हिमांशु ठाकुर, नेटवर्क साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर्स एंड पीपल, एसएनडीआरपी से जुड़े हैं, यह एक अनौपचारिक नेटवर्क है जो नदियों, समुदायों और बड़े जल ढांचे से जुड़े मुद्दों पर काम करता है
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भाखड़ा, पोंग और रणजीत सागर बांधों की गलतियों से पंजाब में बाढ़ का कहर

बांधों की संचालन में हुई चूक, बाढ़ के पूर्वानुमानों को नजरअंदाज करना और पानी के बहाव की गलत गणना ने पंजाब में आई तबाही को और बढ़ा दिया
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बांध निचले क्षेत्रों में बाढ़ को कुछ हद तक कम करने में मदद कर सकते हैं, लेकिन केवल तभी जब उन्हें उसी मकसद के तहत संचालित किया जाए। पंजाब में ऐसा नहीं हुआ। सतलुज पर भाखड़ा बांध, ब्यास पर पोंग बांध और रावी पर रणजीत सागर बांध ने बाढ़ की स्थिति को और बिगाड़ने में अहम भूमिका निभाई। यह तीनों बांध पहले ही बिजली उत्पादन के लिए पानी का इस्तेमाल कर सकते थे, जिससे उनका भंडारण कम होता और बाढ़ की तीव्रता कम हो सकती थी।

भाखड़ा: पारदर्शिता का मामला

एक अगस्त तक भाखड़ा बांध 53 प्रतिशत भरा हुआ था। एक से 18 अगस्त के बीच बांध से औसतन 22,000-23,000 क्यूसेक्स पानी छोड़ा गया। यह बहाव केवल 19-20 अगस्त को ही उल्लेखनीय रूप से बढ़ा, जब बांध के स्पिलवे गेट्स को दो साल में पहली बार खोला गया। तब तक बांध 80 प्रतिशत भरा हुआ था और पानी का स्तर 507.8 मीटर था, जो पूर्ण जलाशय स्तर (एफआरएल) से केवल 4.2 मीटर नीचे था।

एक से 20 अगस्त के दौरान बांध में आने वाला पानी (इनफ्लो) दरअसल बहने वाले पानी (आउटफ्लो) की तुलना में 180 प्रतिशत अधिक था, इसलिए अगस्त के पहले 20 दिनों में बहाव अधिक होना चाहिए था। 20 अगस्त तक बहाव मूल रूप से केवल विद्युत उत्पादन के लिए किया गया, जो अधिकांश दिनों में भी अनुकूल नहीं था। लिहाजा, जब अगस्त के चौथे सप्ताह में पंजाब में भारी वर्षा हुई तो बांध का बहाव घटाने के बजाय बढ़ाना पड़ा, जिससे बाढ़ की स्थिति और गंभीर हो गई।

दो सितंबर की सुबह तक, पानी का स्तर 511 मीटर तक पहुंच गया (जिससे बांध 88 प्रतिशत भरा हुआ था)। 3 सितंबर को सुबह 6 बजे यह 511.4 मीटर था और उसी दिन शाम तक यह और बढ़कर 511.6 मीटर (93 प्रतिशत भराव) हो गया।

क्या भाखड़ा बांध से पानी का बहाव 20 अगस्त से पहले बढ़ाने के लिए पर्याप्त क्रियाशील जानकारी उपलब्ध थी? वास्तव में भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के दैनिक जिलेवार वर्षा आंकड़ों के अनुसार, हिमाचल प्रदेश के भाखड़ा जलग्रहण क्षेत्र शिमला, कुल्लू, मंडी और बिलासपुर जैसे जिलों में जुलाई के अंतिम सप्ताह से ही वर्षा काफी अधिक हो रही थी। आईएमडी के नियमित पूर्वानुमान यह संकेत दे रहे थे कि बांध से पानी पहले ही छोड़ा जाना चाहिए था, ताकि निचले क्षेत्रों में नदियों की वहन क्षमता को ध्यान में रखा जा सके।

हालांकि भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (बीबीएमबी) का दावा है कि बाढ़ तैयारी और प्रतिक्रिया पर चर्चा के लिए तकनीकी समिति की कई बैठकें हुई हैं। इनमें से कोई भी चर्चा, जिसका सीधे जनसुरक्षा से संबंध है, सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं है। यह तकनीकी समिति के निर्णय-प्रक्रिया पर सवाल उठाता है।

