पंजाब बाढ़ के बाद : 10 साल पीछे चला गया किसान

किसान के घर में पशु होते हुए दूध आना बंद हो जाए तो आप खुद अंदाजा लगा लें कि वह कितनी कठिनाई में हैं
रावी नदी से चार किलोमीटर नजदीक घोनेवाला गांव में एक हेक्टेयर से कम मालकियत के किसान अतर सिंह का घर, गाद भरने के कारण रहने लायक नहीं रहा, फोटो : विकास चौधरी
रावी नदी से चार किलोमीटर नजदीक घोनेवाला गांव में एक हेक्टेयर से कम मालकियत के किसान अतर सिंह का घर, गाद भरने के कारण रहने लायक नहीं रहा, फोटो : विकास चौधरी
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बाढ़ और अतिवृष्टि की मार झेलने वाले पंजाब की तीन प्रमुख नदियों के किनारे डाउन टू अर्थ ने छह जिले गुरुदासपुर, अमृतसर, तरनतारन, फिरोजपुर, फजिल्का, लुधियाना के गांवों की यात्रा की। इस यात्रा का वृत्तांत सात किस्तों में यह तीसरी कड़ी…

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अमृतसर शहर से रावी के तट की ओर उत्तरी दिशा में बढ़ने पर करीब 20 किलोमीटर दूरी पार करते ही समूचे खेत पानी में ही नजर आते हैं। त्रासदियों के निशान राह चलते हुए गांव-गांव में फैले हुए हैं। धूंसी बांध टूटने के कारण बाढ़ का पानी 10 से 12 किलोमीटर दूर तक फैला। रावी तट के सबसे नजदीक करीब चार किलोमीटर दूर माछीवाल और घोनेवाला गांव इस त्रासदी के सबसे बड़े शिकार हुए हैं। यहां, प्रमुख तौर पर धान और गन्ना की फसलें पूरी तरह तबाह हो गईं।

घोनेवाला गांव के किसान अतर सिंह के घर में दो-दो फुट गाद भरी है। पूरा घर रहने लायक नहीं रह गया है। उन्होंने कुल 10 एकड़ में इस बार दो एकड़ धान और आठ एकड़ गन्ना लगाया था। अभी उनके खेतों में पानी भरा हुआ है और फसलें सड़ गई हैं।

अतर सिंह बताते हैं यह पहली बार नहीं है। 2023 में भी फसलों की ऐसी ही स्थिति हुई थी, मुआवजे की बात कही गई लेकिन कोई मुआवजा नहीं मिला। वह शक जाहिर करते हैं कि उन्हें इस बार भी मुआवजा मिलेगा। गिरदावरी में छोटे किसानों के फसलों के नुकसान को नहीं लिखा जाता। भ्रष्टाचार के कारण किसानों को घूस देना पड़ता है और असल प्रभावित किसान रह जाता है।

घोनेवाला गांव के ही जोबन सिंह एक बड़ा बयान देते हैं, “हम किसान पूरे 10 साल पीछे चले गए हैं।” वह अपनी आप-बीती साझा करते हैं, मैं चार एकड़ खेत का मालिक हूं। 2019 में पहले बाढ़ आई फिर 2023 में आई। दोनों बार फसलें नष्ट हुई। 2023 की बाढ़ का उन्हें सिर्फ 1500 रुपए मुआवजा मिला।” वह आगे कहते हैं, करीब दो साल उनके खेतों में फसल नहीं आएगी।

कई किसान जो ठेके पर खेती करते हैं उन पर और बड़ी आफत है क्योंकि उनपर कर्ज भी ज्यादा है। जोबन सिंह ने खुद ही तीन लाख रुपए का कर्ज घर बनाने के लिए लिया था उन्होंने खेतों को ठीक करने और इस बार फसल लगाने के लिए दो लाख का कर्ज साहूकार से लिया था, जिस पर साल का 24 फीसदी ब्याज है।  

ट्रांसफॉर्मर पर मौजूद घास बाढ़  की निशानी है। करीब आठ फुट ऊपर तक बाढ़ का पानी पहुंच गया था। रावी नदी के किनारे का गांव, फोटो : विकास चौधरी
ट्रांसफॉर्मर पर मौजूद घास बाढ़ की निशानी है। करीब आठ फुट ऊपर तक बाढ़ का पानी पहुंच गया था। रावी नदी के किनारे का गांव, फोटो : विकास चौधरी

जोबन सिंह कहते हैं किसी तरह हिम्मत जुटाकर इस बार अपने चार एकड़ खेत के अलावा चार एकड़ खेत ठेके पर लिया था। चार एकड़ खेत में पीआर 127 और 2 एकड़ में पूसा 1692 व 2.5 एकड़ में गन्ना लगाया था। यह सारी फसल बर्बाद हो गई है। 

इतना ही नहीं उन्होंने आधे की हिस्सेदारी में दो एकड़ में करीब 400 पेड़ पॉपुलर के लगाए थे, वह सब पानी के बहाव में टूट गए या अब सड़ रहे हैं। जोबन सिंह कहते हैं “हमारे आगे सिर्फ अंधेरा है। किसान के घर में पशु होते हुए दूध आना बंद हो जाए तो आप खुद अंदाजा लगा लें कि हम कितनी कठिनाई में हैं।”

सरकार अगर सचमुच मदद करना चाहती है तो हम जैसे किसानों का पटवारी से बिना भ्रष्टाचार के खेतों का सर्वे कराए। खाद-बीज, यूरिया और खेतों को ठीक कराने के लिए मदद दे।

वह आगाह करते हैं कि आगे से यह भी तय हो कि रावी दरिया में उतना ही पानी छोड़ा जाए जितनी उसकी क्षमता है। वह आरोप लगाते हैं कि तीन लाख क्यूसेक के बजाए उसका तीन-चार गुना पानी इस बार छोड़ा गया। वह सवाल उठाते हैं क्यों?

घोनेवाला गांव में ही एक और किसान सुखमन प्रीत का 1.5 एकड़ गन्ने का खेत तीन फीट रेत से भर गया है। वह कहते हैं कि आखिर इस रेत को बिना मदद निकाले कैसे?

यह सारे सवाल पंजाब में रावी, ब्यास और सतलुज दरिया के किनारे मौजूद हर उस छोटे और मझोले किसान का है जो लगातार बाढ़ की मार से जूझ रहा है।

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