आर्कटिक में बर्फबारी पर हावी हो सकती है बारिश: अध्ययन

आर्कटिक दुनिया मैं बाकी जगहों की तुलना में बहुत तेजी से गर्म हो रहा है, जो कि समुद्री बर्फ को पिघला रहा है और हवा में नमी को बढ़ा रहा है जिससे वर्षा के बढ़ने की संभावना होती है।
फोटो : विकिमीडिया कॉमन्स
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आर्कटिक में दशकों से चली आ रही प्रथा में बदलाव हो सकता है। यहां पहले की तुलना में बारिश जल्द ही बर्फबारी की जगह ले सकती है। एक अध्ययन में पाया गया कि क्षेत्र पर यह बदलाव ग्लोबल वार्मिंग के चलते देखा जा सकता है।

इक्कीसवीं सदी के दौरान आर्कटिक में 30 से 60 फीसदी तक बारिश में बढ़ोतरी होने का अनुमान है। आर्कटिक दुनिया में बाकी जगहों की तुलना में बहुत तेजी से गर्म हो रहा है, जो कि समुद्री बर्फ को पिघला रहा है और हवा में नमी को बढ़ा रहा है जिससे वर्षा के बढ़ने की संभावना होती है।

पिछले जलवायु मॉडल के नवीनतम अनुमानों की तुलना करते हुए, अध्ययन में यह अनुमान लगाया गया है कि जिन जगहों पर साल में अधिक बर्फबारी होती थी वहां आने वाले समय में बारिश होने लगेगी। आर्कटिक में इस तरह के बदलाव एक या दो दशक पहले देखे जा सकते हैं।

प्रमुख अध्ययनकर्ता मिशेल मैकक्रिस्टल ने बताया कि इस तरह के बदलाव अधिक गंभीर होने जा रहे हैं और ये अनुमान से बहुत पहले होने जा रहे हैं। इसलिए आर्कटिक में रहने वाले जीवों और उसके बाहर रहने वालों पर भी इसका बहुत बड़ा प्रभाव पड़ेगा।

कनाडा के मैनिटोबा विश्वविद्यालय के शोधकर्ता मैकक्रिस्टल ने कहा कि शरद ऋतु में, जब सबसे बड़ा परिवर्तन होता है, तो केंद्रीय आर्कटिक मॉडल के अनुसार यह बदलाव 2090 के आसपास होना था वह 2070 के दौरान हो सकता है। लेकिन सब कुछ बढ़ते तापमान पर निर्भर करता है।

अध्ययन में कहा गया है कि जिस तरह वर्तमान में तापमान की दर बढ़ रही है उससे स्पष्ट है कि आर्कटिक में सदी के अंत से पहले बारिश हावी हो सकती है। लेकिन 2015 के पेरिस जलवायु समझौते का सबसे महत्वाकांक्षी लक्ष्य जो तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने की बात करता है। यदि यह हासिल होता है तो हो सकता है कि आर्कटिक पर बर्फ ही हावी रहे।

नासा के गोडार्ड इंस्टीट्यूट फॉर स्पेस स्टडीज के निदेशक गेविन श्मिट ने कहा कि इसका मतलब यह है कि सबसे बुरे प्रभावों से बचा जा सकता है, यदि दुनिया भर के सभी देश पेरिस समझौते के अनुरूप उत्सर्जन में कटौती के अपने घोषित इरादों पर खरे उतरते हैं तो। लेकिन श्मिट ने कहा कि उन्हें लगता है कि अध्ययन से यह साबित नहीं हुआ कि बदलाव उम्मीद से जल्दी होगा। यह अध्ययन नेचर कम्युनिकेशंस नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। 

यदि बर्फ के बारिश में बढ़ने के आसार बनते हैं तो आर्कटिक के पारिस्थितिकी तंत्र और भविष्य में बड़े प्रभाव पड़ने की आशंका जताई गई है। वर्तमान बर्फ के आवरण के ऊपर अधिक वर्षा से सतह की बर्फ में वृद्धि हो सकती है जिससे कारिबू और हिरन के लिए भोजन के लिए चारा बनना असंभव हो जाएगा।

कम बर्फ के आवरण का अर्थ यह भी है कि आर्कटिक पर पड़ने वाली सूर्य की गर्मी और प्रकाश को पृथ्वी की सतह से दूर करने की अपनी कुछ क्षमता खो देगा और इस तरह तापमान में बढ़ोतरी होगी।

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