पोंग: बाढ़ पूर्वानुमानों पर ध्यान नहीं दिया गया

एक अगस्त को ब्यास नदी पर स्थित पोंग बांध पहले ही 60 प्रतिशत से अधिक भरा हुआ था। 18 अगस्त तक इसका जल स्तर 85 प्रतिशत तक पहुंच गया। बांध से पानी का प्रवाह केवल आठ अगस्त को ही काफी बढ़ाया गया, जब जल स्तर 419 मीटर था और बांध 83 प्रतिशत भरा हुआ था, जबकि पूर्ण जलाशय स्तर (एफआरएल) के हिसाब से पानी का स्तर पहले ही अधिक था। एक से तीन अगस्त और पांच से छह अगस्त के दौरान जल प्रवाह काफी अधिक था, लेकिन इसके बावजूद पानी का बहाव नहीं बढ़ाया गया, जबकि समझदारी से प्रबंधन के लिए यह जरूरी था।

26 अगस्त तक पानी का स्तर 424.6 मीटर को पार कर गया, जो एफआरएल 423.6 मीटर से ऊपर था। अंत में 29 अगस्त से पानी का बहाव 100,000 क्यूसेक्स से अधिक करना पड़ा, जिससे हिमाचल प्रदेश और पंजाब के निचले क्षेत्रों में भारी बाढ़ आ गई। इस तरह पोंग बांध ने उस समय पंजाब में बाढ़ को और बढ़ा दिया, जब राज्य पहले से ही भारी वर्षा से प्रभावित था।

पोंग बांध से पानी पहले से छोड़ने के लिए भारत मौसम विज्ञान विभाग से आवश्यक जानकारी और पूर्वानुमान उपलब्ध थे। मिसाल के तौर पर, ब्यास नदी के जलग्रहण क्षेत्र में कूल्लू (26 अगस्त), मंडी (22 और 29 जुलाई, 6 अगस्त) और कांगड़ा (30 जुलाई, 6, 12, 17, 25-26 अगस्त) जिलों में भारी बारिश की भविष्यवाणी की गई थी। उपरोक्त क्षेत्रों में हुई बारिश के आधार पर पोंग बांध के अधिकारियों को पहले से पानी का बहाव बढ़ाना चाहिए था। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया और केवल 26 अगस्त से जब पंजाब में पहले से बाढ़ शुरू हो चुकी थी, तभी पानी का बहाव बढ़ाया गया।

तकनीकी समिति के सभी सदस्य, जिनमें पंजाब समेत संबंधित राज्यों के अधिकारी शामिल हैं दरअसल भाखड़ा और पोंग बांध से पानी छोड़ने के फैसलों के लिए पूरी तरह जिम्मेदार हैं। बीबीएमबी के अधिकारियों ने मीडिया में कहा कि 2024 में केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) ने दोनों बांधों की रूल कर्व यानी पानी को नियमित छोड़े जाने और भंडारण के नियमों को लेकर समीक्षा और अपडेट की। इससे सवाल उठते हैं कि क्या इसे अपडेट करते समय बदलती परिस्थितियों को ध्यान में रखा गया या फिर यह नियम ही सही तरीके से पालन नहीं किए गए। सीडब्ल्यूसी को भी बाढ़ की भविष्यवाणी में विफलता और नियमों के उल्लंघन पर कोई कार्रवाई न करने के कारण बहुत कुछ समझाना होगा।

पोंग बांध में जुलाई से अगस्त 2025 तक कुल पानी का इनफ्लो 9.68 बिलियन क्यूबिक मीटर था, जो इस अवधि में अब तक का सबसे अधिक है। यही कारण है कि जुलाई 2025 से ही बांध से अधिक पानी छोड़ा जाना चाहिए था, साथ ही बिजली उत्पादन के लिए भी यह छोड़ा जाना चाहिए था।

हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री ने राज्य की ऊर्जा विभाग को बीबीएमबी और अन्य पर बांध सुरक्षा नियमों का उल्लंघन करने के लिए एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया है और कहा कि नुकसान की भरपाई करनी चाहिए। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने विधानसभा में कहा कि “बार-बार होने वाले विनाश, जैसे 2023 की बाढ़, के बावजूद बीबीएमबी ने पीड़ितों को मुआवजा नहीं दिया और कोई सुरक्षा उपाय नहीं किए। हमारे लोग इसका कीमत चुका रहे हैं।”

