ट्रीय टीम द्वारा संकलित की गई है। जिससे यह बात का पता लगाया जा सकता है कि झीलें कहां हैं और वे गर्म होती जलवायु में किस तरह बदल रही हैं।
बर्फ से जमी झीलें बर्फ की चादरों या ग्लेशियर वाली घाटी के इलाकों के नीचे बन सकती हैं। वे उस गति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं जिस गति से बर्फ महासागरों में बहती है और जब पहाड़ी क्षेत्रों में भूमि पर होती है। इनसे अचानक निकलने वाले पानी के बहाव और बाढ़ के कारण भूस्खलन का खतरा बना रहता है। जिसके कारण उन इलाकों में रहने वाली आबादी के लिए एक बड़ा खतरा पैदा हो सकता है।
ऐसा माना जाता है कि दुनिया भर में हजारों बर्फ से बनी झीलें हैं, लेकिन अब तक, उनका विवरण सामूहिक रूप से नहीं रखा गया था और झीलों के आकार, स्थिरता और विशेषताओं पर कोई स्पष्ट तस्वीर नहीं थी।
शेफील्ड विश्वविद्यालय के भूगोल विभाग के डॉ. स्टीफन लिविंगस्टोन के नेतृत्व में शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने अब अंटार्कटिका, ग्रीनलैंड और आइसलैंड में लगभग 800 झीलों के साथ-साथ आल्प्स जैसे हिमनद घाटी क्षेत्रों के आंकड़ों को सूचीबद्ध किया है।
यह सूची झीलों की वर्तमान स्थिति और स्थान के बारे में जानकारी प्रदान करती है, जिससे वैज्ञानिकों को जलवायु परिवर्तन के रूप में भविष्य में किसी भी बदलाव का आकलन करने में मदद मिलती है।
अध्ययन में 80 फीसदी झीलें स्थिर पाई गई, जिसका अर्थ है कि उनमें से पानी का निष्कासन का कोई रास्ता नहीं है या इनमें संतुलित प्रवाह नहीं है। शोधकर्ताओं ने यह भी देखा कि 20 फीसदी झीलें सक्रिय हैं। इसका मतलब है कि वे अचानक और विनाशकारी रूप ले सकती हैं, जिससे इंसानी आबादी और बुनियादी ढांचे के लिए खतरा पैदा हो सकता है।
भारत में बर्फ की झीलें
भारत में जल शक्ति मंत्रालय के केंद्रीय जल आयोग के मुताबिक हिमालयी इलाके के जलग्रहण क्षेत्र में 2028 हिमनद झीलें और जल निकाय हैं जो देश भर में बहने वाली नदियों में योगदान देते हैं। जबकि ब्रह्मपुत्र नदी में हिमनद झीलों की अधिकतम संख्या है, गंगा नदी अपने प्रवाह में 178 ऐसी झीलें बनाती है।
इन हिमनद निकायों की बारीकी से निगरानी करने की आवश्यकता पर, आयोग ने कहा, इन झीलों में निचले इलाकों में बाढ़ का खतरा है, जिससे बहुत कम समय में बड़ी मात्रा में पानी बहने के कारण विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं। अक्सर, ऐसी स्थितियों से उत्पन्न होने वाले परिणाम अत्यधिक अप्रत्याशित होते हैं। मुख्य रूप से वर्षा की तीव्रता, भूस्खलन के स्थान, अवरुद्ध मात्रा और क्षेत्र, और झीलों की भौतिक स्थितियों के बारे में पर्याप्त आंकड़ों की कमी के कारण खतरा और भी बढ़ जाता है।
भारत के उत्तराखंड राज्य में बर्फ की झील के फटने की घटना
7 फरवरी, 2021 को उत्तराखंड में एक बड़ी त्रासदी हुई, जब राज्य के चमोली जिले में एक बर्फ की झील फट गई थी। नंदा देवी ग्लेशियर का एक बड़ा टुकड़ा फरवरी की सर्द सुबह में टूट गया और एक नदी में गिर गया, जिससे धौली गंगा, ऋषि गंगा और अलकनंदा नदियों में हिमस्खलन और हिमनदों ने बाढ़ के प्रकोप को बढ़ा दिया था। बाढ़ के बाद जान-माल का भारी नुकसान हुआ। यह 2013 के केदारनाथ त्रासदी के बाद हिमालयी राज्य के लिए दूसरा सबसे बड़ा झटका था।
