राजस्थान में स्थानीय स्तर पर पहली बार दिखा जलवायु परिवर्तन का असर

राजस्थान पिछले डेढ़ दशक से अतिशय मौसम का शिकार होता रहा है। इस संबंध में राजस्थान राज्य प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के पूर्व मेंबर सचिव डीएन पांडे से डाउन टू अर्थ ने बातचीत की।
Photo : Samrat Mukharjee
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राजस्थान में पिछले डेढ़ दशक से लगातार अतिशय मौसम का शिकार हो रहा है इसके मुख्य कारण क्या है?

राजस्थान में जहां एक समान बारिश हो रही है, वहीं साल भर में कुल बारिश के दिनों की संख्या कम हो गई है। कुछ इलाकों में बारिश के दिनों के साथ-साथ कुल बारिश भी कम हो रही है। राजस्थान के अंदर भी कई स्तर पर बातचीत हो रही है नदी बेसिन के अध्ययन के आधार पर अध्ययन कर्ताओं को कहना है कि राज्य के कई इलाकों में बारिश बढ़ेगी या घटेगी या कुछ ही इलाकों में ही बढ़ेगी। यह भी देखने वाली बात है आपकी जमीन मौसम के बदलाव को कैसे लेती है।  यही नहीं, अब राजस्थान का तापमान बढ रहा है और गर्मी के समय तापमान बढ गया है यह भी एक कारण है कि राजस्थान में तापमान में वृद्धि के कारण भी अधिक बारिश का कारण संभव है। यही नहीं बारिश की शिफ्टिंग भी देखने को मिल रही है। जल्दी हो रही बारिश यानी अगस्त से पहले ही अधिक बारिश हो रही है। जब गर्मी में जमीन अधिक गर्म होती है और जमीन गर्मी को पकड़ कर रखती है। गर्मी और बारिश दोनों का बढ जाना एक सीमा तक कह सकते हैं कि यह सब कहीं न कहीं जलवायु परिवर्तन के कारण ही हो रहा है।

क्या जलवायु परिवर्तन का आधार स्थानीय स्तर पर भी देखा जा सकता है?

अकेले राजस्थान में ही नहीं देश के अलग-अलग भागों में जलवायु परिवर्तन का प्रभाव अलग-अलग है। जलवायु परिवर्तन का आधार स्थानीय स्तर पर भी देखने को मिलता है। क्योंकि यह देखना होता है कि उस जगह विशेष पर कितनी बारिश होती है और वहां कितना पेड़-पौधे हैं या कितना पानी और जमीन कैसी है। हम राजस्थान को देश के अन्य भागों से तुलना  नहीं कर सकते हैं लेकिन यह सही है हर जगह जलवायु परिवर्तन का प्रभाव हो रहा है। और यह प्रभाव उस जगह की प्रकृति के हिसाब से हो रहा है। राजस्थान का मतलब है वहां स्थानीय स्तर पर भी प्रभाव पड़ रहा है। यह सही  है कि आपका बारिश का बहुत बड़ा हिस्सा समुद्र से आता है। लेकिन बहुत कुछ बारिश स्थानीय पेड़-पौधों से भी आता है।

क्या राजस्थान में हीटवेब से बचाव के लिए तैयार किया गया एक्शन प्लान सही है?

राज्य का एक्शन प्लान राज्य के इलाकों को ध्यान में रखकर नहीं बनाए गए हैं। भविष्य में स्थानीय लोगों की क्या जरूरत होगी इसका भी ख्याल नहीं रखा गया है। जल संचयन प्रणाली को उस स्थान की भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखकर तैयार नहीं किया गया है। जो पहले हो चुका है और अब यह हो रहा है। हालांकि हम इस बिना पर किसी की बुराई करना संभव है कि नहीं यह मैं नहीं कह सकता हूं। यदि हम अपने जलवायु को तेजी से बदलते देखेंगे तो क्या सरकारी योजनाओं में भी तेजी से बदलाव की जरूरत है क्या। यदि भविष्य बदल रहा है तो वर्तमान को बलदने की जरूरत है।

जलवायु परिवर्तन का असर राजस्थान पर क्या पड़ेगा?