अब सवाल यह है कि क्या पंजाब सरकार भी बीबीएमबी के खिलाफ ऐसी कार्रवाई करेगी? क्योंकि राज्य के सिंचाई मंत्री ने भी आरोप लगाया है कि बीबीएमबी के बड़े पैमाने पर पानी छोड़ने से ही पंजाब में बाढ़ पैदा हुई।

रणजीत सागर बांध: मंत्री ने गलती स्वीकारी

रावी नदी पर बने रणजीत सागर बांध से 24 अगस्त को पानी का बहाव 9,000 क्यूसेक्स था। अगले दिन यह अचानक बढ़कर 24,000 क्यूसेक्स हो गया। इसके बाद भी बहाव तेजी से बढ़ता रहा। 26 अगस्त को 77,000 क्यूसेक्स और 27 अगस्त को 1,73,000 क्यूसेक्स तक पहुंच गया। इसी दिन बांध का जल स्तर एफआरएल पार कर 527.13 मीटर तक पहुंच गया। 27 अगस्त से पांच दिनों तक बहाव आने वाले पानी से अधिक रहा, जिसे सीडब्ल्यूसी की परिभाषा में बांध द्वारा बाढ़ उत्पन्न करना माना जाता है। स्पष्ट है कि इस बांध ने पंजाब में बाढ़ को नियंत्रित करने की बजाय बढ़ाने में योगदान दिया।

इस मामले में भी आईएमडी से उपलब्ध जानकारी और पूर्वानुमान के आधार पर बांध से पानी पहले ही छोड़ा जा सकता था। उदाहरण के लिए, रावी नदी के जलग्रहण क्षेत्र यानी चम्बा (30 जुलाई, 2, 6, 25-26 अगस्त), कठुआ (11, 12, 17, 26, 27 अगस्त) और पठानकोट (2, 12, 15, 17, 24-26 अगस्त) में भारी वर्षा थी। लेकिन बांध के अधिकारियों ने इन दिनों या ऊपर के क्षेत्रों में भारी बारिश की आईएमडी के कई पूर्वानुमानों के बाद भी पानी नहीं छोड़ा, न ही बांध में पहले से उच्च जल स्तर को ध्यान में रखा।

पंजाब के सिंचाई मंत्री बरिंदर कुमार गोयल ने रणजीत सागर बांध के संचालन पर एक अखबार को बताया, “जो हुआ वह पूरी तरह अप्रत्याशित था। किसी ने भी नहीं सोचा था कि यह ऐसा होगा। सभी गणनाएं उलट गईं। पानी ऊपर की नदियों से हिमाचल और पठानकोट की तरफ से आया। इसलिए, जब ऊपरी हिस्सों से बाढ़ का पानी आया तो बांध से कम पानी छोड़ा गया भी तो भी नीचे का क्षेत्र बाढ़ से प्रभावित होता। इसके अलावा, अगर बांध को कोई खतरा है तो पानी छोड़ना ही पड़ेगा। बांध को खतरे में नहीं डाला जा सकता।”

यह स्पष्ट रूप से पंजाब सरकार की ओर से यह स्वीकारोक्ति है कि उन्होंने हिमाचल प्रदेश और पंजाब के पठानकोट में पहले से हो रही या पूर्वानुमानित बारिश को ध्यान में नहीं रखा और 27 अगस्त को अचानक बांध के गेट खोलने पड़े, जिससे बड़ी बाढ़ आई।

रणजीत सागर बांध से 27 अगस्त को 0.17 मिलियन क्यूसेक्स से अधिक पानी अचानक छोड़ने के कारण रावी नदी पर माधोपुर बैराज को नुकसान हुआ और कम से कम एक व्यक्ति की मृत्यु हुई, जो बैराज की मरम्मत में लगा था। यह दुर्घटना बैराज के कुछ गेट न खोलने के कारण हुई मानी जाती है, जो यह सवाल उठाती है कि क्या बांध में सुरक्षा नियमों का पालन किया गया।

(हिमांशु ठाकुर, नेटवर्क साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर्स एंड पीपल, एसएनडीआरपी से जुड़े हैं, यह एक अनौपचारिक नेटवर्क है जो नदियों, समुदायों और बड़े जल ढांचे से जुड़े मुद्दों पर काम करता है)

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