वर्तमान में उपलब्ध भूभौतिकीय आंकड़ों का मतलब है कि सूची में शामिल अधिकांश झीलें अंटार्कटिका में हैं। शोधकर्ताओं ने भविष्य के अध्ययन के लिए घाटी के ग्लेशियरों, बर्फ और ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर पर ध्यान केंद्रित करने का आह्वान किया है। ताकि कमजोर क्षेत्रों में ग्लेशियरों के नीचे जल भंडारण और जल निकासी की बेहतर समझ हासिल की जा सके।
शेफील्ड विश्वविद्यालय के भूगोल विभाग के इन्वेंट्री के प्रमुख डॉ. स्टीफन लिविंगस्टोन ने कहा कि रेडियो-इको साउंडिंग, स्वाथ रडार तकनीक, सैटेलाइट अल्टीमेट्री और उच्च-रिज़ॉल्यूशन टाइम-स्टैम्प्ड डिजिटल सतह मॉडल के नए प्रयोगों ने बर्फ की झीलों का पता लगाया गया है।
हमारी सूची शोधकर्ताओं को विभिन्न क्षेत्रों में बर्फ की झीलों के वातावरण और उनकी गतिशीलता का मूल्यांकन करने में सक्षम बनाएगी। चूंकि बर्फ की झीलों के ऊपर की बर्फ जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करती है, जो झीलें कभी स्थिर थीं वे अस्थिर हो सकती हैं।
अध्ययनकर्ताओं ने बताया कि अब हमें इस बात की बेहतर समझ है कि वर्तमान में कितनी झीलें स्थिर हैं। हम झीलों की निगरानी कर सकते हैं, साथ ही इस बात का पूर्वानुमान लगा सकते हैं कि यह समय के साथ कैसे बदलेंगी। ये परिवर्तन न केवल पानी और बर्फ के प्रवाह के लिए महत्वपूर्ण हैं, बल्कि झीलों में मौजूद जीवों के लिए भी महत्वपूर्ण हैं।
नॉर्थंब्रिया विश्वविद्यालय के भूगोल और पर्यावरण विज्ञान विभाग के डॉ. केट विंटर ने कहा बर्फ की झीलें आकर्षक होती हैं। वे ग्लेशियर की सतह से पिघले पानी के कारण आधार तक जा सकती हैं। खोखले क्षेत्रों या गुहाओं में हैं, या वे नीचे की धरती से भू-तापीय तापन, ऊपर की बर्फ के गर्म होने और उसके पिघलने के कारण बन सकते हैं।
झीलों के ऊपर की ओर मोटी बर्फ की एक परत द्वारा इन्हें संरक्षित किया जाता है जो इसे ऊपर की ठंडी हवा से बचाती है, उन्हें फिर से जमने से रोकती है और लाखों वर्षों तक ऐसे ही रह सकती है। झीलें अनोखे जीवन रूपों को आश्रय देती है या वे घंटे भर के समय में भर और खली हो सकती हैं।
ये झीलें ग्लेशियर या बर्फ की चादर के आधार को चिकना कर सकती हैं और बर्फ के प्रवाह को तेज कर सकती हैं, जिससे वैश्विक समुद्र के स्तर में वृद्धि हो सकती है। आल्प्स जैसे आबादी वाले क्षेत्रों में, बर्फ की झील के पानी की अचानक निकलने से जीवन और बुनियादी ढांचे को भारी नुकसान हो सकता है।
इसलिए यह अध्ययन करना महत्वपूर्ण है कि बर्फ से जमी झीलें कहां हैं, उनमें कितना पानी है, वे कितने स्थिर या सक्रिय हो सकते हैं और वे समय के साथ कैसे बदल सकते हैं। ताकि हम इस बारे में अधिक जान सकें कि वे क्यों बनते हैं और उनका स्थानीय आधार पर क्या प्रभाव हो सकता है।
सूची में सूचीबद्ध 773 झीलों में 59 शामिल हैं जिन्हें अंटार्कटिका में हाल ही में पहचाना गया है, जिनमें से कुछ की लंबाई छह मील तक है और ये 3,000 मीटर बर्फ के नीचे हैं। यह शोध नेचर रिव्यू अर्थ एंड एनवायरनमेंट में प्रकाशित हुआ है।