अभी तक इस विषय पर हिन्दुस्तान में बहुत अधिक अध्ययन हुए हैं लेकिन वे स्थानीय नहीं है। इस संबंध में हम इतना ही कह सकते हैं जैसे मध्य प्रदेश में मोटामोटी तो ज्ञात हो सकता है लेकिन सतना जिले में क्या असर पड़ेगा। मुझे नहीं लगता इस प्रकार की कोई अध्ययन हुआ है। तापमान कितना बढ़ेगा, रेन फॉल में कितना प्लस और माइनस होगा, ताममान तो बढेगा तो मानसून कितना प्लस होगा और कितना माइनस।   जलवायु परिवर्तन के साथ जो लोकल चैंज हो रहे हैं वह है जैसे लैंड यूज चेंज हो रहा है। शहरीकरण हो रहा। इन दोनों का सामूहिक रूप से कितना असर होगा इसे देखना होगा। मान लिजिए किसी क्षेत्र में रैन फॉल बढ़ रहा है ओर शहरीकरण भी बढ़ रहा है। तो उसमें यदि शहरीकरण के बढ़ने से जमीन अधिक उपयोग में लाई जाएगी। इसके लिए फिर जमीन कहीं न कहीं से तो निकलेगी ही। या तो खेती से या जंगल से। चूंकि यदि मानूसन बेहतर हुआ है  तो हो सकता है उत्पादकता थोडी बढ़ी। तो जितनी जमीन आपकी शहरीकरण के कारण बर्बाद हुई उसके बराबर लाभ मिल सकता है। और यदि रेन फॉल कम हो गया तो उत्पादकता घट गई और फिर आपको और जमीन लेनी पड़ेगी, इस हानि को पूरा करने के लिए। लेकिन एक चीज पक्की है। जलवायु परिवर्तन का असर है। दूसरा एक अध्यययन जंगल पर यदि आप देखें तो ग्रिड बाई ग्रिड पर इंडियन इंस्टीटूयट ऑफ साइंस ने कुछ अध्ययन किया है। उन्होंने कुछ ग्रिड लिए और हिन्दुस्तान को पूरे ग्रिड में बांट दिया और किस ग्रिड में क्या चेंज आएगा तो अध्ययन से यह बात निकली है। तो इस मामले में राजस्थान निश्चत तौर पर प्रभिवित हुआ है।

राजस्थान में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए क्या किया जा रहा है?

राजस्थान पर जलवायु परिवर्तन का असर पड़ने के लिए जो काम करने चाहिए वह उसे काम करना पड़ेगा। जलवायु परिवर्तन से मुकाबला करने के मामले में राजस्थान बहुत आगे है। इस मामले देश के अन्य राज्य इतने संवदनशील या सावधानियां नहीं बरत रहे हैं। राजस्थान में अधिकतर योजनाएं सूखे को लेकर नहीं बनाई गई है बलिक वाटर डेफिसिट को लेकर योजनाएं बनाई गई  हैं। इसकी शुरूआत सिंधु नदी में पानी की कमी से शुरू होती है और तब का यह क्लाइमेट चेंज प्राकृतिक था अब की तरह मानवीकृत नहीं था। आज का क्लाइमेट चेंज पूरी तरह से मानव द्वारा तैयार किया गया है। राजस्थान की दस से बारह फीसदी जमीन आती है यह देश का सबसे बडा राज्य है। लेकिन जब पानी की बात है तो राज्य में केवल एक फीसदी पानी है। उदाहरण के लिए जब आपकी पानी  की बोतल में एक बटे दस पानी रहेगा तो ऐसी हालत में आप क्या करेंगे आप पानी के हिसाब से योजना बनाएंगे। यदि आपकी बोतल में यह राशनिंग कर दी जाए कि आपकी बोतल में प्रतिवर्ष एक बटे दस पानी डाला जाएगा ऐसी हालत में आप क्या करेंगे आप इसी पानी को पूरे साल भर अपने नहाने खाना की योजना बनाएंगे। आप अपनी सारी योजनाएं उस पानी को ध्यान में रखकर बनाएंगे। हमार पास पूरे देश के पानी का मात्र एक फीसदी है और जमीन पूरे देश की जमीन का दस फीसदी है यदि आप राजस्थान के पिछले 45 सालों का इतिहास देखते हैं तो जैसे जैसे मानसून घटा या बढा उसी रफ्तार से जल संचयन की प्रक्रियाएं तेज हुईं। राज्य के लगभग 37 हजार गांवों में तकरीबन सभी गांवों में तालाब और शहरों में झीलें यह सब क्या है यह वास्तव में मानसून के घटने बढने का परिणाम है

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