2021 के पहले माह में क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स 2021 जारी हुआ। जिसमें बताय गया कि 2000 से 2019 के बीच 11,000 से भी ज्यादा जलवायु सम्बन्धी आपदाएं आई, जिसके चलते 4.75 लाख लोगों की मौत हो गई। भारत के लिए यह रिपोर्ट बेहद महत्व रखती है।
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जलवायु परिवर्तन का बड़ा असर हिमालयी राज्यों में देखने को मिल रहा है। अलग-अलग रिपोर्ट्स बताती हैं कि दुनिया के दूसरे इलाकों के मुकाबले हिमालयी क्षेत्र अधिक तेजी से गर्म हो रहे हैं।
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सात फरवरी को उत्तराखंड के चमोली में एक बड़ी घटना हुई। एक ग्लेशियर के टूटने के कारण आई बाढ़ की वजह से 200 से अधिक लोगों की जान चली गई। हालांकि इस घटना को सीधे तौर पर जलवायु परिवर्तन से नहीं जोड़ा गया, लेकिन सर्दियों में एवलांच की घटना को सामान्य नहीं माना गया।
मई 2021 में एक बड़ी घटना घटी, जो जलवायु परिवर्तन का एक बड़ा उदाहरण बनी। अंटार्कटिका में ग्लेशियर से टूट कर दुनिया का सबसे बड़ा हिमखंड अलग हुआ, जिसका कुल क्षेत्रफल 4,320 वर्ग किलोमीटर का था।
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भारत के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय की ओर से जारी रिपोर्ट क्लाइमेट वलनरेबिलिटी एसेसमेंट फॉर एडॉप्टेशन फ्रेमवर्क में सर्वाधिक जलवायु जोखिम वाले राज्यों और जिलों की पहचान की गई। भारत के राज्यों के लिए यह रिपोर्ट काफी मायने रखती है।
9 अगस्त 2021को जलवायु परिवर्तन पर काम करने वाली अंतर्राष्ट्रीय संस्था आईपीसीसी की रिपोर्ट में आई, जिसमें साफ तौर पर जलवायु परिवर्तन के लिए इंसानी गतिविधियों को जिम्मेवार माना गया।
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यदि किसी का जन्म फरवरी 1986 में हुआ है, तो उसने वास्तव में कभी भी सामान्य तापमान वाले महीने का अनुभव ही नहीं किया। यह रिपोर्ट भी बेहद चौंकाने वाली थी।
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आर्कटिक में आए रहे बदलावों को जलवायु परिवर्तन का सबसे बड़ा उदाहरण माना जाता है। यहां एक बार अधिकतम तापमान 38 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था। क्या थे इसके मायने
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निर्धारित समय से अधिक दिन तक चले कॉप-26 से वे उम्मीदें पूरी नहीं हो सकीं, जिसकी आस में विश्व इसकी ओर ताक रहा था। ऐसे में यक्ष प्रश्न है कि अब तेजी से गर्म होती पृथ्वी को आखिर राहत कहां से मिलेगी
कॉप-26 के उत्तरार्द्ध में जब लगभग 200 देशों के प्रतिनिधियों ने ग्लास्गो समझौते पर हस्ताक्षर किये, तो कांफ्रेंस आफ द पार्टीज (कॉप-26) के अध्यक्ष आलोक शर्मा को अपनी आंखों में भर आये आंसुओं को रोकने के लिए संघर्ष करना पड़ा।
समझौते के आखिरी चरण में भारत के केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेन्द्र यादव द्वारा हस्तक्षेप करते हुए कोयले के इस्तेमाल को लेकर समझौते में “धीरे-धीरे खत्म करने” की जगह “धीरे-धीरे कम करने” के इस्तेमाल पर जोर देने पर उनकी प्रतिक्रिया वार्ता के बेपटरी होने जैसी थी।
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कॉप-26 में भारत ने जलवायु परिवर्तन से लड़ने की जो प्रतिबद्धता जताई है, उसने बड़े उत्सर्जकों खासकर चीन को उत्सर्जन में कमी के लिए मजबूर कर दिया है। डाउन टू अर्थ की संपादक सुनीता नारायण का यह आलेख पढने के लिए यहां क्लिक करें