ओजोन छिद्र के आकार में रिकॉर्ड कमी, नासा ने जारी किए आंकड़े

खोज के तीन दशक बाद अंटार्कटिका के ऊपर ओजोन छिद्र का आकार सबसे कम रिकॉर्ड किया गया है, वैज्ञानिकों ने इस पर खुशी जाहिर की है
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नासा और एनओएए वैज्ञानिकों ने इस बात की पुष्टि कर दी है कि अंटार्कटिका के ऊपरी वायुमंडल में मौसम की असामान्य घटनाओं के चलते सितंबर और अक्टूबर महीने में ओजोन की कमी को नाटकीय रूप से सीमित कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप 1982 के बाद से पहली बार ओजोन छिद्र के आकार में इतनी कमी देखी गयी है।

नासा और एनओएए के उपग्रहों से मिले आंकड़ों के अनुसार 8 सितम्बर को ओजोन छिद्र अपने चरम आकार 1 करोड़ 64 लाख वर्ग किलोमीटर तक पहुंच गया था। इसके बाद सितंबर और अक्टूबर माह के शेष दिनों में इसका आकार 1 करोड़ वर्ग किलोमीटर से भी छोटा हो गया। आमतौर पर सामान्य मौसम की स्थिति में ओजोन होल सितंबर के अंत या अक्टूबर की शुरुआत में लगभग 2 करोड़ 72 लाख वर्ग किलोमीटर के अधिकतम क्षेत्र तक बढ़ता है, लेकिन 2006 में यह बढ़कर लगभग 2 करोड़ 75 लाख वर्ग किलोमीटर तक फैल गया था। शोधकर्ताओं ने इस वर्ष इसके छोटे आकार के लिए स्ट्रैटोस्फियर (समताप मंडल) में अचानक हो रही वार्मिंग की घटनाओं को जिम्मेदार माना है, जिन्होंने इसके घटने की प्रक्रिया को प्रभावित कर दिया है।

नासा में अर्थ साइंस के मुख्य वैज्ञानिक पॉल न्यूमैन ने अपने बयान में कहा, "हालांकि दक्षिणी गोलार्ध जोन के लिए यह बहुत अच्छी खबर है पर यह जानना बहुत जरुरी है कि इस वर्ष हम जो यह कमी देख रहे हैं, वह समताप मंडल में तापमान के बढ़ने के कारण है। यह इस बात का संकेत नहीं है कि वायुमंडलीय में मौजूद ओजोन परत को हो चुकी क्षति अचानक और तेजी से भर रही है।"

यूनिवर्सिटी स्पेस रिसर्च एसोसिएशन में एटमोस्फियरिक साइंटिस्ट और नासा गोडार्ड में काम कर रही सुसान स्ट्रैन ने बताया कि पिछले 40 सालों में यह तीसरी मौका है जब वार्मिंग के चलते ओजोन छिद्र का बढ़ना रुक गया है। उन्होंने बताया कि इससे पहले सितंबर 1988 और 2002 में भी स्ट्रैटोस्फियर में होने वाली वार्मिंग के चलते ओजोन छिद्र का आकार कम हो गया था। साथ ही शोधकर्ताओं ने साफ कर दिया कि समताप मंडल में होने वाली वार्मिंग की घटनाएं जलवायु परिवर्तन से जुड़ी नहीं हैं।

गौरतलब है कि ओजोन छिद्र के इस खतरे को देखते हुए 1987 में मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के तहत लगभग 200 देशों ने ओजोन को नुकसान पहुंचाने वाले सबसे अधिक हानिकारक केमिकल्स पर प्रतिबंध लगाने को लेकर अपनी सहमति व्यक्त की थी।

हालांकि अभी हाल ही में किये गए शोध से पता चला है कि विश्व में ओजोन परत को नुकसान पहुंचाने वाले केमिकल क्लोरोफ्लोरोकार्बन के उत्सर्जन के लिए चीन मुख्य रूप से जिम्मेदार है। वैज्ञानिकों ने उम्मीद जताई है कि शायद 2070 तक ओजोन परत वापस अपने 1980 के स्तर तक ठीक हो जाये।  हालांकि रेफ्रिजरेटर, एयरोसोल कैन, एयर कंडीशनर एवं अन्य उपकरणों से जिस तेजी से इनका उत्सर्जन हो रहा है, उसको देखते हुए इस बात की सम्भावना बहुत कम ही है ।

क्या है ओजोन होल

ओजोन पृथ्वी के वायुमण्डल की एक मोटी परत है जोकि सूर्य से आने वाली हानिकारक पैराबैंगनी किरणों के 99 फीसदी भाग को अवशोषित कर लेती है और हमें इसके खतरे से सुरक्षित रखती है। आधुनिक सुख सुविधाओं के साधनों जैसे एयर कंडीशनर, फ्रिज, भारी वाहनों और कारखानों से निकली हानिकारक गैसों जैसे क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी) आदि के चलते इस परत में एक छेद हो गया था । जिसे ओजोन होल के नाम से जाना जाता है। यह छेद अंटार्कटिका के ऊपर है। वैज्ञानिकों को 1982 में सबसे पहले इसके बारे में पता लगा था, तब से इसपर लगातार निगरानी रखी जा रही है।

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